बिन पानी सब सून सूक्ति पर निबंध
बिन पानी सब सून सूक्ति पर निबंध
संकेत बिंदु– (1) रहीम जी के दोहे का अर्थ (2) प्राणियों का जीवन पानी (3) जल ही जल का कारण (4) जल के कारण तीर्थ और व्यापार केंद्र (5) पानी के बिना साहित्य और संस्कृति अधूरी।
रहीम जी के दोहे का अर्थ
रहीम जी का दोहा है–
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी बिना न ऊबरे, मोती, मानुस, चून॥
यहाँ 'पानी' शब्द श्लिष्ट है। रहीम जी ने इस दोहे में पानी के एक साथ तीन अर्थ लिए हैं– मोती के प्रसंग में किसी पदार्थ का वह गुण जिसके फलस्वरूप उसमें किसी तरह की आभा, चमक या पारदर्शकता आती है। मनुष्य के प्रसंग में मान, प्रतिष्ठा, इज्जत तथा मनुष्य में होने वाला अभिमान, वीरता या ऐसा ही कोई तत्त्व या भावना। चून के प्रसंग में गुणयुक्त वह तरल पदार्थ जिसके योग से दूसरी चीज में गुण या तत्त्व सम्मिलित किया जाता है अथवा किसी प्रकार का प्रभाव उत्पन्न किया जाता है।
मोती में पानी (कान्ति या चमक) न हो तो, उसका कोई मूल्य नहीं। इसी प्रकार मान-प्रतिष्ठा के अभाव में मनुष्य का कोई मूल्य नहीं तथा जल और चून (चूर्ण, आटा) दोनों के गुण-तत्त्वों के मिश्रण से ही चून भोजन योग्य बनता है। चून का अर्थ यदि 'चूना' लिया जाए तो वह भी पानी के बिना खिलता नहीं। पानी में डालने से ही उसकी धवलता बढ़ती है।
प्राणियों का जीवन पानी
पानी तो प्राणियों का जीवन है। वनस्पतियों के पालन-पोषण तथा वर्धन के लिए अनिवार्य तत्त्व है। इसलिए संस्कृत में पानी को 'जीवन' कहा गया है। आयुर्वेद-ग्रंथ भाव प्रकाश में तो यहाँ तक कहा है, ‘जीवनं जीविनां जीवो जगत् तन्मयम्।’ अर्थात् पानी प्राणियों का जीवन है और सारा संसार ही जलमय है। यजुर्वेद में तो जल-देव से कामना की गई है– ‘हमें इच्छित सुख देने के लिए जल कल्याणकारी हो। हमारे पीने के लिए सुखदायी हो। हमें सुख-शान्ति देते हुए जल-प्रवाह बहे।’
जल नहीं होगा तो मानव अपने शरीर की शुद्धि कैसे करेगा? प्राणी प्यास कैसे बुझाएगा? भोजन कैसे पकाएगा? व्यंजन कैसे बनाएगा। रोगों को दूर कैसे करेगा? उसका जीवन-मरण का साक्षी कैसे होगा? इतना ही नहीं, मृत्यु के पश्चात् अस्थियों के पावन नदियों में विसर्जन के अभाव में मृतात्मा देह की आसक्ति से मुक्ति कैसे प्राप्त करेगा? तब रहीम के दोहे की सार्थकता पता चलेगी, ‘पानी के बिना सब शून्य है, व्यर्थ है।’
जल नहीं होगा तो वन-उपवन की विकास-क्षमता समाप्त हो जाएगी। वनस्पति पुष्पित-पल्लवित नहीं होगी। खेती उपज नहीं देगी। सर्वत्र सूखे का ताण्डव होगा। भूमि अनुर्वर होगी, सस्य-श्यामलता से विहीन होगी।
जल ही जल का कारण
जल ही जल का कारण है। जल नहीं होगा तो सर्दी में बर्फ नहीं बनेगी। बर्फ नहीं बनेगी तो गर्मियों में वह पिघलेगी कैसे? जब बर्फ पिघलेगी नहीं तो गर्मियों में नद-नदियाँ, सूखे रह जाएंगे। दूसरी ओर, गर्मी के प्रभाव से जल भाप बनकर ऊपर उठता है, मेघों का रूप लेता है और पृथ्वी तथा पृथ्वीवासियों की तृष्णा शांत करता है। जब जल नहीं होगा तो मेघ नहीं होंगे तो वर्षा नहीं होगी। वर्षा नहीं होगी तो प्रकृति का रोम-रोम निदाध से जल उठेगा और सर्वत्र सूनापन व्याप्त हो जाएगा।
जल मनोरंजन का साधन भी है। तैराकी, नौका-विहार, नौका-दौड़, जल-क्रीडा आदि जल द्वारा मानव का रंजन करते हैं। विश्व-प्रतियोगिताओं के आयोजनों द्वारा मानव मन रंजन की स्वस्थ ऊर्जा प्राप्त करता है। उन्नति और प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है। यदि जल ही न होगा तो सब सूना रह जाएगा।
जल के कारण तीर्थ और व्यापार केंद्र
जल के कारण नदियाँ हैं, नदियों के तट पर विद्यमान तीर्थ हमारी श्रद्धा के केन्द्र हैं, अध्यात्म की तपोभूमि हैं, ज्ञान-ज्योति प्रज्वलित करने के नेत्र हैं और पापों को प्रक्षालित कर पुण्य प्रदान करने के स्रोत हैं। जल के बिना अध्यात्म की स्रोतस्विनी शुष्क हो जाएगी।
जल व्यापार का साधन भी है, व्यापार-वृद्धि का कारण है। लाखों टन सामान और जन जल-मार्ग से एक स्थान से दूसरे स्थान, एक नगर से दूसरे नगर और एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्रों में जाते हैं। अगर जल नहीं होगा तो व्यापार और यात्रा का यह साधन अवरुद्ध हो जाएगा, जो शून्यता उत्पन्न करेगा।
अब, जरा पानी के पर्यायवाची अर्थों से उत्पन्न 'सून' (शून्य) पर विचार कर लें। पुरुष के वीर्य या शुक्र को भी पानी कहते हैं। वीर्य से शरीर में बल और कांति आती है। चरम धातु होने से इसमें संतान-उत्पत्ति की शक्ति होती है। यदि यह वीर्य ही न होगा, तो सृष्टि में मानव-उत्पत्ति समाप्त हो जाएगी और विश्व जन से 'सून' हो जाएगा।
'पौरुष' मान-प्रतिष्ठा आदि के विचार से मनुष्य में होने वाले अहं, अभिमान, वीरता या ऐसी ही कोई भावना को 'पानी' कहते हैं। इसलिए कहावत प्रसिद्ध है, ‘ऐसा आदमी किस काम का, जिसमें कुछ भी पानी न हो।’
पानी के बिना साहित्य और संस्कृति अधूरी
पानी का साहित्यिक मूल्य भी है। पानी पर मुहावरे और लोकक्तियों ने भाषा को चमत्कृत किया है, अलंकृत किया है, सौन्दर्यमय बनाया है, उसे प्रभावोत्पादन शक्ति प्रदान की है। यदि 'पानी' न होगा तो भाषा का पानी ही उतर जाएगा।
पानी न होता तो उसके बिना हिमालय की शोभा, सुषमा और मूल्य कम हो जाते। कारण, हिमालय का हिम तथा उससे निःसृत नदी-निर्झर ही तो जल के मुख्य स्रोत हैं। भारत में भागीरथ के प्रयत्न से गंगा माता का अवतरण हुआ है, वह नहीं होता। गंगा के अभाव में बेचारे भागीरथ के साठ सहस्र पूर्वजों का उद्धार न हो पाता। प्रभु राम, स्वामी रामतीर्थ तथा संन्यासीगण जल में समाधि नहीं ले पाते। पानी के अभाव में कृष्ण यमुनातट पर रासलीला न कर पाते। पवित्र नदियों में पर्वों का स्नान न हो पाता। कुंभ, महाकुंभ न जुड़ पाते। जल के बिना भारतीय-संस्कृति के अमरत्व पर शून्य की कालिख छा जाती।
इसलिए रहीम जी ने सत्य ही कहा है, ‘बिन पानी सब सून।’ सून अर्थात् शून्यता या अभाव परिचायक है जीवन के तम का, जगती के विनाश का, संस्कृति और सभ्यता के ह्रास का।