विघ्न निवारकं श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम् | Vighna Nivarak Siddhivinayak Stotram
Vighna Nivarak Shri Siddhivinayak Stotram Lyrics in Sanskrit: सिद्धि के दाता गणेश जी को सिद्धि विनायक भी कहते हैं। इसलिए श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम् का नियमित पाठ गणेश जी को प्रसन्न किया जा सकता है। जिससे विनायक जी धनहीन को धन, भाग्यहीन को सुभाग्य, अज्ञानी को उत्तम ज्ञान तथा संतानहीन को संतान का सुख देते हैं, भक्तजनों का जीवन मंगलकारी कर देते हैं।
विघ्न निवारकं श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम्
॥ ॐ गण गणपतये नमः ॥
विघ्नेश विघ्नचयखण्डननामधेय श्रीशङ्करात्मज सुराधिपवन्द्यपाद ।
दुर्गामहाव्रतफलाखिलमङ्गलात्मन् विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ १॥
अर्थ- हे विघ्नेश! हे सिद्धिविनायक ! आपका नाम विघ्न-समूहका खण्डन करने वाला है। आप भगवान शंकरके सुपुत्र है। देवराज इन्द्र आपके चरणोंकी वन्दना करते है। आप पार्वती जी के महान् व्रत के उत्तम फल एवं निखिल मङ्गलरुप है। आप मेरे विघ्नका निवारण करे।
सत्पद्मरागमणिवर्णशरीरकान्तिः श्रीसिद्धिबुद्धिपरिचर्चितकुङ्कुमश्रीः ।
दक्षस्तने वलयितातिमनोज्ञशुण्डो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ २॥
अर्थ- सिद्धिविनायक! आपके श्री विग्रह की कान्ति उत्तम पद्मरागमणि के समान अरुण वर्ण की है। श्री सिद्धि और बुद्धि देवियों ने अनुलेपन करके आपके श्री अङ्कों मे कुङ्कुम की शोभा का विस्तार किया है। आपके दाहिने स्तन पर वलयाकार मुडा हुआ शुण्ड-दण्ड अत्यन्त मनोहर जान पडता है। आप मेरे विघ्न हर हर लीजिये। सिद्धिविनायक!
पाशाङ्कुशाब्जपरशूंश्च दधच्चतुर्भिर्दोर्भिश्च शोणकुसुमस्रगुमाङ्गजातः ।
सिन्दूरशोभितललाटविधुप्रकाशो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ३॥
अर्थ- आप आपके चार हाथों में क्रमशः पाश, अङ्कुश, कमल और परशु धारण करते है, आप लाल फूलों की माला से अलंकृत हैं और उमाके अङ्ग से उत्पन्न हुए है तथा आपके सिन्दूर शोभित ललाट में चन्द्रमा का प्रकाश फैल रहा है, आप मेरे विघ्नों का अपहरण कीजिये। सिद्धिविनायक!
कार्येषु विघ्नचयभीतविरञ्चिमुख्यैः सम्पूजितः सुरवरैरपि मोदकाद्यैः ।
सर्वेषु च प्रथममेव सुरेषु पूज्यो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ४॥
अर्थ- सभी कार्यों मे विघ्न समूह के आ पडने की आशङ्का से भयभीत हुए ब्रह्मा आदि श्रेष्ठ देवताओं ने भी आपकी मोदक आदि मिष्टान्नों से भलीभॉंति पूजा की है। आप समस्त देवताओं मे सबसे पहले ही पूजनीय हैं। आप मेरे विघ्न समूह का निवारण कीजिये। सिद्धिविनायक!
शीघ्राञ्चनस्खलनतुङ्गरवोर्ध्वकण्ठस्थूलोन्दुरुद्रवणहासितदेवसङ्घः ।
शूर्पश्रुतिश्च पृथुवर्तुलतुङ्गतुन्दो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ५॥
अर्थ- आप जल्दी जल्दी चलने, लडखडाने, उच्चस्वरसे शब्द करने, ऊर्ध्वकण्ठ, स्थूल शरीर होने से चन्द्र, रुद्रगण आदि समस्त देवता समुदाय को हँसाते रहते हैं। आपके कान सूप के समान जान पडते हैं, आप मोटा गोलाकार और ऊँचा तुन्द धारण करते हैं। आप मेरे विघ्नों का अपहरण कीजिये।
यज्ञोपवीतपदलंभितनागराजो मासादिपुण्यददृशीकृतऋक्षराजः ।
भक्ताभयप्रद दयालय विघ्नराज विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ६॥
अर्थ- आपने नागराज को यज्ञोपवित का स्थान दे रखा है, आप बालचन्द्र को मस्तक पर धारण कर दर्शनार्थियों को पुण्य प्रदान करते हैं। भक्तों को अभय देने वाले दयाधाम विघ्नराज! सिद्धिविनायक! आप मेरे विघ्नों को हर लीजिये!
सद्रत्नसारततिराजितसत्किरीटः कौसुम्भचारुवसनद्वय ऊर्जितश्रीः ।
सर्वत्रमङ्गलकरस्मरणप्रतापो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ७॥
अर्थ- आपका सुन्दर किरीट उत्तम रत्नों के सार भागों की श्रेणियों से उद्दीप्त होता है। आप कुसुम्भी रंग के दो मनोहर वस्त्र धारण करते हैं, आपकी शोभा कान्ति बहुत बढी-चढी है और सर्वत्र आपके स्मरण का प्रताप सबका मङ्गल करने वाला है। सिद्धिविनायक! आप मेरे विघ्न हरण करे।
देवान्तकाद्यसुरभीतसुरार्तिहर्ता विज्ञानबोधेनवरेण तमोपहर्ता ।
आनन्दितत्रिभुवनेशु कुमारबन्धो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ८॥
अर्थ- सिद्धिविनायक! आप देवान्तक आदि असुरों से डरे हुए देवताओं की पीडा दूर करने वाले तथा विज्ञान बोध के वरदान से सबके अज्ञानान्धकार को हर लेने वाले हैं।
॥ इति विघ्ननिवारकं श्री सिद्धि विनायक स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥