विद्यार्थी और सिनेमा पर निबंध | Essay on Student and Cinema in Hindi
Vidyarthi aur Cinema par nibandh: आजकल सिनेमा समाज के हर हिस्से पर अपनी छाप छोड़ रहा है। विद्यार्थी जीवन तो सीखने के लिए ही जाना जाता है। इसलिए सिनेमा उसके जीवन पर अच्छे और बुरे दोनों प्रभाव डालता है। इस विषय पर एक अच्छा निबन्ध निम्नलिखित है।
विद्यार्थी और सिनेमा पर निबंध
संकेत बिंदु- (1) विद्यार्थी का पूजा स्थल (2) अभिनेता व अभिनेत्री विद्यार्थियों के आदर्श (3) चलचित्रों की बुराइयों को ग्रहण करना (4) कहानीकार और गायक बनने की लालसा (5) विद्यार्थी का ज्ञानवर्धन।
विद्यार्थी का पूजा स्थल
चलचित्र आज के विद्यार्थी के लिए प्रेयसी के समान है, जिसको देखे बिना उसको जीवन शून्य-सा लगता है। चलचित्र के संवाद उसके लिए धर्म-ग्रन्थ के श्लोक हैं, जिन्हें कण्ठस्थ करने और उच्चारण करने में उसके जीवन की कृतार्थता है। चलचित्र के गीतसंगीत उसके हृदय को झंकृत करने के उपकरण हैं।
चलचित्रगृह विद्यार्थी का पूजा-स्थल है। उसके नायक-नायिकाओं, अभिनेता-अभिनेत्रियों के चरणों पर वह अपने श्रद्धा-सुमन चढ़ाता है। अपने ड्राइंग रूम में उनके चित्र टाँगता है। अपने पास उनका फोटो रखता है। सिने पत्र-पत्रिकाओं को वह चाव से पढ़ता है। उनके जीवन-चरित्र और 'पिक्चरों' के नाम, संवाद, गीतों को तोते की तरह रटता है। कौन-सा गाना किसने लिखा, गाया, संगीत-बद्ध किया गया और किस नायक, नायिका या अभिनेता, अभिनेत्री पर पिक्चराइज किया गया है, इसे कंठस्थ करता है।
अभिनेता व अभिनेत्री विद्यार्थियों के आदर्श
चलचित्र के अभिनेता और अभिनेत्रियाँ उसके आदर्श हैं। वह उन्हीं की तरह जीवन जीना चाहेगा, बाल बनाएगा, कपड़े पहनेगा, हावभाव बनाएगा, एक्टिंग' करेगा, बोलेगा, भाषण देगा, प्रेम करेगा, लड़कियों का पीछा करेगा, उन्हें छेड़ेगा, चोरी करेगा, डाका डालेगा, बैंक लूटेगा, शराब पीएगा, नशा करेगा, नशे में झूमेगा, ऊटपटाँग बकेगा।
छात्राएँ भी 'सिनेमा शैली' के अनुसार अर्धनग्न शरीरों का प्रदर्शन करेंगी, कामुक हाव-भाव दर्शाएँगी, वक्ष को कृत्रिम ढंग से उभारेंगी, विभिन्न प्रकार से केश-विन्यास करेंगी, कैफे में जायेंगी, सिगरेट पीएँगी, नशा करेंगी, बॉय फ्रैंड बनाएँगी। सार्वजनिक रूप में प्यार का भौंडा प्रदर्शन करेंगी।
चलचित्रों की बुराइयों को ग्रहण करना
विद्यार्थी चलचित्र से प्रभावित होकर प्रेम-विवाह की ओर अग्रसर हुआ। उसने प्रेमिका को पत्नी रूप में स्वीकार किया। जीवन-भर साथ रहने-निभाने की कसमें खाईं। इसके लिए माँ-बाप की इच्छा का अनादर किया। घर छोड़ा, परिवार त्यागा। जाति-बन्धन को ठोकर मारी और दहेज के मुख पर कालिख पोती, पर ऐसे कितने विवाह सफल हुए, यह न पूछिए।
जिन विद्यार्थियों पर चलचित्र का जादू सिर पर चढ़कर बोला वे चलचित्र जगत् के 'हीरो' और 'हीरोइन' बनने के लिए मचल उठे। एक्टिग' सीखा, 'डांसिंग' का अभ्यास किया। चलचित्र नगरी में पहुंचे। अपवादस्वरूप जो सफल हुए, वे कृतार्थ हो गए, शेष बर्बाद हो गए।धन और चरित्र लुटाकर 'लौट के बुद्धु घर को आए' का उदाहरण बन गए।
विद्यार्थी चलचित्र से बुराई को ग्रहण करता है, उसकी अच्छाई से कतराता है। यही कारण है कि चलचित्र का प्रेमी विद्यार्थी चलचित्र के उपदेशों को ग्रहण नहीं करता, गरीबी के अभिशाप से पीड़ित युवती को सहारा नहीं देता, गुण्डों के चंगुल में फंसी युवती की रक्षा नहीं करता।
दूसरी ओर 'ए' सर्टिफिकेट के चलचित्रों को देखने की विद्यार्थी में होड़, लालसा और चाहना, यौवन में रस ढूँढने, नेत्रों को तृप्त करने तथा वासना-विष पीकर नीलकंठ बनने की तमन्ना ही तो है। साढ़े नौ और बारह बजे दिन के शो विद्यार्थियों की इच्छापूर्ति के अमृतकुंड ही तो हैं।
चलचित्र के गीत-संगीत विद्यार्थी के मन-मस्तिष्क पर इतने छाए हैं कि वह उनकी स्वर और धुन सुनने के लिए तड़पता है ।वह रेडियो पर सिनेमा गीत सुनना है। कैसेट लगाकर अपनी तृप्ति करता है। दूरदर्शन पर चलचित्र के गाने चित्रहार, चित्रमाला, चित्रगीत, रंगोली, अन्त्याक्षरी आदि रूपों में अवतरित होते हैं तो छात्र अपनी पढ़ाई-लिखाई, घर के कामकाज, सब कुछ छोड़कर उसी में डूब जाता है। 'काश, एक-दो और गाने सुनवाता' की आहभरी वेदना से व्यथित होता कह उठता है.
छलना थी, तब भी मेरा, उसमें विश्वास घना था।
उस माया की छाया में, कुछ सच्चा स्वयं बना था।
कहानीकार और गायक बनने की लालसा
चलचित्र देख विद्यार्थी ने भी कहानी के 'प्लांट' ढूँढे। कहानीकार बनने को इच्छा जाग्रत हुई। चलचित्र के गीतों से विद्यार्थी के कण्ठों से संगीत के स्वर फूटे। गायन-विद्या की ओर प्रवृत्त हुए। छात्राओं ने नृत्य सीखने में रुचि दर्शाई। 'फोटोग्राफी' की रुचि बलवती बनी। घरों में परिवार-एलबम बनाना इसकी क्रियान्विति ही तो है।
विद्यार्थी का ज्ञानवर्धन
चलचित्रों से विद्यार्थी का ज्ञानवर्धन भी हुआ। अनेक दर्शनीय-स्थल, पवित्र तीर्थ, ऐतिहासिक भवन, सांस्कृतिक-धरोहर तथा कला-कृतियाँ जो जीवन में देख नहीं पाता, वह उन्हें चलचित्रों में देखता है। महापुरुषों, वीरों, शहीदों तथा देशभक्तिपूर्ण चित्रों ने उसमें राष्ट्रभक्ति के भाव भरे। धार्मिक चित्रों ने उसमें धर्म के प्रति आस्था और श्रद्धा जागृत की। चलचित्र से पूर्व सामयिक घटना की झांकियों द्वारा भारत और विदेशों में घटित घटनाओं के प्रत्यक्ष दर्शन किए।
चलचित्रों ने विद्यार्थी-जीवन को दिशा भी दी। सोचने-समझने की शक्ति दी। बातचीत की शैली समझाई। गीत-संगीत की ध्वनि गुनगुनाने की प्रवृत्ति दी। समाज में व्यवहार करना सिखाया। काम निकालने का गुरु-मंत्र सिखाया। युवक-युवतियों को निर्भय होकर सम्पर्क और व्यवहार करने की शिक्षा दी। व्यक्तित्व की महत्ता के उपाय सुझाए। रोजी-रोटी के अनेक अवसर प्रस्तुत किए।