स्वतन्त्रता स्वच्छंदता नहीं है सूक्ति पर निबंध

 स्वतन्त्रता स्वच्छंदता नहीं है सूक्ति पर निबंध 

संकेत बिंदु- (1) स्वतंत्रता का अर्थ (2) स्वच्छंदता का दुरुपयोग (3) सामाजिक स्वच्छंदता के कारण अराजकता (4) राजनीतिक स्वच्छंदता से नुकसान (5) उपसंहार।

स्वतंत्रता का अर्थ

स्वतंत्रता का अर्थ स्वेच्छा, मौज या रुचि के अनुसार अथवा किसी सनक में आकर काम करना नहीं। स्वतंत्रता का अर्थ किसी प्रकार के अंकुश, नियंत्रण या मर्यादा का ध्यान न रखते हुए मनमाने ढंग से आचरण या व्यवहार करना भी नहीं। स्वतंत्रता का अभिप्राय नैतिक और सामाजिक दृष्टि से अनुचित तथा निन्दनीय आचरण या व्यवहार करना भी नहीं। भ्रष्ट-आचरण भी स्वतंत्रता नहीं। बिना किसी रोक या बाधा के जहाँ चाहे, वहाँ विचरण करते फिरना भी स्वतंत्रता नहीं।

स्वतंत्रता मुख्यतः प्रशासनिक और सामाजिक क्षेत्रों का शब्द है। इसमें परकीय तंत्र या शासन से मुक्त होने का भाव प्रधान है। इसके विपरीत स्वच्छन्दता मुख्यतः आचार और व्यावहार क्षेत्रों का शब्द है और इसमें शिष्ट-सम्मत नियमों और विधि-विधान के बंधनों के प्रति अवज्ञा का भाव प्रधान रहता है। अतः स्वच्छन्दता का मार्ग इन्द्रियों को बहिर्मुखी बनाए रखना है जबकि स्वतंत्रता का मार्ग उनको अन्तर्मुखी बनाकर उनकी क्षमता का विस्तार करना है।

स्वच्छंदता का दुरुपयोग

व्यक्ति जब स्वतंत्रता के साथ स्वच्छन्दता का उपभोग करे, तो वह प्रमादी बन जाता है। नारी स्वच्छन्दचारिणी बन जाए तो कुलटा या वेश्या कहलाती है। समाज स्वच्छन्द हो जाए, तो उसमें गुंडा-गर्दी का वर्चस्व होता है। स्वच्छन्द राष्ट्र तो अपनी स्वतंत्रता खोकर परतंत्रता को ओढ़ता है। आर्थिक स्वच्छन्दता ऐय्याशी है। ऐय्याशी अन्धी होती है और मनुष्य को बिगाड़ देती है।

रावण ने सीता-हरण कर स्वच्छन्दता प्रकट की, तो स्वर्णमयी लंका का विनाश हुआ। कौरवों ने द्रौपदी के चीरहरण का स्वच्छन्द कृत्य किया, तो महाभारत का युद्ध हुआ। 'कामायनी' के मनु ने इड़ा से स्वच्छन्द आचरण करना चाहा, तो मनु आहत हुए। इन्दिरा गाँधी ने सत्ता में स्वच्छन्दता का उपयोग किया, तो न केवल वे, बल्कि उनकी पार्टी भी चाहे एक बार ही सही, सत्ता-सुख से वंचित हुई।

देश ने घोर तपस्या करके आजादी ली थी। आजादी मिली, तो तपस्या विलास में बदल गई। सत्ता के नशे ने हर कांग्रेसी के मन में स्वच्छन्दता जागृत हुई। देश को लूटने-चूसने की होड़ लड़ गई। सत्ता-भोग का जादू सिर चढ़कर बोलने लगा। चरित्र का घोर पतन हुआ। मान-मर्यादाएँ धूल में मिल गईं। नवधनाढ्य-वर्ग उत्पन्न हुआ, जिसका उद्देश्य ही स्वतंत्रता को स्वच्छन्दता से भोगना था। फलतः देश भ्रष्टाचार में डूबने लगा। हर व्यक्ति बिकाऊ हो गया। अन्तर केवल व्यक्ति-व्यक्ति के मूल्य का था, स्तर का था।

सामाजिक स्वच्छंदता के कारण अराजकता

देश में सामाजिक स्वच्छन्दता ने भी अपने पैर फैलाए। समाज स्वच्छन्दता की ओर बढ़ा, तो सर्वत्र गुंडा-गर्दी का साम्राज्य स्थापित हुआ। नर-नारी की स्वतंत्रता स्वच्छन्द समाज-द्रोही तत्त्वों के हाथों गिरवी हो गई। दुर्बल-वर्ग से मारपीट, नारी से बलात्कार और बच्चों को उठा ले जाना उनकी स्वच्छन्दता के प्रतीक हैं। दूसरी ओर समाज में दहेज के दानव ने पुरुष की स्वतंत्रता को स्वच्छन्दता में बदला और नारी की स्वतंत्रता घोर परतंत्रता में परिवर्तित हुई। परिणामतः वह पुरुष-स्वच्छन्दता के सम्मुख पैर की जूती बनी, मारपीट, गाली-गलौज अपमान, भूख और उपेक्षा की पीड़ा में उसकी अग्नि-परीक्षा होने लगी। संसद् और विधानसभाओं में पार्टी-बहुमत ने सत्ता को स्वच्छन्दता प्रदान कर दी। पाशविक बहुमत के आगे विपक्ष बौना बन गया। श्रीमती इन्दिरा गाँधी का 19 मास का आपत्-काल अर्थात् 'गुलामी' सत्ता की स्वच्छन्दता का ही तो खुला उपभोग था। 'इन्दिरा इज इण्डिया' का उद्घोष स्वच्छन्द 'अहम्' की पराकाष्ठा ही तो थी।

राजनीतिक स्वच्छंदता से नुकसान

राजनीतिक स्वच्छन्दता का नग्न रूप देखना हो तो राजीव शासन और बाद के दिनों को देखिए, जहाँ 'लॉ एण्ड आर्डर' गुंडों और अराजकतावादी तत्त्वों का पानी भरता था। अराजकता की स्वतंत्रता ने उग्रवादी स्वच्छन्दता का बाना पहन लिया। बिहार, असम, उड़ीसा और आंध्र के उग्रवाद ने मानव-जीवन को मूल्यहीन बना दिया तो कश्मीर पाकिस्तान समर्थक उग्रवादियों का गढ़ बन गया। दूसरी ओर, विदेशी पूँजी की स्वतंत्रता ने भारत के उद्योगों को स्वायत्तता से स्वच्छन्द कर भारत-भू पर जन्म लेने वाले हर नवजात शिशु को विदेशों का ऋणी बना दिया है। इस प्रकार भारतवासी आर्थिक दृष्टि से विदेशों का गुलाम बनता जा रहा है, स्वतंत्र सत्ता की स्वच्छन्दता का यह अभिशाप है कि केन्द्र में सरकार बदलने पर भी आज हम उसका कुफल भोग रहे हैं।

स्वतंत्रता में जिस राष्ट्र के मानव या समाज ने स्वच्छन्दता से गुरेज किया, यह ऊपर उठता चला गया, आगे बढ़ता चला गया। जापान और इजराइल का उदाहरण सामने है। इजराइल के सैन्य-बल और जापान के औद्योगिक साम्राज्य ने विश्व को चकाचौंध कर दिया है। मुस्लिम समाज और धर्म में स्वतंत्रता को स्थान है, स्वच्छन्दता को नहीं। किसी पीर-पैगम्बर पर उँगली तो उठाकर देखिए, पवित्र कुरान के विरुद्ध कुछ लिखकर देखिए, उसकी कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी, विरोधी समाज को। इसलिए मुस्लिम धर्म विश्व का दूसरा धर्म बन गया। तीसरी ओर, पाश्चात्य राष्ट्र का नागरिक अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता का भोग करता है, पर नियमानुसार। वह स्वच्छन्दता को राष्ट्र का शत्रु समझता है, इसलिए वह राष्ट्रीय चरित्र से सम्पन्न है, राष्ट्रीय उन्नति-प्रगति का स्तम्भ है। स्वतंत्रता का अर्थ 'स्व' को 'तंत्र' (विशेष व्यवस्था) के अधीन रखकर जीवन में विकास करना है, न कि स्व को तंत्र के बंधन से मुक्त रखकर जीना। स्वतंत्रता परमात्मा की देन है, जो सत्, चित् और आनन्द का स्रोत है। इसका उपभोग प्राणि-मात्र का अधिकार है, पर इसका यह अर्थ नहीं कि उस स्रोत को अवरुद्ध कर दे या भ्रष्ट आचरण से मलिन कर दे।

उपसंहार

स्वतंत्रता की अति स्वच्छन्दता है। अति से तो अमृत भी विष हो जाता है। अतः अति की वर्जना में ही मानव-जीवन का मंगल है। अत: स्वतंत्रता को स्वच्छन्दता समझना विवेक का विनाश है, स्वतंत्रता रूपी सुखद यौवन को त्यागकर स्वच्छन्दता रूपी मृत्यु के प्रति आकृष्ट होना है।

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