श्री काली प्रातः स्मरण स्तोत्रम् | Shri Kali Pratah Smaran Stotram
Shri Kali Pratah Smaran Stotram: माँ काली के उपासक को माता को प्रसन्न रखने के लिए प्रत्येक प्रातः नियमित इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए। माँ काली प्रसन्न होकर अपने भक्तजनों के सभी संकट दूर करती है, रक्षा करती है साथ ही उनके सभी मनोरथ पूर्ण करती हैं।
श्री काली प्रातः स्मरण स्तोत्रम्
ॐ प्रातर्नमामि मनसा त्रिजगद्-विधात्रीं कल्याणदात्रीं कमलायताक्षीम् ।
कालीं कलानाथ-कलाभिरामां कादम्बिनी-मेचक-काय-कान्तिम् ॥ १॥
अर्थ - अर्थात् तीनों भुवनों की रचना करनेवाली, कल्याण की देनेवाली, कमल-सी सुन्दर आँखोंवाली, चन्द्रमा की कला से सुशोभित, सघन मेघ-सी साँवली काली को मैं प्रातःकाल मन से नमन करता हूँ ॥ १॥
जगत्प्रसूते द्रुहिणो यदर्च्चा-प्रसादतः पाति सुरारिहन्ता ।
अन्ते भवो हन्ति भव-प्रशान्त्यै तां कालिकां प्रातरहं भजामि ॥ २॥
अर्थ - संसार से शान्ति पाने के लिए प्रातःकाल मैं उस काली का भजन करता हूँ, जिसकी पूजा के बल से ब्रह्मा संसार की सृष्टि करते हैं, विष्णु उसका पालन करते हैं और प्रलय-काल में रुद्र नाश करते हैं ॥ २॥
शुभाशुभैः कर्म-फलैरनेक-जन्मनि मे सञ्चरतो महेशि ।
माभूत् कदाचिदपि मे पशुभिश्च गोष्ठी दिवानिशं स्यात् कुल-मार्ग-सेवा ॥ ३॥
अर्थ - हे महेशि ! अच्छे-बुरे कर्मों के फल से अनेक जन्मों में घूमता हुआ, मैं कभी भी पशुओं (अज्ञानियों) का संग न प्राप्त करूं और हमेशा मैं कुल-क्रम से ही तुम्हारी सेवा करता रहूँ ॥ ३॥
वामे प्रिया शाम्भव-मार्ग-निष्ठा पात्रं करे स्तोत्रमये मुखाब्जे ।
ध्यानं हृदब्जे गुरु-कौल-सेवा स्युर्मे महाकालि ! तव प्रसादात् ॥ ४॥
अर्थ - हे महाकाली ! तुम्हारी कृपा से बायीं तरफ मनोनुकूला शक्ति, शिवजी के दिखलाये हुये मार्ग में श्रद्धा, हाथ में पात्र, मुखारविन्द में स्तुति, हृदय में ध्यान, गुरु और कौलों की सेवा, ये सब हों ॥ ४॥
श्रीकालि, मातः, परमेश्वरि ! त्वां प्रातः समुत्थाय नमामि नित्यम् ।
दीनोऽस्म्यनाथोऽस्मि भवातुरोऽस्मि मां पाहि संसार-समुद्र-मग्नम् ॥ ५॥
अर्थ - हे काली ! हे मां ! हे परमेश्वरि ! नित्य मैं सबेरे उठ कर तुम्हें प्रणाम करता हूँ। मैं दीन हूँ, अनाथ हूँ, संसार से व्याकुल हूँ, संसार-रूपी सागर में डूबे हुए मेरी रक्षा करो ॥ ५॥
प्रातः-स्तवं यः पर-देवतायाः श्रीकालिकायाः शयनावसाने ।
नित्यं पठेत् तस्य मुखावलोकादानन्दकन्दाङ्कुरितं मनस्स्यात् ॥ ६॥
अर्थ - सोते से उठकर जो सबसे बडी देवता श्री कालिका के प्रातः-स्तव का पाठ करता है, उसका मुख देखने से मन में आनन्द जाग उठता है ॥ ६॥
॥ इति श्रीकालीप्रातःस्मरणस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥