सम्पूर्ण हनुमान उपासना | Shri Hanuman Upasna
Shri Hanuman Upasana: हनुमान जी के बारे में कहा जाता है कि चारों युगों और तीनों लोकों में उनका ही प्रताप फैला हुआ है। इसीलिए कलियुग में भी उनके भक्तों की संख्या सर्वाधिक है। परंतु भक्त जनों को यह स्पष्ट ज्ञात नहीं है, कि हनुमान जी की उपासना कैसे की जाए? अपने कष्टों के निराकरण के लिये हनुमान जी की सहायता कैसे ली जाए? इस पोस्ट के माध्यम से सम्पूर्ण हनुमान उपासना की जानकारी मिल जाएगी।
Shri Hanuman Upasana |
हनुमान उपासना
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हनुमान जी के बारे में
हनुमान जी को साहस, शक्ति, वफादारी तथा निस्वार्थ सेवा के लिए जाना जाता है। महाकाव्य रामायण में हनुमान जी को भगवान राम जी का सबसे बड़ा भक्त बताया गया है। इनकी नित दिन आराधना करने से मनोवांछित वरदान प्राप्त होता है। पुराणों के अनुसार भगवान हनुमान जी को शिव जी का रुद्रावतार माना जाता है। शिव पुराण के अनुसार हनुमान जी ही शिवजी के ग्यारहवें अवतार हैं। ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे हुआ था।
हनुमान जी के जन्म-स्थान का रहस्य
शास्त्रानुसार हनुमान जी की माता का नाम अंजना था। जो अपने पूर्व जन्म में एक अप्सरा थीं। अंजना ब्रह्मा लोक की एक अप्सरा थी, उन्हें एक ऋषि ने बंदरिया बनने का श्राप दिया था। श्राप अनुसार जिस दिन अंजना को किसी से प्रेम हो जाएगा, उसी क्षण वह बंदरिया बन जाएगी तथा उनका पुत्र लेकिन उसका पुत्र भगवान शिव का रूप होगा। अंजना अपनी अपनी युवा अवस्था में केसरी से प्रेम करने लगी। जिससे वह वानर बन गई तथा उनका विवाह वानर राज केसरी से हुआ।
पहले जन्मस्थान का मत: माता-पिता के कारण हनुमान जी को आंजनेय और केसरीनंदन कहा जाता है। केसरी जी को कपिराज कहा जाता था, क्योंकि वे वानरों की कपि नाम की जाति से थे। केसरी जी कपि क्षेत्र के राजा थे। कपिस्थल कुरु साम्राज्य का एक प्रमुख भाग था। हरियाणा का कैथल पहले करनाल जिले का भाग था। यह कैथल ही पहले कपिस्थल था। कुछ शास्त्रों में ऐसा वर्णन आता है की कैथल ही हनुमान जी का जन्म स्थान है।
दुसरे जन्मस्थान का मत: गुजरात स्थित डांग जिला रामायण काल में दंडकारण्य प्रदेश के रूप में पहचाना जाता था। मान्यता अनुसार यहीं भगवान राम व लक्ष्मण को शबरी ने बेर खिलाए थे। आज यह स्थल शबरी धाम नाम से जाना जाता है। डांग जिले के आदिवासियों की सबसे प्रबल मान्यता यह भी है कि डांग जिले के अंजनी पर्वत में स्थित अंजनी गुफा में ही हनुमान जी का भी जन्म हुआ था। कहा जाता है कि अंजनी माता ने अंजनी पर्वत पर ही कठोर तपस्या की थी और इसी तपस्या के फलस्वरूप उन्हें पुत्र रत्न यानि की हनुमान जी की प्राप्ति हुई थी। माता अंजनी ने अंजनी गुफा में ही हनुमान जी को जन्म दिया था।
तीसरे जन्मस्थान का मत: धार्मिक मान्यताओं के अनुसान हनुमान जी का जन्म झारखंड राज्य के गुमला जिला के आंजन गांव की एक गुफा में हुआ था। मान्यताओं अनुसान आंजन गांव में ही माता अंजनी निवास करती थी और इसी गांव की एक पहाड़ी पर स्थित गुफा में रामभक्त हनुमान का जन्म हुआ था। इसी विश्वास के साथ यहां के जनजाति भी बड़ी संख्या में भक्ति और श्रद्धा के साथ माता अंजनी और भगवान महावीर की पूजा करते है। यहां बालक पवन सुत हनुमान को माता अंजनी की गोद में लिए हुए एक पत्थर की प्राचीन मूर्ति स्थापित है।
चौथे जन्मस्थान का मत: "पंपासरोवर'' अथवा ''पंपासर'' होस्पेट तालुका, मैसूर का एक पौराणिक स्थान है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायण कालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में, पंपासरोवर स्थित है। यहां स्थित एक पर्वत में एक गुफा भी है जिसे रामभक्तनी शबरी के नाम पर ''शबरी गुफा'' कहते हैं। इसी के निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध ''मतंगवन'' था। हंपी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है। कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमान जी का जन्म हआ था। मतंग नाम की आदिवासी जाति से हनुमान जी का गहरा संबंध रहा है।
हनुमान के द्वारा सूर्य को फल समझना
एक दिन हनुमान जी की माता फल लाने के लिये इन्हें आश्रम में छोड़कर चली गईं। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने के लिये आकाश में उड़ने लगे। उनकी सहायता के लिये पवन भी बहुत तेजी से चला। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया। जिस समय हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था। हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की कि देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे। आज जब अमावस्या के दिन मैं सूर्य को ग्रस्त करने के लिये गया तो मैंने देखा कि एक दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है।
राहु की बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और राहु को साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमान जी सूर्य को छोड़कर राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमान जी पर वज्र का प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर जा गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक ली। इससे कोई भी प्राणी साँस न ले सका और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गये। ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मूर्छत हनुमान को गोद में लिये उदास बैठे थे। जब ब्रह्मा जी ने उन्हें जीवित कर दिया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सब प्राणियों की पीड़ा दूर की। फिर ब्रह्माजी ने कहा कि कोई भी शस्त्र इनके अंग को छेद नहीं कर सकता। इन्द्र ने कहा कि इसका शरीर वज्र से भी कठोर होगा। सूर्यदेव ने कहा कि मैं इसे अपने तेज का शतांश प्रदान करता हूँ, साथ ही शास्त्र मर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया। वरुण ने कहा मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा। यमदेव ने अवध्य और नीरोग रहने का आशीर्वाद दिया। यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदि देवों ने भी अमोघ वरदान दिये।
बजरंगबली कैसे बने पंचमुखी हनुमान
जब राम और रावण की सेना के मध्य भयंकर युद्ध चल रहा था और रावण अपने पराजय के समीप था तब इस समस्या से उबरने के लिए उसने अपने मायावी भाई अहिरावन को याद किया जो मां भवानी का परम भक्त होने के साथ साथ तंत्र मंत्र का का बड़ा ज्ञाता था। उसने अपने माया के दम पर भगवान राम की सारी सेना को निद्रा में डाल दिया तथा राम एव लक्ष्मण का अपरहण कर उनकी देने उन्हें पाताल लोक ले गया। कुछ घंटे बाद जब माया का प्रभाव कम हुआ तब विभिषण ने यह पहचान लिया कि यह कार्य अहिरावन का है और उसने हनुमानजी को श्री राम और लक्ष्मण सहायता करने के लिए पाताल लोक जाने को कहा। पाताल लोक के द्वार पर उन्हें उनका पुत्र मकरध्वज मिला और युद्ध में उसे हराने के बाद बंधक श्री राम और लक्ष्मण से मिले। वहां पांच दीपक उन्हें पांच जगह पर पांच दिशाओं में मिले जिसे अहिरावण ने मां भवानी के लिए जलाए थे। इन पांचों दीपक को एक साथ बुझाने पर अहिरावन का वध हो जाएगा इसी कारण हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धरा। उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख। इस रूप को धरकर उन्होंने वे पांचों दीप बुझाए तथा अहिरावण का वध कर राम,लक्ष्मण को उस से मुक्त किया।
इसी प्रसंग में हमें एक दूसरी कथा भी मिलती है कि जब मरियल नाम का दानव भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र चुराता है और यह बात जब हनुमान को पता लगती है तो वह संकल्प लेते हैं कि वे चक्र पुनः प्राप्त कर भगवान विष्णु को सौप देंगे। मरियल दानव इच्छानुसार रूप बदलने में माहिर था अत: विष्णु भगवान ने हनुमानजी को आशीर्वाद दिया, साथ ही इच्छानुसार वायुगमन की शक्ति के साथ गरुड़-मुख, भय उत्पन्न करने वाला नरसिंह-मुख, हयग्रीव मुख ज्ञान प्राप्त करने के लिए तथा वराह मुख सुख व समृद्धि के लिए था। पार्वती जी ने उन्हें कमल पुष्प एवं यम-धर्मराज ने उन्हें पाश नामक अस्त्र प्रदान किया। आशीर्वाद एवं इन सबकी शक्तियों के साथ हनुमान जी मरियल पर विजय प्राप्त करने में सफल रहे। तभी से उनके इस पंचमुखी स्वरूप को भी मान्यता प्राप्त हुई।
हनुमान जी का नामकरण
इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत मे हनु) टूट गई थी| इसलिये उनको हनुमान का नाम दिया गया। इसके अलावा ये अनेक नामों से प्रसिद्ध है जैसे बजरंग बली, मारुति, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, शंकर सुवन आदि।
हनुमान जी के पुत्र
पिता केसरी तथा माता अंजना जी के पुत्र हनुमान जी के बारे में पुराणों में कहा
गया है कि हनुमान जी, ब्रह्मचारी थे लेकिन इनका एक पुत्र था, जिसका नाम मकरध्वज
था। मकरध्वज की उत्पत्ति हनुमान जी के पसीने से हुई थी जो एक मछली ने ग्रहण कर
लिया था।
हनुमान जयंती
हनुमान जयंती का पर्व हनुमान जी के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विशेष विधि-विधान द्वारा हनुमान जी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि हनुमान जी की पूजा करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं तथा मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
हनुमान जी का मंत्र
1. मान्यता है कि 'ॐ श्री हनुमते नम:' का जाप करने से भक्तिभाव, सकारात्मक सोच, शक्ति की बढ़ोत्तरी होती है।
2. प्रेत आदि की बाधा निवृति हेतु हनुमान जी के इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
ॐ दक्षिणमुखाय पच्चमुख हनुमते करालबदनाय नारसिंहाय ॐ हां हीं हूं हौं हः सकलभीतप्रेतदमनाय स्वाहाः।
प्रनवउं पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन।
जासु हृदय आगार बसिंह राम सर चाप
घर॥
3. भय नाश करने के लिए हनुमान मंत्र:
हं हनुमंते नम:
4. प्रेत भुत बाधा दूर करने के लिए मंत्र:
हनुमन्नंजनी सुनो वायुपुत्र महाबल:।
अकस्मादागतोत्पांत नाशयाशु
नमोस्तुते॥
5. द्वादशाक्षर हनुमान मंत्र :
ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्।
6. मनोकामना पूर्ण करवाने के लिए मंत्र:
महाबलाय वीराय चिरंजिवीन उद्दते।
हारिणे वज्र देहाय
चोलंग्घितमहाव्यये॥
7. शत्रुओ और रोगों पर विजय पाने के लिए :
ऊँ नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय
रामदूताय स्वाहा।
8. संकट दूर करने का हनुमान मंत्र :
ऊँ नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय
रामदूताय स्वाहा।
हनुमान जी से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें –
- हनुमान जी एक राम भक्त थे।
- इनकी हनुमान चालीसा को पढ़ने से सभी दरिद्रता, भय का नाश हो जाता है।
- शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा करने से सभी दुख-दर्द दूर होते हैं।
- हनुमान जी की मंगलवार के दिन विशेष रूप से पूजा की जाती है।
- शनि साढ़ेसाती या महादशा से पीड़ित जातकों को प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करना लाभदायक होता है।