मेरी आकांक्षा या मेरी उच्च आकांक्षा पर निबंध

मेरी आकांक्षा या मेरी उच्च आकांक्षा पर निबंध 

संकेत बिंदु- (1) मन में होने वाली इच्छा (2) जीवन में आकांक्षा का महत्त्व (3) भावी जीवन को सफल बनाने का गुर (4) अकांक्षा पूर्ति के लिए अंत: करण में निष्ठा (5) उपसंहार।

मन में होने वाली इच्छा

किसी प्रकार के अभाव के कारण मन में होने वाली इच्छा या चाहना आकांक्षा है। किसी वस्तु या बात के लिए होने वाली अभिलाषा आकांक्षा है। किसी विचार या भाव की पूर्ति के लिए तीन आवश्यक तत्त्वों में सर्वप्रथम है आकांक्षा। अन्य दो तत्व हैं योग्यता और आसक्ति। हजारीप्रसाद द्विवेदी के विचार में, 'आंतरिक प्रवृत्तियों का मंगलमय सामंजस्य बाहर मनोरथ, सौन्दर्य के रूप में जिस कारण प्रकट होता है; वह है आकांक्षा।' महत्त्वपूर्ण कार्य करने की इच्छा या दूसरों से आगे बढ़ने की अभिलाषा है, उच्च आकांक्षा।

जीवन में आकांक्षा का महत्त्व

इस संसार में आकांक्षाओं की परिधि और गति के बाहर कुछ भी नहीं। आकांक्षाएं आकाश के समान अनन्त हैं। इतना ही नहीं, इसकी गति भी अनन्त है। प्रसाद जी का कहना है, विषयों को सीमा है, परन्तु अभिलाषाओं (आकांक्षाओं) की नहीं। (चन्द्रगुप्त : चतुर्थ अंक) उर्दू के प्रसिद्ध शायर दाग अपने 'दीवान' में लिखते हैं-

दमें मर्य तक रहेंगी ख्वाहिशें
यह नीयत कोई आज भर जाएगी? 

दूसरी ओर, आकांक्षाओं की अनन्तता से तंग आकर बहादुरशाह जफर' को कहना पड़ा-

कह दो इन हसरतों से, कहीं और जा बसें।
इतनी जगह कहाँ हैं, दिले दागदार में। (दर्दे दिल) 

प्राणी जब संसार को खुले नेत्रों से देखता है, उसका आकर्षण उसे सम्मोहित करता है। वह चाहता है कि सुख और ऐश्वर्य के साधन, ऐय्याशी के माध्यम, योग्यता और यश के आधार बिन्दु मेरे चरणों में झुके हों, परन्तु यह न सम्भव है, न प्राप्य ही। पर आकांक्षा करने में तो कोई बुराई नहीं ।

मैं नवयुवक हूँ, और अभी विद्याध्ययन में रत हूँ। इस समय मेरी केवल एक ही आकांक्षा या उच्चाकांक्षा है कि मैं ब्रह्मचर्य व्रत का निर्वाह करते हुए मछली की आँख पर अर्जुनदृष्टि की भाँति 'अध्ययन' ही एकमात्र मेरा लक्ष्य हो। परीक्षा रूपी सागर को अपने कौशल से बिना झिझक पार करूँ। छात्र जीवन के अनन्तर गृहस्थ आश्रम में अर्थोपार्जन के लिए जो सिद्धता चाहिए, उसे मैं प्राप्त कर सकूँ।

भावी जीवन को सफल बनाने का गुर

भावी जीवन को सफल बनाने का एक ही 'गुर' है, परीक्षा में प्रथम श्रेणी में अधिकतम (90% से अधिक) अंक प्राप्त करना। इसके लिए मैं चाणक्य नीति के इस सुभाषित का पालन कर रहा हूँ-

सुखार्थिन: कुतो विद्या, कुतो विद्यार्थिनः सुखम्।
सुखार्थी वा त्येजद्विद्या, विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्॥ 

अर्थात् सुख चाहने वाले को विद्या और विद्या चाहने वाले को सुख कहाँ ? सुख चाहने वाले को विद्या और विद्यार्थी को सुख की कामना छोड़ देनी चाहिए। इसी प्रकार- 

कामं क्रोधं तथा लोभं स्वादं श्रृंगार कौतुके।
अति निद्राति सेवा च, विद्यार्थी ह्यष्ट वर्जयेत्॥ 

अर्थात् विद्यार्थी को ये आठ बातें छोड़ देनी चाहिएं- (1) काम, (2) क्रोध (3) लोभ (4) स्वाद (5) श्रृंगार (6) तमाशे (7) अधिक निद्रा और (8) अत्यधिक सेवा।

उक्त बातों को ध्यान में रख कर मैंने अपनी वर्तमान आकांक्षा अर्थात् उच्चतम अंकों से परीक्षा उत्तीर्ण करने का दृढ़ निश्चय किया। 'नहि प्रतिज्ञामात्रेण अर्थ सिद्धिः' प्रतिज्ञा अथवा दृढ़ निश्चय मात्र मे अर्थ- सिद्धि नहीं हो सकती।डिजराइली ने सचेत किया, 'The Secret of Success is constancy to purpose' अर्थात् उद्देश्य में निष्ठा ही सफलता का रहस्य है।

अकांक्षा पूर्ति के लिए अंत: करण में निष्ठा

मैंने दृढ़ निश्चय के साथ अपनी आकांक्षा की पूर्ति के लिए अन्त:करण में निष्ठा व्यक्त की। तभी योगवासिष्ठ ने चेताया है, ब्रह्मचारी ! 'तेरी इच्छा पूर्ण होगी, यदि तू प्रयत्न को न छोड़ दे।' (अवश्यं स तमाप्नोति न चेदर्थान निवर्तत: 2/4/12) मैं खुश हुआ प्रतिज्ञा, निष्ठा और निरन्तर प्रयत्न, इन तीन तत्त्वों की त्रिवेणी स्नान से सफलता का मुखड़ा देखने को मिलेगा। तभी वाल्मीकि ने कहा- 'बेटा! मेरी भी एक बात मान ले। 'अनिर्वेदं च दाक्ष्यं च मनसश्चापराजयम्' (किष्किन्धाकांड : 4916) उत्साह, सामर्थ्य और मन में हिम्मत न हारना।'

लग गया आकांक्षा की पूर्ति में। पागलपन से नहीं सचेत और सजग रहकर। विद्यालय समय को छोड़कर अध्ययन का समय निश्चित किया- प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में एक घंटा पाठ याद करना। दिन में एक घंटा रिवीजन (पुनरावृत्ति) तथा एक घंटे का लिखित अभ्यास। अपवाद छोड़कर पढ़ाई में निष्ठापूर्वक समर्पित जीवन।

केवल 'पढ़ाकू' बनकर मैं प्रमाद की स्थिति नहीं लाना चाहता। इसलिए दिनचर्या ऐसी बना ली है कि तन और मन स्वस्थ रहें। यदि तन और मन स्वस्थ नहीं होंगे तो अध्ययन में मन लगेगा ही नहीं। अध्यापक महोदय द्वारा समझाए गए तत्त्व मस्तिष्क में बैठेंगे ही नहीं। प्रश्नों के उत्तर बुद्धि ढूँढ ही नहीं पाएगी।अत: मध्याह्न भोजनोपरांत एक घंटा विश्राम, सायंकाल एक घंटा खेलना, रात्रि के प्रथम प्रहर में घंटाभर दूरदर्शन से रंजन करना और समाचार सुनकर ज्ञानवर्धन कर रात्रि दस बजे तक सो जाना, मेरी दिनचर्या है। इस दिन - चर्या में यदि व्यवधान रूप में माता-पिता घर का सामान लाने या अन्य कार्य करने के लिए कहते हैं तो 'मूड' खराब नहीं करता। सहर्ष और सोल्लास आज्ञापालन उनके आशीर्वाद प्राप्ति का मूक माध्यम मानता हूँ।

उपसंहार

आकांक्षा पूर्ति के प्रति मेरी प्रतिज्ञा, निष्ठा, निश्चय, निरन्तर अभ्यास को देखकर मेरे एक ईर्ष्यालु मित्र ने एक दिन चुटकी लेते हुए कहा, 'भाग्यं फलति सर्वत्र न विद्या न च पौरुषम्' पर मेरा तो दृढ़ विश्वास है कि कर्मों का संचित फल ही भाग्य है। आकांक्षा पूर्ति में मेरे कर्म अवश्य सहयोग देंगे।

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