किसी यात्रा का रोचक वर्णन पर निबन्ध
किसी यात्रा का रोचक वर्णन पर निबन्ध हिंदी में
इस निबन्ध के अन्य शीर्षक-
- यात्री संस्मरण
- किसी अविस्मरणीय यात्रा का वर्णन
- किसी रमणीय स्थान का आँखों देखा वर्णन
- किसी रोमांचकारी यात्रा का वर्णन
रुपरेखा–
1. प्रस्तावनता, 2. यात्रा का आरम्भ, 3. पर्वतीय यात्रा, शिमला वर्णन; 5. यात्रा करने के लाभ, 6. उपसंहार
प्राकृतिक सौन्दर्य की छाई जहाँ अद्भुत छटा।
हैं जहाँ खगकुल सुनाते मधुर कलरव चटपटा॥
बेल लिपटी है दुमों से खिल रही सुन्दर कली।
पर्वतीय प्रदेश कीं यात्रा अहो! कितनी भली॥
प्रस्तावना–
यात्रा करने से मनोरंजन होता है। जीवन स्वयं एक यात्रा है। इस यात्रा का जितना अंश यात्रा में बीते, वही हितकर है। यात्रा करने से मनोरंजन के साथ-साथ अन्य कई प्रकार के लाभ भी होते हैं। घर से बाहर जाने के कारण साहस, स्वावलम्बन, कष्ट सहिष्णुता की क्रियात्मक शिक्षा मिलती है। परस्पर सहयोग की भावना बढ़ती है। निराश जीवन में आशा का संचार हो जाता है, अनुभव की वृद्धि होती है। इस प्रकार यात्रा करने का जीवन में अत्यधिक महत्त्व है। पर्वत यात्रा तो और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि पर्वतों जैसे दृश्य अन्य स्थानों पर दुर्लभ हैं। कितनी सुखद और आनन्दमयी थी- मेरी वह पर्वत यात्रा।
यात्रा का आरम्भ–
ग्रीष्मावकाश हो चुका था। मेरा मित्र मोहन अपने पिताजी के साथ शिमला जाना चाहता था। उसने मुझसे भी चलने का आग्रह किया। मैने जाने के लिए पिताजी की आज्ञा प्राप्त की। सब तैयारी पूर्ण हो जाने पर हम 20-7-91 को मेरठ से शाम को 5 बजे वाली गाड़ी से शिमला के लिए चले। रास्ते में मुजफ्फरनगर, सहारनपुर आदि स्टेशनों को पार करती हुई हमारी गाड़ी रात्रि में अम्बाला पहुँची। यहाँ से हम दूसरी गाड़ी में बैठकर चण्डीगढ़ को पार करते हुए रात के डेढ़ बजे कालका स्टेशन पर पहुंचे। यहाँ से हमें 3-4 डिब्बों वाली एक छोटी-सी गाड़ी मिली। रात के ढाई बजे के लगभग गाड़ी शिमला के लिए चल दी।
पर्वतीय यात्रा–
ज्यों-ज्यों गाड़ी ऊपर चढ़ती जा रही थी, ठण्ड बढ़ती जा रही थी। खिड़की बन्द करके - हम सो गये। थोड़ी देर बाद आँख खुली तो सामने मनोहर दृश्य दिखाई दे रहे थे। अन्धकार दुम दबा कर भाग रहा था। सूर्य भगवान् अपनी किरणों से शीतग्रस्त जीवों को सान्त्वना सी देने लगे। गाड़ी पर्वतों पर साँप की तरह बल खाती हुई चढ़ रही थी। मीलों गहरे गड्ढे देखकर मैं भय से काँप उठा। छोटे-छोटे गाँव तथा उनमें घोड़े, भेड़, बकरियों तथा मनुष्य ऊपर से ऐसे जान पड़ते थे मानो किसी ने खिलौने सजाकर रख दिये हों। ऊँचे-ऊंचे देवदारु के वृक्ष प्रभु के ध्यान में लीन मौन तपस्वियों की भाँति खड़े थे। फूल व फलों से लदे वृक्षों से लिपटी हुई लताएँ अत्यन्त शोभा पा रही थीं। नीले, हरे, पीले, काले, सफेद अनेक प्रकार के पक्षी फुदकफुदककर मधुर तान सुना रहे थे। विशालकाय पर्वतों के वक्षस्थल को चीर कर उनके बीच में से मीलों लम्बी सुरंगें बनी थीं जिनमें प्रविष्ट होने पर गाड़ी सीटी बजाती थी तथा गाड़ी में प्रकाश हो जाता था।
शिमला वर्णन–
इस प्रकार मनोरम दृश्यों को देखते हुए हम शिमला जा पहुंचे। कुलियों ने हमारा सामान उठाया और हम माल रोड स्थित एक सुन्दर होटल में जा ठहरे। वहाँ हमने चार आदमियों द्वारा खींची जाने वाली रिक्शा देखी। सुबह उठते ही घूमने जाते। पहाड़ियों पर चढ़ते, नीचे उतरते तथा मार्ग में ठण्डे-गर्म पानी के झरने देखकर मन प्रसन्न करते थे। ऊपर बैठे हुए हम देखते थे कि नीचे बादल बरस रहे हैं। लोग भागकर घरों में घुस जाते। कही धूप, कहीं छाया-भगवान् की इस विचित्र माया को देखकर हम अपने आपको देवलोक में आया समझते थे। इस प्रकार के सुन्दर दृश्यों को देखते हुए हमने एक मास व्यतीत किया। छुटटी समाप्त हुई और हम घर वापस लौटे।
यात्रा करने के लाभ–
विभिन्न स्थानों की यात्रा करने से हमारा अनुभव बढ़ता है और कष्ट सहन करने तथा स्वावलम्बी बनने का अवसर मिलता है। कुछ दिनों के लिए दैनिक कार्यचक्र से मुक्ति मिल जाती है जिससे जीवन में आनन्द की लहर दौड़ जाती है। यात्रा करने से विभिन्न जातियों व स्थानों के रीति-रिवाजों, भाषाओं आदि से हम परिचित हो जाते हैं। परस्पर प्रेमभाव बढ़ता है। एक-दूसरे के सुख-दुःख को समझने का अवसर मिलता है। शरीर में स्फूर्ति, ताजगी, मन में साहस के साथ काम करने की भावना का उदय होता है। इस प्रकार की यात्रा का मनुष्य जीवन में विशेष महत्त्व है।
उपसंहार–
शिमला की यह आननन्दमयी यात्रा आज भी मेरे स्मृति पटल पर अंकित है। जब मुझे इस यात्रा का स्मरण हो जाता है, मैं आनन्द विभोर हो उठता हूँ। सारे दृश्य इस प्रकार सामने आ जाते हैं जैसे
साक्षात आँखों से देख रहा हूँ। इस प्रकार के अवसर बहुत कम मिलते हैं किन्तु जब भी मिलते हैं, वे जीवन की मधुर सुखद स्मृति बन जाते हैं।