जाड़े की ऋतु पर निबन्ध | Essay on Winter Season in Hindi
जाड़े की ऋतु (शीत ऋतु) पर निबन्ध - Essay on Winter Season in Hindi
संकेत बिंदु– (1) ऋतु की पहचान (2) जाड़े से बचाव के उपाय (3) जाड़ों का यौवन रूप (4) स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम (5) विभिन्न पर्वों का काल।
ऋतु की पहचान
तापमान को अत्यधिक कमी, हृदय कँपाने वाला तीक्ष्ण शीत, वायु का सन्नाटा, शिशिर शर्वरी में शीत समीर का प्रचण्ड वेग ही तो पहचान है जाड़े की ऋतु की।
उत्साह, उमंग और उल्लास की प्रेरणा, वस्त्र परिधान का आनन्द, विभिन्न पदार्थों की खाने और पचाने की मस्ती, वातानुकुलित कक्षों का मुख, मन्द धूप की सुहानी उष्णता का आनन्द लूटना हो तो है जाड़े को पहचान।
प्रकृति का समयानुकूल परिवर्तन ईश्वरीय रचना का अद्भुत क्रम है।कुसुमाकर वसन्त के आगमन के पश्चात् अंशुमाली भगवान् का तेज तप्त वातावरण, लूह के सन्नाटे मारते हुए झटके के आतंक से व्याकुल प्राणियों को करते हुए ग्रीष्म का आना, और उसके पश्चात् धरा और धरावासियों को भरपूर तृप्त करती सघन बुँदियों की अविरलधारा में वर्षा ऋतु की श्वेत आभा के दर्शन होते हैं।
वर्षा के अनन्तर वातावरण में परिवर्तन के कारण द्वार खटाया शरद् ऋतु का। मेघ शांत हुए, सरिताओं का जल निर्मल हुआ। वनों में कास फूले, चाँदनी निर्मल हुई। शरद् जब अपने यौवन पर आया तो उसने अपने साथी हेमंत को पुकारना शुरू किया और फिर उसने और शिशिर को निमंत्रित किया। वस्तुत: मार्गशीष, पौष, माघ और फाल्गुन (हेमन्त शिशिर) के चार मास हीं जाड़े के हैं। इनमें भी सर्वाधिक ठंड पौष माघ में हो पड़ती है।
जाड़े से बचाव के उपाय
यद्यपि जाड़े में आग के पास बैठने पर आँखों में धुआँ भर जाने के कारण आँसू बहते हैं, फिर भी लोग आग के पास बैठने की कोशिश करते हैं। लोग आग जलाकर छाती से लटका कर रखते हैं। मानो लोग अग्नि को भी भयंकर सर्दी से डरा हुआ जानकर उसके ऊपर हाथ फैला कर उसे अपनी छाती की छाया में छिपाकर रखते हैं। अर्थात् आग सेकने के लिए उसके ऊपर हाथ फैलाते हैं तथा काँगड़ी में भरकर छाती से लगाते हैं। इसी प्रकार शिशिर ऋतु का चित्रण करते हुए सेनापति लिखते है-
“सिशिर में शशि को सरूप पावे सविताऊ,
घाम हूँ मैं चाँदनी की दुति दमकति है।
सेनापति होत सीतलता है सहस गुनी,
रजनी की झाईं, बासर में झमकति है।”
अर्थात् शिशिर ऋतु में सर्दी इतनी अधिक बढ़ जाती है कि सूर्य भी चन्द्रमा का स्वरूप प्राप्त कर लेता है, अर्थात् शिशिर ऋतु में सूर्य का तेज इतना कम हो जाता है कि वह चंद्रमा के समान ठंडा हो जाता है। धूप में चाँदनी की शोभा प्रकट होने लगती है, अर्थात् धूप भी चाँदनी के समान शीतल प्रतीत होने लगती है। सर्दी के कारण दिन में रात्रि की झलक दिखाई देने लगती है, अर्थात् सर्दी के कारण दिन का समय भी रात के समान बहुत ठंडा हो जाता है।
जाड़ों का यौवन रूप
सर्दी का यौवन आया। वह उत्तरोत्तर अपना भीषण रूप प्रकट करने लगा। शीत का हृदय कंपाने वाला वेग, हिमपूरित वायु के सन्नाटे ने मनुष्य को सूटेड बूटेड किया। गर्म वस्त्र धारण करने की विवश किया। ऊन से बने बस्त्रों की इन्द्रधनुषी छटा जगती को सुशोभित करने लगी। कमरों में हीटर लगे, अँगीठी सिलगी। वैज्ञानिक उपकरणों ने सर्दी की ठंड की चुनौती स्वीकार की।
सर्दी के मौसम में सायंकाल और रात्रि के समय शीतवायु के 'प्रचंड वेग से शरीर कंपायमान रहता है और चित्त बेचैन हो जाता है। रुई के गद्दे, रजाई, सौल, कम्बल शयन के साथी और सुखकर बनते हैं। कभी कभी मुक्ताफल मदश ओस की बूँदे जमकर घोर अन्धकारमय वातावरण सृजन करती हैं, तो 'कोहरा' अथवा सामाजिक रूप प्रकट करता है। सर्वप्रथम उसका आक्रमण सूर्य देव पर होता है। शीतमय वातावरण से सूर्य निस्तेज सा हो जाता है तो ठंड बढ़ने लगती है। शीतकाल की ठंडी तेज हवाओं को शान्त करती है वर्षा । शीतकालीन वर्षा न केवल तीर जैसी चुभती हुई हवा से बचाएगी, अपितु पृथ्वी की हरियाली को द्विगुणित करके, खेती की उपज बढ़ाएगी, गेहूँ, गन्ने को बढ़ाएगी। आयुर्वेद की दृष्टि से हेमंत और शिशिर में पित्त का प्रकोप होता है अत: पित्त के उपद्रव से बचने के लिए इस काल में पित्तकारक पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए। दूसरे इस ऋतु में ही गरिष्ठ और पौष्टिक भोजन का आनन्द है। जो खाया, सो पच गया-रक्त जन गया।
स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम
स्वास्थ्यवर्धन की दृष्टि से यह सर्वोत्तम काल है। आयुर्वेद विज्ञान में स्वास्थ्यवर्धक स्वर्णभस्म युक्त औषधियों के सेवन का विधान इन्हीं चार मास में है। सूखे मेवे- काजू, बादाम, अखरोट, किशमिश, सूखी खुमानो तथा मूँगफली जाड़े की ऋतु के वरदान हैं। सेब, सन्तरा, केला, चीकू, इस काल के मौसमी फल हैं। काजू की बरफी, मूँग की दाल का हलवा, पिन्नी, सोहन हलवा की टिकिया तथा रेवड़ी गजक इस मौसम के चहेते मिस्ठान हैं। चाय कॉफी शीतकाल की सर्दी को चुनौती देने वाले प्रकृति के वरदान पेय हैं।
विभिन्न पर्वों का काल
पर्वों की दृष्टि से 'मकर संक्रांति' शीतकाल का मुख्य महत्त्वपूर्ण पर्व है। पंजाब की लोहड़ी, असम का 'माघ बिहु', तमिलनाडु का 'पोंगल' मकर संक्रांति के पर्याय हैं। ईसाई पर्वों में ईसा मसीह का जन्म दिन 25 दिसम्बर जाड़े की ऋतु को आनन्दवर्धक बनाते हैं। विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती के पूजन का दिवस वसन्तपंचमी भी माघ शुक्ल पक्ष में ही आती है। राष्ट्रीय पर्वों में गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) अपनी विशाल, भव्य और इन्द्रधनुषी परेड तथा शोभा यात्रा को जाड़े की ऋतु में ही दर्शाता है। जाड़े की ठंड से सूर्य देव भी सिकुड़े। वह देर से दर्शन देकर शीघ्र अस्ताचल गमन करने लगे। फलत: दिन छोटे हो गए, रातें लम्बी हो गईं। सूर्य का तेज भी शीत में क्षीण हो जाता है। पौष के शीतकालीन सूर्य का वर्णन कवि बिहारी के शब्दों में-
आवत जात न जानियतु तेजहिंतजि सियरानु।
घराहिं जवाईं ज्यों घट्यो खरी पूष दिन मान्रु॥
विरहिणी की ठंडी लम्बी रातें तो आह भर भर कर कटती हैं। वह सोचती है मानों रात ठहर गई है, खिसकने का नाम ही नहों लेती । उसका हृदय चीत्कार कर कहता है-
“मोम सता तन घुल चुका अब, दीए सा मत्र जल रहा है।” –महादेवी वर्मा
अन्य सांसारिक पदार्थों के तरह शीत भी अनित्य है। अपने अवतरण से जन जीवन को शीतल और भयभीत कर खान पान तथा परिधान का स्वाद सुख परोस कर शीत पुनः वसन्त को निमंत्रण देने चल पड़ती है। इस दृष्टि से शीत धन्य है।