सम्पूर्ण श्री रामचरितमानस अर्थ सहित | Ramcharitmanas with Hindi Meaning
Complete Ramcharitmanas with Hindi Meaning : गोस्वामी तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस अवधी भाषा में रचित श्रीराम कथा का विभिन्न गेय छन्दों से सुसज्जित है। यह उत्तर भारत में अत्यंत प्रचलित है। सभी पाठकों की सहजता के लिए सम्पूर्ण रामचरितमानस हिंदी भावार्थ के साथ प्रकाशित कर रहे हैं।
Ramcharitmanas with meaning in Hindi |
सम्पूर्ण रामचरितमानस
- 📂 परायण विधि
- 📂 बालकाण्ड
- 📜 दोहा - 1 से 40
- 📜 दोहा - 41 से 80
- 📜 दोहा - 81 से 120
- 📜 दोहा - 121 से 160
- 📜 दोहा - 161 से 200
- 📜 दोहा - 201 से 240
- 📜 दोहा - 241 से 280
- 📜 दोहा - 281 से 320
- 📜 दोहा - 321 से 361
- 📂 अयोध्या काण्ड
- 📜 दोहा - 1 से 40
- 📜 दोहा - 41 से 80
- 📜 दोहा - 81 से 120
- 📜 दोहा - 121 से 160
- 📜 दोहा - 161 से 200
- 📜 दोहा - 201 से 240
- 📜 दोहा - 241 से 280
- 📜 दोहा - 281 से 326
- 📂 अरण्य काण्ड
- 📂 किष्किन्धा काण्ड
- 📂 सुन्दर काण्ड
- 📂 लंका काण्ड
- 📂 उत्तर काण्ड
रामचरितमानस की रचना
संवत् १६३१ का प्रारम्भ हुआ। दैवयोग से उस वर्ष रामनवमी के दिन वैसा ही योग आया जैसा त्रेतायुग में राम-जन्म के दिन था। उस दिन प्रातःकाल तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की। दो वर्ष, सात महीने और छ्ब्बीस दिन में यह अद्भुत ग्रन्थ सम्पन्न हुआ। संवत् १६३३ के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम-विवाह के दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गये।
इसके बाद भगवान की आज्ञा से तुलसीदास जी काशी चले आये। वहाँ उन्होंने भगवान् विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा को श्रीरामचरितमानस सुनाया। रात को पुस्तक विश्वनाथ-मन्दिर में रख दी गयी। प्रात:काल जब मन्दिर के पट खोले गये तो पुस्तक पर लिखा हुआ पाया गया-सत्यं शिवं सुन्दरम् जिसके नीचे भगवान् शंकर की सही (पुष्टि) थी। उस समय वहाँ उपस्थित लोगों ने "सत्यं शिवं सुन्दरम्" की आवाज भी कानों से सुनी।
इधर काशी के पण्डितों को जब यह बात पता चली तो उनके मन में ईर्ष्या उत्पन्न हुई। वे दल बनाकर तुलसीदास जी की निन्दा और उस पुस्तक को नष्ट करने का प्रयत्न करने लगे। उन्होंने पुस्तक चुराने के लिये दो चोर भी भेजे। चोरों ने जाकर देखा कि तुलसीदास जी की कुटी के आसपास दो युवक धनुषबाण लिये पहरा दे रहे हैं। दोनों युवक बड़े ही सुन्दर क्रमश: श्याम और गौर वर्ण के थे। उनके दर्शन करते ही चोरों की बुद्धि शुद्ध हो गयी। उन्होंने उसी समय से चोरी करना छोड़ दिया और भगवान के भजन में लग गये। तुलसीदास जी ने अपने लिये भगवान् को कष्ट हुआ जान कुटी का सारा समान लुटा दिया और पुस्तक अपने मित्र टोडरमल (अकबर के नौरत्नों में एक) के यहाँ रखवा दी। इसके बाद उन्होंने अपनी विलक्षण स्मरण शक्ति से एक दूसरी प्रति लिखी। उसी के आधार पर दूसरी प्रतिलिपियाँ तैयार की गयीं और पुस्तक का प्रचार दिनों-दिन बढ़ने लगा।
इधर काशी के पण्डितों ने और कोई उपाय न देख श्री मधुसूदन सरस्वती नाम के महापण्डित को उस पुस्तक को देखकर अपनी सम्मति देने की प्रार्थना की। मधुसूदन सरस्वती जी ने उसे देखकर बड़ी प्रसन्नता प्रकट की और उस पर अपनी ओर से यह टिप्पणी लिख दी-
आनन्दकानने ह्यास्मिञ्जङ्गमस्तुलसीतरुः।
कवितामञ्जरी भाति रामभ्रमरभूषिता॥
इसका हिन्दी में अर्थ इस प्रकार है- "काशी के आनन्द-वन में तुलसीदास साक्षात् चलता-फिरता तुलसी का पौधा है। उसकी काव्य-मञ्जरी बड़ी ही मनोहर है, जिस पर श्रीराम रूपी भँवरा सदा मँडराता रहता है।"
पण्डितों को उनकी इस टिप्पणी पर भी संतोष नहीं हुआ। तब पुस्तक की परीक्षा का एक अन्य उपाय सोचा गया। काशी के विश्वनाथ-मन्दिर में भगवान् विश्वनाथ के सामने सबसे ऊपर वेद, उनके नीचे शास्त्र, शास्त्रों के नीचे पुराण और सबके नीचे रामचरितमानस रख दिया गया। प्रातःकाल जब मन्दिर खोला गया तो लोगों ने देखा कि श्रीरामचरितमानस वेदों के ऊपर रखा हुआ है। अब तो सभी पण्डित बड़े लज्जित हुए। उन्होंने तुलसीदास जी से क्षमा माँगी और भक्ति-भाव से उनका चरणोदक लिया।
पारायण विधि
श्री रामचरित मानस का विधिपूर्वक पाठ करने से पुर्व श्री तुलसीदासजी, श्री वाल्मीकिजी, श्री शिवजी तथा हनुमानजी का आवाहन-पूजन करने के पश्चात् तीनों भाइयों सहित श्री सीतारामजी का आवाहन, षोडशोपचार-पूजन और ध्यान करना चाहिये। तदन्तर पाठ का आरम्भ करना चाहियेः-
आवाहन मन्त्रः
तुलसीक नमस्तुभ्यमिहागच्छ शुचिव्रत।नैर्ऋत्य उपविश्येदं पूजनं प्रतिगृह्यताम्॥१॥
ॐ तुलसीदासाय नमः श्रीवाल्मीक नमस्तुभ्यमिहागच्छ शुभप्रद।
उत्तरपूर्वयोर्मध्ये तिष्ठ गृह्णीष्व मेऽर्चनम्॥२॥
ॐ वाल्मीकाय नमः गौरीपते नमस्तुभ्यमिहागच्छ महेश्वर।
पूर्वदक्षिणयोर्मध्ये तिष्ठ पूजां गृहाण मे॥३॥
ॐ गौरीपतये नमः श्रीलक्ष्मण नमस्तुभ्यमिहागच्छ सहप्रियः।
याम्यभागे
समातिष्ठ पूजनं संगृहाण मे॥४॥
ॐ श्रीसपत्नीकाय लक्ष्मणाय नमः श्रीशत्रुघ्न नमस्तुभ्यमिहागच्छ सहप्रियः।
पीठस्य पश्चिमे भागे पूजनं स्वीकुरुष्व मे॥५॥
ॐ श्रीसपत्नीकाय शत्रुघ्नाय नमः श्रीभरत नमस्तुभ्यमिहागच्छ सहप्रियः।
पीठकस्योत्तरे भागे तिष्ठ पूजां गृहाण मे॥६॥
ॐ श्रीसपत्नीकाय भरताय नमः श्रीहनुमन्नमस्तुभ्यमिहागच्छ कृपानिधे।
पूर्वभागे समातिष्ठ पूजनं स्वीकुरु प्रभो॥७॥
ॐ हनुमते नमः अथ प्रधानपूजा च कर्तव्या विधिपूर्वकम्।
पुष्पाञ्जलिं
गृहीत्वा तु ध्यानं कुर्यात्परस्य च॥८॥
रक्ताम्भोजदलाभिरामनयनं पीताम्बरालंकृतं श्यामांगं द्विभुजं प्रसन्नवदनं
श्रीसीतया शोभितम्।
कारुण्यामृतसागरं प्रियगणैर्भ्रात्रादिभिर्भावितं
वन्दे विष्णुशिवादिसेव्यमनिशं भक्तेष्टसिद्धिप्रदम्॥९॥
आगच्छ जानकीनाथ जानक्या सह राघव।
गृहाण मम पूजां च
वायुपुत्रादिभिर्युतः॥१०॥
इत्यावाहनम्
सुवर्णरचितं राम दिव्यास्तरणशोभितम्।
आसनं हि मया दत्तं गृहाण
मणिचित्रितम्॥११॥
इति षोडशोपचारैः पूजयेत्
ॐ अस्य श्रीमन्मानसरामायणश्रीरामचरितस्य श्रीशिवकाकभुशुण्डियाज्ञवल्क्यगोस्वामीतुलसीदासा ऋषयः श्रीसीतरामो देवता श्रीरामनाम बीजं भवरोगहरी भक्तिः शक्तिः मम नियन्त्रिताशेषविघ्नतया श्रीसीतारामप्रीतिपूर्वकसकलमनोरथसिद्धयर्थं पाठे विनियोगः।अथाचमनम्
श्रीसीतारामाभ्यां नमः। श्रीरामचन्द्राय नमः।श्रीरामभद्राय नमः।
इति मन्त्रत्रितयेन आचमनं कुर्यात्। श्रीयुगलबीजमन्त्रेण प्राणायामं कुर्यात्॥
अथ करन्यासः
जग मंगल गुन ग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥अगुंष्ठाभ्यां नमः
राम राम कहि जे जमुहाहीं। तिन्हहि न पापपुंज समुहाहीं॥
तर्जनीभ्यां नमः
राम सकल नामन्ह ते अधिका। होउ नाथ अघ खग गन बधिका॥
मध्यमाभ्यां नमः
उमा दारु जोषित की नाईं। सबहि नचावत रामु गोसाईं॥
अनामिकाभ्यां नमः
सन्मुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥
कनिष्ठिकाभ्यां नमः
मामभिरक्षय रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक॥
करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः
इति करन्यासः
अथ ह्रदयादिन्यासः
जग मंगल गुन ग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥ह्रदयाय नमः।
राम राम कहि जे जमुहाहीं। तिन्हहि न पापपुंज समुहाहीं॥
शिरसे स्वाहा।
राम सकल नामन्ह ते अधिका। होउ नाथ अघ खग गन बधिका॥
शिखायै वषट्।
उमा दारु जोषित की नाईं। सबहि नचावत रामु गोसाईं॥
कवचाय हुम्
सन्मुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥
नेत्राभ्यां वौषट्
मामभिरक्षय रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक॥
अस्त्राय फट्
इति ह्रदयादिन्यासः
अथ ध्यानम्
मामवलोकय पंकजलोचन। कृपा बिलोकनि सोच बिमोचन॥नील तामरस स्याम काम अरि। ह्रदय कंज मकरंद मधुप हरि॥
जातुधान बरुथ बल भंजन। मुनि सज्जन रंजन अघ गंजन॥
भूसुर ससि नव बृंद बलाहक। असरन सरन दीन जन गाहक॥
भुजबल बिपुल भार महि खंडित। खर दूषन बिराध बध पंडित॥
रावनारि सुखरुप भूपबर। जय दसरथ कुल कुमुद सुधाकर॥
सुजस पुरान बिदित निगमागम। गावत सुर मुनि संत समागम॥
कारुनीक ब्यलीक मद खंडन। सब विधि कुसल कोसला मंडन॥
कलि मल मथन नाम ममताहन। तुलसिदास प्रभु पाहि प्रनत जन॥
इति ध्यानम्