Brihaspativar Vrat Katha: बृहस्पतिवार या गुरुवार का व्रत भगवान बृहस्पति देव को प्रसन्न करने के लिए धारण किया जाता है। इस व्रत से भगवान विष्णु भी प्रसन्न हो जाते हैं। इस व्रत से आपका दुर्भाग्य सौभाग्य में परिवर्तित हो जाता है। कुछ लोग शीघ्र विवाह के लिए भी गुरुवार का व्रत रखते हैं। जीवन में मान सम्मान, अच्छा पद और नौकरी प्राप्ति के लिए गुरुवार व्रत किया जाता है।
बृहस्पति व्रत कथा वीडियो | Brihaspati Vrat Katha Video
बृहस्पतिवार व्रत नियम-
- भक्तजनों को प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर अपने नित्य कर्म करके स्नान करना चाहिए। स्नान के जल में हल्दी या केसर डालकर स्नान करना चाहिए।
- इसके पश्चात पीले कपड़े धारण करना चाहिए, अगर पूर्ण वस्त्र पीले ना हों तो तन पर कम से कम एक वस्त्र पीला अवश्य होना चाहिए।
- इसके भगवान बृहस्पति का पूजन करें, इस व्रत में केले के वृक्ष का पूजन किया जाता है।
- इसके बाद भगवान बृहस्पति के सामने संकल्प करें। (हे! बृहस्पति देव मैं गुरुवार का व्रत धारण करने जा रहा हूँ। आप मेरे इस व्रत को सफल करना और मेरी मनोकामना पूर्ण करना।)
- व्रत के दौरान नमक व खट्टे पदार्थों का सेवन प्रतिबंधित है। इसमें केवल पीली व मीठी वस्तुओं का ही उपयोग करना चाहिए।
- इस व्रत में केला नहीं खाया जाता है, जबकि केला भगवान को अर्पित करके ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए। या प्रसाद के रूप मे बाँट दें या गाय को खिला दें।
- इस व्रत में बालों को धोना, उसमें तेल का सेवन व बाल काटना भी वर्जित है।
- इस दिन ना तो कपड़े स्वयं धोने हैं, ना ही धोबी से कपड़े धुलवाने और इस्तरी करवाने चाहिए। ऐसा करने से लक्ष्मी जी नाराज हो जाती है।
बृहस्पतिवार व्रत की पूजा विधि-
बृहस्पतिवार व्रत की पूजा विधि निमन्वत है-
- स्नान आदि के बाद भगवान सूर्य देवता को जल अर्पित करें।
- तत्पश्चात पीले चन्दन या हल्दी का तिलक लगाएँ।
- घर में ईशान कोण में या पूर्व व उत्तर दिशा में हल्दी का चौक लगाकर लकड़ी का आसन लगा कर उस पर पीला वस्त्र बिछाए।
- तत्पश्चात आसन पर थोड़ी सी चने की दाल रखकर एक कलश की स्थापना करें। कलश पर गाय के घी युक्त दीपक का प्रज्वलन करें।
- आसन पर भगवान विष्णु, कृष्ण या बृहस्पति देव किसी का चित्र भी रखें, और पूजन करें।
- पूजन में भगवान बृहस्पति को 'ॐ गुं गुरवे नमः' बोलकर घी, चने और गुड़ की 5,7 या 11 आहुतियाँ देनी चाहिए। साथ ही तैयार किया हुआ एक पीले भोजन का भगवान को भोग लगाएँ।
- इस व्रत में केले के वृक्ष का पूजन अनिवार्य रूप से किया जाता है। एक लोटे में हल्दी मिला हुआ जल, चने की भीगी हुई दाल और पीले पुष्प भी लें और केले के वृक्ष को अर्पित करें। साथ ही एक छोटा पीला वस्त्र भी अर्पित करें।
भगवान बृहस्पति देव का केले के वृक्ष में वास माना जाता है। यदि बगीचे में केले का वृक्ष है तो वहाँ पर पूजन करें। अथवा गमले में छोटा केले का पेड़ लगा कर आँगन में रखकर उसकी पूजा करें। बृहस्पति भगवान को पीला रंग अत्यंत पसंद है।
बृहस्पतिवार व्रत कथा | Brihaspati Vrat Katha
किसी गांव में एक साहूकार रहता था। उसके घर में अन्न, वस्त्र, धन की भरमार थी, लेकिन उसकी पत्नी अत्यंत कंजूस थी। वह कभी किसी को कुछ भी दान नहीं देती थी। एक बृहस्पतिवार के दिन एक साधु महाराज उसके घर आकर भिक्षा मांगने लगे। साहूकार की स्त्री ने कहा कि महाराज! मैं घर लीप रही हूं। मेरा हाथ खाली नहीं है, अन्यथा मैं आपको भिक्षा अवश्य देती। वही साधु महाराज कुछ दिन बाद फिर पधारे तो उस स्त्री ने कहा कि मैं अभी अपने बच्चे को खाना खिला रही हूं। हाथ खाली नहीं है, आप किसी और समय पधारें।
तब तुम मुझे भिक्षा दोगी?
इसके बाद तीसरी बार भी साधु महाराज के आने पर उसने यही बात कही। उसकी बात सुन साधु ने कहा कि यदि तुम्हें पूरा ही अवकाश मिल जाए, तब तुम मुझे भिक्षा दोगी? उसने कहा कि ऐसा हो जाए, तो आपकी बड़ी कृपा होगी। साधु ने कहा कि मैं तुम्हें उपाय बताता हूं। तुम बृहस्पतिवार को देर से उठना, झाड़ू करके कचरा एक तरफ लगा देना। घर के पुरूषों को दाढ़ी बनवाने अवश्य भेजना। रसोई बनाकर चूल्हे के पीछे रख देना, सामने मत रखना। अंधेरा होने पर दीपक जलाना और गुरुवार को कभी पीले कपड़े मत पहनना, ना ही पीले रंग की वस्तु खाना। ऐसा करने से अतिशीघ्र तुम घर के काम काज से पूरा अवकाश पा जाओगी।
मैं आपको क्या दे सकती हूं?
साहूकार की स्त्री ने साधु की बात मानकर हर बृहस्पतिवार के दिन यही सब उपाय करना शुरू कर दिया। कुछ ही समय बाद घर की दुर्दशा हो गई और भूखों मरने की नौबत आ गई। ऐसे में वही साधु महाराज फिर पधारे और स्त्री से भिक्षा की याचना की। साहूकार की स्त्री ने कहा कि महाराज! मेरे घर में ही खाने को अन्न नहीं है। मैं आपको क्या दे सकती हूं।
अन्न- धन से परिपूर्ण हो जाए
उसकी बात सुनकर साधु ने कहा कि जब तुम्हारे घर में सब कुछ था, तब भी तुम व्यस्त रहने के कारण कुछ नहीं देती थी। अब तो तुम्हारे पास पूरा अवकाश है, अब भी तुम कुछ नहीं दे रही हो। आखिर तुम क्या चाहती हो। अब उस स्त्री ने साधु को पहचान लिया और उनके पैर पकड़कर बोली कि महाराज, कोई ऐसा उपाय बताएं कि मेरे दुर्दिन मिट जाएं और मेरा घर पहले की तरह अन्न- धन से परिपूर्ण हो जाए।
सायंकाल में घर पर दीपक जलाओ
स्त्री की बात सुनकर साधु महाराज ने कहा कि हर बृहस्पतिवार जल्दी उठकर, स्नान से निवृत्त होकर गाय के गोबर से घर लीपो। गुरुवार के दिन घर के पुरूष दाढ़ी ना बनवाएं। भूखों को अन्न-जल देती रहा करो। ठीक सायंकाल में घर पर दीपक जलाओ। यदि ऐसा करोगी तो भगवान बृहस्पति तुम पर कृपा करेंगे और तुम्हारी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। साहूकार की पत्नी ने ऐसा ही किया और उसका घर शीघ्र ही सभी प्रकार के ऐश्वर्य से भर गया।
बृहस्पतिवार व्रत की दूसरी कथा
एक दिन इन्द्र बड़े अहंकार से अपने सिंहासन पर बैठे थे और बहुत से देवता, ऋषि, गंधर्व, किन्नार आदि सभा में उपस्थित थे। जिस समय बृहस्पति जी वहां पर आये तो सब के सब उनके सम्मान के लिए खड़े हो गये परन्तु इन्द्र गर्व के मारे खड़ा न हुआ, यद्यपि वह सदैव उनका आदर किया करता था।
बृहस्पति जी अपना अनादर समझते हुए वहां से उठकर चले गये। तब इन्द्र को बड़ा शोक हुआ कि मैंने गुरुजी का अनादर कर दिया, मुझसे बड़ी भूल हुई है। गुरुजी के आशीर्वाद से ही मुझको यह वैभव मिला है। उनके क्रोध से य़ह सब नष्ट हो जाएगा इसलिए उनके पास जाकर उनसे क्षमा मांगनी चाहिये।
ऐसा विचार कर इन्द्र उनके स्थान पर गये। जब बृहस्पति जी ने अपने योग बल से यह जान लिया कि इन्द्र क्षमा मांगने के लिए यहां पर आ रहा है तब क्रोध वश उससे भेंट करना उचित न समझकर अंतर्ध्यान हो गये।
जब इन्द्र ने बृहस्पति जी को न देखा तब निराश होकर लौट आये। जब दैत्यों के राजा वृषवर्मा को यह समाचार विदित हुआ तो उसने गुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से इन्द्रपुरी को चारों तरफ से घेर लिया।
गुरु की कृपा न होने के कारण देवता हारने व मार खाने लगे। तब उन्होंने ब्रह्माजी को विनय पूर्वक सब वृतांत सुनाया और कहा कि महाराज दैत्यों से किसी प्रकार बचाईये।
तब ब्रह्मा जी कहने लगे कि तुमने बड़ा अपराध किया है जो गुरूदेव को क्रोधित कर दिया। अब तुम्हारा कल्याण इसी में हो सकता है कि त्वष्टा ब्राह्मण का पुत्र विश्वरूप जो बड़ा तपस्वी और ज्ञानी है उसे अपना पुरोहित बनाओ तो तुम्हारा कल्याण हो सकता है।
यह वचन सुनते ही इन्द्र त्वष्टा के पास गये और बड़े विनीत भाव से त्वष्टा से कहने लगे कि आप हमारे पुरोहित बनिए जिससे हमारा कल्याण हो।
तब त्वष्टा ने उत्तर दिया कि पुरोहित बनने से तपोबल घट जाता है परन्तु तुम बहुत विनती कर रहे हो, इसलिए मेरा पुत्र विश्व रूप पुरोहित बनकर तुम्हारी रक्षा करेगा।
विश्वरूप ने पिता की आज्ञा से पुरोहित बनकर ऐसा यत्न किया कि हरि इच्छा से इन्द्र वृषवर्मा को युद्ध में जीत कर अपने इन्द्रासन पर स्थित हुआ।
विश्वरूप के तीन मुख थे। एक मुख से वह सोमपल्ली लता का रस निकाल पीते थे। दूसरे मुख से वह मदिरा पीते और तीसरे मुख से अन्नादि भोजन करते थे।
इन्द्र ने कुछ दिनों के उपरांत कहा कि मैं आपकी कृपा से यज्ञ करना चाहता हूं। जब विश्वरूप की आज्ञानुसार यज्ञ प्रारंभ हो गया तो एक दैत्य ने विश्वरूप से कहा कि तुम्हारी माता दैत्य की कन्या है।
इस कारण हमारे कल्याण के निमित्त एक आहुति दैत्यों के नाम पर भी दे दिया करो तो अति उत्तम बात है। विश्वरूप उस दैत्य का कहा मानकर आहुति देते समय दैत्य का नाम धीरे से लेने लगा।
इसी कारण यज्ञ करने से देवताओं का तेज नहीं बढ़ा। इन्द्र ने यह वृतांत जानते ही क्रोधित होकर विश्वरूप के तीन सिर काट डाले। मद्यपान करने वाले से भंवरा, सोमपल्ली पीने वाले से कबूतर और अन्न खाने वाले मुख से तीतर बन गया।
विश्वरूप के मरते ही इन्द्र का स्वरूप ब्रह्म हत्या के प्रभाव से बदल गया। देवताओं के एक वर्ष पश्चाताप करने पर भी ब्रह्म हत्या का वह पाप न छूटा तो सब देवताओं के प्रार्थना करने पर ब्रह्माजी बृहस्पति जी सहित वहां आये।
उस ब्रह्म हत्या के चार भाग किये। उनमें से एक भाग पृथ्वी को दिया। इस कारण धरती कहीं कहीं ऊंची नीची और बीज़ बोने के लायक भी नहीं होती। साथ ही ब्रह्माजी ने यह वरदान दिया जहां पृथ्वी में गड्ढा होगा, कुछ समय पाकर स्वयं भर जायेगा।
दूसरा वृक्षों को दिया जिससे उनमें से गोंद बनकर बहता है। इस कारण गूगल के अतिरिक्त सब गोंद अशुद्ध समझे जाते हैं। वृक्षों को यह वरदान दिया कि ऊपर से सूख जाने पर जड़ फिर फ़ूट जाती है।
तीसरा भाग स्त्रियों को दिया, इसी कारण स्त्रियां हर महीने रजस्वला होकर पहले दिन चांडालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी, तीसरे दिन धोबिन के समान रहकर चौथे दिन शुद्ध होती हैं और सन्तान प्राप्ति का उनकों वरदान दिया।
चौथा भाग जल को दिया जिससे फेन और सिवाल आदि जल के ऊपर आ जाते हैं। जल को य़ह वरदान मिला कि जिस चीज़ मे डाला जायेगा वह बोझ में बढ़ जायेगी।
इस प्रकार इन्द्र को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त किया। जो मनुष्य बृहस्पतिवार व्रत कथा को पढ़ता या सुनता है उसके सब पाप बृहस्पति जी महाराज की कृपा से नष्ट हो जाते हैं।
Brihaspati Dev ki Aarti | Om jai jagdish lyrics
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का,
स्वामी दुःख बिनसे मन का।
सुख सम्पति घर आवे, सुख सम्पति घर आवे,
कष्ट मिटे तन का॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी,
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी,
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता,
स्वामी तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख फलकामी, मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, किस विधि मिलूं दयामय,
तुमको मैं कुमति ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
दीन-बन्धु दुःख-हर्ता, ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी रक्षक तुम मेरे।
अपने हाथ उठाओ, अपने शरण लगाओ,
द्वार पड़ा तेरे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा,
स्वमी पाप(कष्ट) हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
सन्तन की सेवा ॥
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥
गुरुवार व्रत का उद्दापन
जब संकल्प किए गए गुरुवार व्रत पूर्ण हो जाएँ, जैसे 16 गुरुवार व्रत हो जाने पर 17वें गुरुवार को व्रत का उद्दापन करना चाहिए।
- उद्दापन के दिन भी पूर्व की भांति ही भगवान बृहस्पति की पूजा करनी चाहिए।
- भगवान बृहस्पति देव को पाँच सामग्री (चने की दाल, गुड़, हल्दी, केला, पपीता) अर्पित करें, साथ ही पीला वस्त्र अवश्य ही अर्पित करें।
- हाथ में खड़ी हल्दी और सुपारी लेकर संकल्प करें ( अभी तक जो मैंने गुरुवार व्रत किए हैं, मैं उनका उद्दापन करने जा रहा हूँ/ रही हूँ।)
- भगवान को अर्पित सामग्री किसी ब्राह्मण या मंदिर में दान करें।
❓ FAQ's
गुरुवार व्रत या बृहस्पतिवार व्रत कब शुरू करें?
किसी भी माह के शुक्ल पक्ष में गुरुवार के दिन से गुरुवार या बृहस्पतिवार का व्रत शुरू कर सकते है। क्यूंकी शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की स्थिति मजबूत रहती है, इसलिए बृहस्पतिवार व्रत की शुरुआत इसी पक्ष से की जाती है। कुछ लोग का मानना है कि पौष माह से बृहस्पतिवार व्रत का प्रारम्भ नहीं करना चाहिए।
गुरुवार व्रत के कितने व्रत करना चाहिए?
बृहस्पति देव व भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए 16 गुरुवार व्रत रखने चाहिए, और 17वें गुरुवार को व्रत का उद्यापन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त गुरुवार का व्रत 1, 3, 5, 7, 9 और 16 गुरुवार तक रखना चाहिए। श्रद्धानुसार गुरुवार व्रत को आजीवन भी रखा जा सकता है। इस व्रत से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती है।
महिलाओं को मासिक धर्म में व्रत करना चाहिए या नहीं?
मासिक धर्म में गुरुवार का व्रत शुरू ना करें, क्यूंकी ऐसी स्थिति में महिलाओं को पूजा नहीं करनी चाहिए। लेकिन अगर एक गुरुवार व्रत रख चुके है और व्रत संकल्प ले चुके हैं। मध्य समय में मासिक धर्म की स्थिति होती है, तब व्रत रख सकते है, लेकिन पूजा नहीं करनी चाहिए।