श्री गणेश प्रातः स्मरण स्तोत्रम् | Shri Ganesh Pratah Smaran Stotram
Shri Ganesh Pratah Smaran Stotram:
श्री गणेश प्रातः स्मरण स्तोत्रम्
प्रात: स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं
सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम् ।
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड –
माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम् ॥ १ ॥
अर्थ – जो इन्द्र आदि देवेश्वरों के समूह से वन्दनीय हैं, अनाथों के बन्धु हैं, जिनके युगल कपोल सिन्दूर राशि से अनुरंजित हैं, जो उद्दण्ड(प्रबल) विघ्नों का खण्डन करने के लिए प्रचण्ड दण्डस्वरुप हैं, उन श्रीगणेश जी का मैं प्रात:काल स्मरण करता/करती हूँ।
प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमान –
मिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानम् ।
तं तुन्दिलं द्विरसनाधिपयज्ञसूत्रं
पुत्रं विलासचतुरं शिवयो: शिवाय ॥ २ ॥
अर्थ – जो ब्रह्मा से वन्दनीय हैं, अपने सेवक को उसकी इच्छा के अनुकूल पूर्ण वरदान देने वाले हैं, तुन्दिल हैं, सर्प ही जिनका यज्ञोपवीत है, उन क्रीडाकुशल शिव-पार्वती के पुत्र श्रीगणेश जी को मैं कल्याण प्राप्ति के लिए प्रात:काल नमस्कार करता/करती हूँ।
प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्तशोकदावानलं
गणविभुं वरकुण्जरास्यम् ।
अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाह-
मुत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्य ॥ ३ ॥
अर्थ – जो अपने जन को अभय प्रदान करने वाले हैं, भक्तों के शोकरुप वन के लिए दावानल(वन की अग्नि) हैं, गणों के नायक हैं, जिनका मुख श्रेष्ठ हाथी के समान है और जो अज्ञान रूपी वन को नष्ट करने के लिए अग्नि हैं, उन उत्साह बड़ाने वाले शिवसुत(शिव पुत्र) को मैं प्रात:काल भजता हूँ।
श्लोकत्रयमिदं पुण्यं सदा साम्राज्यदायकम् ।
प्रातरुत्थाय सततं य: पठेत्प्रयत: पुमान्॥ ४ ॥
अर्थ – जो पुरुष प्रात: समय उठकर संयतचित्त से इन तीन पवित्र श्लोकों का नित्य पाठ करता है, यह श्लोक उसे सर्वदा साम्राज्य प्रदान करता है।
॥ इति श्रीगणेशप्रात: स्मरणस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥