विद्यार्थी और राष्ट्र-निर्माण पर निबंध | Essay on Student and Nation Building
Vidyarthi aur Rashtra Nirman par nibandh: किसी भी राष्ट्र की नींव उसके नागरिक होते हैं, विद्यार्थी से उस नीव की मजबूती का निर्धारण होता है। इसीलिए विभिन्न परीक्षाओं के लिए यह निबन्ध अत्यंत महत्वपूर्ण है।
विद्यार्थी और राष्ट्र-निर्माण पर निबंध
संकेत बिंदु- (1) विद्यार्थी के चिन्तन मनन से राष्ट्र-निर्माण (2) राष्ट्र-निर्माण विद्यार्थी की भूमिका (3) आत्म-शक्ति की पहचान से राष्ट्र-निर्माण (4) राष्ट्र की समस्याओं के हल में सहायक (5) देश की सुंदरता बढ़ाने में मददगार।
विद्यार्थी के चिन्तन मनन से राष्ट्र-निर्माण
आज का विद्यार्थी कल राष्ट्र की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक, वैज्ञानिक, औद्योगिक, तकनीकी आदि पहलुओं का संचालक होगा, संवर्द्धक होगा। अत: विद्यार्थी का अध्ययन और चिन्तन-मनन में निष्ठापूर्वक संलग्न रहना ही राष्ट्र-निर्माण की प्रमुख भूमिका होगी। इन्हीं में से देश को श्रेष्ठ वैज्ञानिक मिलेंगे, विधिवेत्ता मिलेंगे, व्यापारी और टैक्नीशियन मिलेंगे, शिक्षा-शास्त्री, समाज-शास्त्री और अर्थ-शास्त्री मिलेंगे। देश के सुव्यवस्थित संचालन के लिए निष्ठावान् लिपिक और अधिकारी मिलेंगे। राष्ट्र-प्रेमी राजनीतिज्ञ मिलेंगे, जो परिवार, वंश, दल, धर्म तथा सम्प्रदाय की भावना से ऊपर उठकर राष्ट्र का नेतृत्व करेंगे। इस प्रकार आज का विद्यार्थी अपने अध्ययन से राष्ट्र की नींव को सुदृढ़ करेगा। उस सुदृढ़ नींव पर राष्ट्र रूपी प्रासाद की उत्कृष्ट रचना संभव होगी। कच्ची नींव में पक्का घर नहीं बन सकता। उर्दू शायर हाली ने सच ही कहा है-
कब तक आखिर ठहर सकता है वह घर।
आ गया बुनियाद में जिसकी खलल॥
राष्ट्र-निर्माण विद्यार्थी की भूमिका
राष्ट्र-निर्माण में विद्यार्थी की भूमिका को समझते हुए ही भारतीय-संविधान में ६३वों संशोधन कर मतदाता की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई है। परिणामतः विद्यार्थी मतदान द्वारा राष्ट्र-निर्माण के कार्य में अपने कर्तव्य की पूर्ति करने लगा।
विद्यार्थी-जीवन में राष्ट्र-प्रेम, राष्ट्र के प्रति अनन्य निष्ठा तथा राष्ट्र-हित सर्वस्व बलिदान की भावना का पोषण राष्ट्र-रचना का दूसरा पक्ष होगा। विद्यार्थी के मन में ये भाव कूट-कूट कर भरे होने चाहिए कि यह देश ही मेरी मातृभूमि है, पुण्यभूमि है। इन तत्त्वों के अभाव में राष्ट्र-भावना खंडित होगी, निष्ठा अधूरी होगी। खंडित भावना और अधूरी निष्ठा से सम्प्रदायवाद पनपेगा। संप्रदायवाद राष्ट्र को अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक में बाँटेगा। राष्ट्र की प्राचीन संस्कृति और राष्ट्र के जीवन-मूल्यों की अवहेलना करेगा। देश में साम्प्रदायिक झगड़ों का विष-वृक्ष बोकर पुनः देश के एक और विभाजन की ओर अग्रसर करेगा। 14 अगस्त, 1947 (पाकिस्तान का उदय-दिवस) और आज का उग्रवाद या आतंकवाद राष्ट्र-प्रेम के अभाव के मुंह बोलते चित्र ही तो हैं।
आत्म-शक्ति की पहचान से राष्ट्र-निर्माण
विद्यार्थी-जीवन में विद्यार्थी अपनी आत्म-शक्ति की पहचान बढ़ाकर राष्ट्र-निर्माण का पुण्य कार्य कर सकता है। आत्म-शक्ति की पहचान से आत्म-तेज जागृत होगा। राष्ट्रप्रेम की ज्वाला धधकेगी। उसका पुरुषार्थ और पौरुष राम के रूप में उपस्थित होगा। उसकी कला-भावना कृष्ण के रूप में उपस्थित होगी और निर्वेद बुद्ध के रूप में उपस्थित होगा। आत्मशक्ति प्रकट होगी मर्यादित और संयमपूर्ण जीवन से। महादेवी जी विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहती हैं 'यदि आप अपनी सारी शक्तियों को, अपनी शारीरिक शक्तियों को, आत्मिक शक्तियों को, अपनी आस्था को, विश्वास को अपने में समेट लें और देखें कि आपके पास क्या शक्ति है तो वास्तव में प्रलय के बादल छंट जाएंगे, (राष्ट्रनिर्माण के) मार्ग की जितनी भी बाधाएँ हैं, वे हट जाएंगी।'
प्रत्येक राष्ट्र के अपने जीवन-मूल्य होते हैं। ये जीवन-मूल्य राष्ट्र की रीढ़ होते हैं। कारण, यह राष्ट्र-जीवन की सहस्रों वर्षों की तपस्या और साधना का सार होता है। लोकतंत्र में आस्था, सम्प्रदाय-निरपेक्षिता में विश्वास, सर्व-धर्म समादर, मानवीय-भेदभाव के प्रति घृणा भारत के जीवन-मूल्य हैं। इन जीवन-मूल्यों के प्रति हार्दिक प्रेम और तर्क से फलित आस्था को बढ़ाना ही राष्ट्र-निर्माण के पुनीत कार्य में योगदान होगा।
राष्ट्र की समस्याओं के हल में सहायक
प्रत्येक राष्ट्र की अपनी निजी समस्याएं होती हैं। उन समस्याओं से जूझना, लड़ना विद्यार्थी का दायित्व नहीं है, पर उसके दायित्व का भान मन में रहना चाहिए। आतंकवाद भारत की प्रमुख समस्या है। विद्यार्थी को आतंकवाद के विरुद्ध खड़ा नहीं होना चाहिए। यह सरकार की जुम्मेदारी है। हाँ, यदि वह बस या अन्य किसी स्थान पर ऐसी चीज देखता है, जिसमें विस्फोटक सामग्री की सम्भावना हो सकती है, तो वह पुलिस को सूचित कर सकता है।
देश की दूसरी ज्वलंत समस्या आर्थिक दृष्टि से दिवालियापन की है। करचोरी, तस्करी, कालाबाजारी को रोकना सत्ता का काम है, विद्यार्थी का नहीं। वह तो अपने लिए या परिवार के लिए अनावश्यक चीजों की खरीद न करके बढ़ती मांग को रोक सकता है।
आज देश में असंख्य अशिक्षित हैं। इसके लिए छात्र ग्रीष्म तथा शरद् अवकाश के दिनों में उन अनपढ़ों को पढ़ा सकता है। श्रमदान द्वारा ग्रामीणों के जीवन में परिवर्तन ला सकता है। प्राकृतिक आपदाओं के समय यथासम्भव पीड़ितों की सहायक कर सकता है।
देश की सुंदरता बढ़ाने में मददगार
राष्ट्र के निर्माण में विद्यार्थी देश के सौन्दर्य-बोध को बढ़ाकर योगदान दे सकता है। घर का कूड़ा सड़क पर फेंकना; केला खाकर छिलका रास्ते में फेंकना; अश्लील शब्दों का उच्चारण करना, चुगली करना; गली, घर, स्कूल, कार्यालय को गंदा करना;सार्वजनिक स्थानों, जीनों के कोनों में पीक थूकना; उत्सवों, मेलों, रेलों, बसों तथा खेलों में ठेलमठेल करना आदि अप-कर्म देश के सौन्दर्य-बोध को आघात पहुंचाते हैं। इनको अपने जीवन में स्थान न देकर तथा इनके विरुद्ध अपना स्वभाव बनाकर और अन्यों को प्रेरित कर देश के सौन्दर्य-बोध को बढ़ा सकता है।
राष्ट्र-रक्षा और उसकी आर्थिक उन्नति सरकार का दायित्व है, कर्तव्य है। सत्ता की राजनीति में भाग लेना विद्यार्थी के लिए हितकर नहीं। इसलिए क्षुद्र राजनीति से बचते हुए अपने अन्दर शैक्षणिक योग्यता, राष्ट्र-प्रेम, आत्म-शक्ति, जीवन-मूल्यों में आस्था, सौन्दर्य-बोध से प्रेम तथा सामजिक कृत्यों द्वारा राष्ट्र-निर्माण के पुण्य कार्य में विद्यार्थी अपनी भूमिका निभा सकता है।