भारत के धर्म - Religions of India
भारत के धर्म (Religions of India)
हिन्दू धर्म
हिन्दू धर्म विश्व का एक मात्र ऐसा धर्म है जो किसी व्यक्ति विशेष द्वारा प्रवर्तित नहीं है। यह अनेक मतों एवं सम्प्रदायों में विभक्त होने पर भी अपनी सहिष्णुता, आत्मसात क्षमता एवं विश्वबन्धुत्व भावना के कारण असंख्य ऋषियों, मुनियों, दार्शनिकों के ज्ञान एवं अनुभूतियों से निरन्तर होता हुआ प्राचीनतम वैदिक काल से अद्यावधि जीवित है। इसी से यह सनातन भी कहा जाता है। इसकी प्रमुख विशेषताओं में आस्तिकता, एकेश्वरवाद, त्रिदेवों की प्रधानता, शक्ति पूजा, चार पुरुषार्थ– धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष; कर्मवाद एवं पुनर्जन्म में विश्वास, अवतारवाद, मूर्ति पूजा, नैतिकता एवं सदाचार पर बल, सहिष्णुता एवं विश्व बन्धुत्व, वर्णाश्रम व्यवस्था आदि हैं।
इस्लाम धर्म
इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब का जन्म 570 ई० में एक साधारण परिवार में हुआ था। मुहम्मद साहब बहुत चिन्तन करने वाले व्यक्ति थे। रमजान के पवित्र दिनों में वे बिल्कुल एकान्त स्थान में बैठकर ध्यान में मग्न हो जाया करते थे। एक दिन चिन्तन की ध्यानावस्था में उन्हें 'फरिश्ता जिकील' (ईश्वर के देवदूत) के दर्शन हुए। उस फरिश्ते ने उन्हें सन्देश दिया कि, “अल्लाह के अतिरिक्त कोई दूसरा ईश्वर नहीं है और मुहम्मद उसके पैगम्बर हैं।” तभी से मुहम्मद साहब अपने को ईश्वर का पैगम्बर मानने लगे और उनको प्राप्त सन्देश को मुसलमान द्वारा 'इलहाम' कहा गया। मुहम्मद साहब अपना सन्देश प्रत्येक मुसलमान तक पहुँचाना चाहते थे। उनके शिष्यों की संख्या में तो बहुत तेजी से वृद्धि हुई, लेकिन उनके ऐसे विरोधियों को संख्या भी बहुत तेजी से बढ़ी जो उनके विचारों के कट्टर विरोधी थे। परिणामस्वरूप मुहम्मद साहब को मक्का छोड़ना पड़ा। उन्होंने 622 ई० में मदीना में शरण ली। इसी वर्ष से मुसलमानों के “हिजरी सम्वत” का प्रारम्भ होता है।
ईसाई धर्म
ईसाई धर्म जीसस द्वारा खोजा गया था। यह दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है। जीसस ईसाई यहूदिया में 4 BC में पैदा हुए। जब वह 30 वर्ष के थे उन्होंने भगवान के राज्य के बारे में उपदेश देना आरम्भ किया। उसकी गतिविधियों का यहूदी पादरियों द्वारा विरोध किया गया जिसमें उस पर ईशनिन्दा का आरोप भी लगाया। उन्हें रोमन राज्यपाल पोटीयंस के आदेश पर क्रूस पर चढ़ाया गया। ईसाई धर्म ज्ञान, प्यार और शांति का उपदेश देता है। जीसस क्रिश्चयन के द्वारा दिए गए उपदेश बाइबिल में संग्रहित हैं। ईसाई धर्म एक धर्म नहीं जीवन जीने का तरीका है। यह हमें शांति और मानवता एवं प्यार से जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
ईसाई धर्म भारत में पहली शताब्दी में सेन्ट थोमस जो कि ईसाइयों के 12 शिष्यों में एक था, के द्वारा आया।
जैन धर्म
जैन धर्म को मानने वाले जैन कहलाए। बैशाली के राज परिवार से महावीर सम्बन्ध रखते थे। जैन धर्म 8 वीं शताब्दी में स्थापित हुआ। 30 वर्ष की उम्र में महावीर ने दुनिया का त्याग कर दिया और आपने 12 साल सत्य की खोज के लिए तपस्या और ध्यान में बिता दिए। 47 वर्ष की उम्र में ध्यान करते समय उन्हें सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ। जैन धर्म के अनुसार क्रोध, गर्व, धोखा और लालच पर सच्चाई, सीधापन, त्याग, शुद्धता, संतोष, संयम, पवित्रता, तपस्या द्वारा विजय पायी जा सकती है। एक संत को अपने कर्मों को समाप्त करने के लिए वे सभी मुसीबतें झेलनी होती हैं जो उन्हें दर्द दें। यह एक पवित्र ध्यान है जो हमें मुक्ति की ओर ले जाता है।
बौद्ध धर्म
बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे जो भारत के एक राज्य के राजा शुद्धोधन के पुत्र थे। बौद्ध धर्म 5 वीं शताब्दी में उत्पन्न हुआ। दुनिया के दोष और कष्टों ने इसके दिल को दुःखी कर दिया और उसने घर का त्याग कर दिया और प्रतिज्ञा की कि जब तक ज्ञान प्राप्त नहीं होगा जब तक वह प्रयत्नशील रहेंगे। गौतम बुद्ध ने 42 वर्ष की उम्र में पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान करते समय ज्ञान प्राप्त किया। बुद्ध ने पुनर्जन्म की प्रक्रिया से मुक्ति जो कि आत्मशुद्धता के रास्ते पर चलकर प्यार और दया की भावना से प्राप्त की जा सकती है, के बारे में उपदेश दिया। बौद्ध धर्म दयालुता, मानवता और समानता का धर्म है। यह जन्म और जाति में भेदभाव की भावना की निन्दा करता है।
सिक्ख धर्म
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव थे। इनका जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को पंजाब के गुजरांवाला जिले में स्थित तलवंडी नामक ग्राम में हुआ था। इस गाँव को अब ननकाना के नाम से जाना जाता है।
नानक का उद्देश्य 'एक ईश्वर' की मान्यता के आधार पर हिन्दू धर्म में सुधार करना और हिन्दुओं और मुसलमानों के मध्य मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना था। वे जाति-पाँति, ब्राह्मणों और मौलवियों की प्रमुखता, रीति-रिवाज, धार्मिक आडम्बरों, व्रत और तीर्थयात्राओं के विरोधी थे। उन्होंने सभी जातियों के लोगों को अपना शिष्य बनाया था। ये एक निराकार ब्रह्म में आस्था रखते थे, जिसे वे सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान, अतुलनीय, अगम्य और अपनी सृष्टि से अलग मानते थे। उनका कहना है कि ईश्वर के प्रति पूर्ण आत्म-समर्पण कर उसका नाम जपने से, नम्रतापूर्वक व्यवहार करने से सभी प्रकार के छल-कपट का त्याग करके मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है। नानक कर्म और पुनर्जन्म को मानते थे। उनके उपदेशों में नैतिकता, नम्रता, सत्य, दान और दया को प्रमुख स्थान प्राप्त था। 1538 ई० में डेराबाबा नामक स्थान पर गुरु नानक का देहान्त हो गया।