दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्रम् | Daridra Dahan Shiv Stotra with meaning in Hindi
Daridra Dahan Shiv Stotra in Hindi:
Daridra Dahan Shiv Stotra |
दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्रम्
विश्वेश्वराय नरकार्णव तारणाय
कणामृताय शशिशेखरधारणाय ।
कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥१॥
अर्थ – समस्त चराचर विश्व के स्वामीरूप विश्वेश्वर, नरकरूपी संसारसागर से उद्धार करने वाले, कानों से श्रवण करने में अमृत के समान नाम वाले, अपने भाल पर चन्द्रमा को आभूषणरूप में धारण करने वाले, कर्पूर की कान्ति के समान धवल वर्ण वाले, जटाधारी और दरिद्रतारूपी दु:ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है॥१॥
गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय
कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय ।
गंगाधराय गजराजविमर्दनाय
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥२॥
अर्थ– माता गौरी के अत्यन्त प्रिय, रजनीश्वर (चन्द्रमा) की कला को धारण करने वाले, काल के भी अन्तक (यम) रूप, नागराज को कंकणरूप में धारण करने वाले, अपने मस्तक पर गंगा को धारण करने वाले, गजराज का विमर्दन करने वाले और दरिद्रतारूपी दु:ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है॥२॥
भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय
उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय ।
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥३॥
अर्थ – भक्तिप्रिय, संसाररूपी रोग एवं भय के विनाशक, संहार के समय उग्ररूपधारी, दुर्गम भवसागर से पार कराने वाले, ज्योति:स्वरूप, अपने गुण और नाम के अनुसार सुन्दर नृत्य करने वाले तथा दरिद्रतारूपी दु:ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है॥३॥
चर्मम्बराय शवभस्मविलेपनाय
भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय ।
मंझीरपादयुगलाय जटाधराय
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥४॥
अर्थ – व्याघ्रचर्मधारी, चिताभस्म को लगाने वाले, भालमें तीसरा नेत्र धारण करने वाले, मणियों के कुण्डल से सुशोभित, अपने चरणों में नूपुर धारण करने वाले जटाधारी और दरिद्रतारूपी दु:ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है॥४॥
पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय ।
आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥५॥
अर्थ – पांच मुख वाले, नागराजरूपी आभूषणों से सुसज्जित, सुवर्ण के समान वस्त्र वाले अथवा सुवर्ण के समान किरणवाले, तीनों लोकों में पूजित, आनन्दभूमि (काशी) को वर प्रदान करने वाले, सृष्टि के संहार के लिए तमोगुणाविष्ट होने वाले तथा दरिद्रतारूपी दु:ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है॥५॥
भानुप्रियाय भवसागरतारणाय
कालान्तकाय कमलासनपूजिताय ।
नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥६॥
अर्थ – सूर्य को अत्यन्त प्रिय अथवा सूर्य के प्रेमी, भवसागर से उद्धार करने वाले, काल के लिए भी महाकालस्वरूप, कमलासन (ब्रह्मा) से सुपूजित, तीन नेत्रों को धारण करने वाले, शुभ लक्षणों से युक्त तथा दरिद्रतारूपी दु:ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है॥६॥
रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय ।
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥७॥
अर्थ– मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम को अत्यन्त प्रिय अथवा राम से प्रेम करने वाले, रघुनाथजी को वर देने वाले, सर्पों के अतिप्रिय, भवसागररूपी नरक से तारने वाले, पुण्यवानों में अत्यन्त पुण्य वाले, समस्त देवताओं से सुपूजित तथा दरिद्रतारूपी दु:ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है॥७॥
मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय ।
मातङ्गचर्मवसनाय महेश्वराय
दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥८॥
अर्थ– मुक्तजनों के स्वामीरूप, चारों पुरुषार्थों के फल को देने वाले, प्रमथादिगणों के स्वामी, स्तुतिप्रिय, नन्दीवाहन, गजचर्म को वस्त्ररूप में धारण करने वाले, महेश्वर तथा दरिद्रतारूपी दु:ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है॥८॥
फल श्रुति –
वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणं।
सर्वसंपत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम् ।
त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात् ॥९॥
अर्थ–ऋषि वशिष्ठ द्वारा रचित यह स्तोत्र समस्त रोगों को दूर करने वाला, शीघ्र ही समस्त सम्पत्तियों को प्रदान करने वाला और पुत्र-पौत्रादि वंश-परम्परा को बढ़ाने वाला है। इस स्तोत्र का जो मनुष्य नित्य तीनों कालों में पाठ करता है, उसे निश्चय ही स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। दरिद्रतारूपी दु:ख के विनाशक भगवान शिव को मेरा नमस्कार है॥९॥
॥इति वसिष्ठ विरचितं दारिद्र्यदहनशिवस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥