हरतालिका तीज व्रत कथा, पूजा विधि एवं इसका महत्व | Hartalika Teej Vrat Katha
हरतालिका तीज व्रत कथा
लिंग पुराण की एक कथा के अनुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा पीकर ही व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे।
इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वह बहुत दुखी हो गई और जोर-जोर से विलाप करने लगी। फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं। तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गई और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई।
भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।
मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वह अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं। साथ ही यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशी बरकरार रखने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है। उत्तर भारत के कई राज्यों में इस दिन मेहंदी लगाने और झुला-झूलने की प्रथा है।
हरतालिका तीज व्रत पूजा विधि
हरतालिका तीज के दिन माँ पार्वती और भगवान शंकर की पूरी विधि-विधान से प्रदोषकाल में पूजा की जाती है। दिन और रात के मिलन का समय प्रदोषकाल कहा जाता है।
इस व्रत की पात्र कुमारी कन्याएं या सुहागिन महिलाएं दोनों ही हैं। लेकिन एक बार व्रत रखने बाद जीवन भर इस व्रत को रखना पड़ता है। यदि व्रती महिला गंभीर रोगी हालात में हो तो उसके बदले में दूसरी महिला या उसका पति भी इस व्रत को रख सकने का विधान है।
इस व्रत पर सौभाग्यवती स्त्रियां नए लाल वस्त्र पहनकर, मेंहदी लगाकर, सोलह श्रृंगार करती है और शुभ मुहूर्त में भगवान शिव और मां पार्वती जी की पूजा आरम्भ करती है। इस पूजा में शिव-पार्वती की मूर्तियों का विधिवत पूजन किया जाता है और फिर हरतालिका तीज की कथा को सुना जाता है। माता पार्वती पर सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है। भक्तों में मान्यता है कि जो सभी पापों और सांसारिक तापों को हरने वाले हरतालिका व्रत को विधि पूर्वक करता है, उसके सौभाग्य की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं।
इस व्रत के व्रती को शयन का निषेध है इसके लिए उसे रात्रि में भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करना पड़ता है प्रातः काल स्नान करने के पश्चात् श्रद्धा एवम भक्ति पूर्वक किसी सुपात्र सुहागिन महिला को श्रृंगार सामग्री, वस्त्र, खाद्य सामग्री, फल, मिठाई और यथा शक्ति आभूषण का दान करना चाहिए।
हरतालिका तीज व्रत का महत्व
व्रत पति के लिए किए जाने वाले बाकि सभी व्रतों से ज़्यादा मुश्किल है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहना होता है, साथ ही इस व्रत में शयन भी निषेध है। व्रती को रातभर जगकर भजन-कीर्तन करना पड़ता है।
यह व्रत बहुत ही महत्वपर्ण माना जाता है, इसीलिए स्त्रियां इस व्रत को रखना अपना सौभाग्य समझती है। यह व्रत वैवाहिक जीवन में खुशी बरकरार रखने के उद्देश्य से भी किया जाता है। उत्तर भारत में महिलाएं व्रत रखने के साथ-साथ इस दिन झूला भी झूलती हैं।
जानें कैसे पड़ा यह नाम?
हरतालिका- हरित और तालिका दो शब्दों से मिलकर बना है। हरित का अर्थ होता है हरण करना, तालिका का मतलब है सखी और तीज शब्द तृतीया तिथि से लिया गया है। इस व्रत को हरितालिका इसलिए कहा जाता है, क्योंकि माता पार्वती की सखी उन्हें उनके पिता के घर से हरण कर जंगल में लेकर चली गई थीं ताकि माता पार्वती के पिता उनका विवाह भगवान विष्णु से न करा दें।
इस प्रकार इस पर्व का नाम हरतालिका तीज पड़ा। हरतालिका तीज व्रत जितना फलदायी है, उतने ही ज़्यादा कठिन इसके नियम हैं। माना गया है कि इस व्रत के नियम हरियाली तीज और कजरी तीज के व्रत से भी ज़्यादा कठोर हैं।