प्रभात वर्णन पर निबन्ध - Essay on Morning Description in Hindi
प्रभात वर्णन पर निबन्ध - Essay on Morning Description
इस निबन्ध के अन्य शीर्षक-
- प्रात: श्री।
- किसी सुन्दर दृश्य का वर्णन।
- प्रभात शोभा।
रूपरेखा-
1. प्रस्तावना; 2. निशावतान; 3. प्रातःकालीन वायु; 4. सरोवर की शोभा; 5. नगर शोभा, 6. ग्राम शोभा, 7. उपसंहार।
"सुपष्पिता लता 'प्रिया' पुकारती है चातकी।
अमन्द मोदमग्न, है, सुगन्ध मन्द बात की॥
उषा अतीव शोभानुराग रक्त गात की।
अहो! मनोरमा छटा बिराजती प्रभात की॥
प्रस्तावना–
अहो ! कितना मनोरम है यह प्रभात का दृश्य! रजनीवधू के साथ अभिरमण-क्रीड़ा से खिन्न रजनीकान्त ने नीलावरण आकाश शैया से प्रस्थान किया। बिखरे हुए केशपाश को समेट कर रजनी उठी। अभिरमण काल में उसका जो मोतियों का हार टूट गया था उसके सारे मोतियों को बटोरकर विरहकातरा रजनी मानो एकान्त सेवन के लिए चली गयी। अब आरम्भ हुआ– उषा सुन्दरी का विलास!
निशावसान–
उसी समय दिवाकर ने अपने शत्रु अन्धकार पर चढ़ाई की। उसके सहस्र करों से अन्धकार की सेना धराध्वस्त हुई। उसी के रक्त से प्राची का आँचल रक्तमय हो गया। अन्धकार स्वयं घने जंगलों और पर्वतों की कन्दराओं में जाकर छिप गया।
प्रात:कालीन वायु–
शीतल-मन्द-सुगन्ध पवन मस्ती में झूमता हुआ आया। उसके स्पर्श से लतावधू रोमांचित हो उठी। रंग-बिरंगे फूलों से श्रृंगार कर सज-धजकर उसने प्रियतम का स्वागत किया। उसके अनुपम सौन्दर्य को देखकर चला आया मधुकर-निकर। लूटने लगे मधु की प्यालियाँ और आरम्भ हो गयी मधुपों की मधुर तान। अलबेली नवेली लताओं के झुरमुट मधुर गुंजन से गुंजायमान हो गये।
सरोवर की शोभा–
उधर सरोवर की अनुपम छटा है। जैसे ही भगवान् भास्कर अपने शत्रु अन्धकार का नाश कर उदयाचल पर आरूढ़ हुए, पर-पुरुष कर के स्पर्श की शंका से भीत कुमुदनी लज्जा से संकुचित सी प्रतीत होने लगी। कमलिनी अपने प्रियतम का विजयोत्सव मना रही है। उसका विलास देखने योग्य है। क्यों न हो? वह देखो कमलिनी-वल्लभ अपने कान्त करों से कमलिनी के कोमल कपोल को थपथपा रहा है। कैसी मनोरम शोभा! कैसी मनोहर छटा वन-प्रदेशों में चारों ओर बिखरी है।
पक्षियों का कूजन–
साथ ही आरम्भ हुआ खग-कुल का मधुर कुल-कुल रव! सभी दिशाएँ शब्दायमान हैं। आकाश में पक्षियों के समूह इधर-उधर जा रहे हैं। सुपुष्पित लताओं पर, हरे-भरे वृक्षों पर, कल-करल ध्वनि करती हुई सरिता के आकर्षक तटों पर वनों में, उपवनों में सर्वत्र पक्षियों का मधुर कूजन, मनोरम नृत्य मानो वातावरण में रस घोल रहा है। सचमुच अपूर्व दृश्य है।
नगर-शोभा–
लोक ने उष्म-रस्मि से चैतन्य प्राप्त किया। बस्तियों में अजीब चहल-पहल है। नगरों का सन्नाटा समाप्त हुआ। कल-कारखानों मे काम करने वाले लोग चेतनता का अनुभव कर रहे हैं। शौच स्नानादि दैनिक कार्यों से निवृत्त नागर-नागरी दिन के भावी कार्यक्रम की तैयारी में व्यस्त हैं। सड़कों पर मोटरों की पों-पों, तागों की खट-खट, रिक्शा-साइकिलो की टन-टन शुरू हो गंयी हैं।
ग्राम-शोभा–
गाँव की विचित्र शोभा है। भोली कृषक बधुओं ने मुँह अंधेरे ही बिस्तर छोड़ दिया और जुट गयीं अपनी गाय-भैस, बैलों की सेवा मे। उनके घास-पानी का प्रबन्ध किया। कृषक बालिकाएँ घर की सफाई के काम मे व्यस्त हैं। साथ ही किसान भी अंगड़ाई लेकर उठा। सहसा उसके मुख से निकला- राम। बस यही उसकी सन्ध्या है, यही पूजा है। निःसन्देह उसके निश्छल, निष्पाप हृदय से निकला हुआ यह एक ही शब्द वेद, गीता और उपनिषद् के पाठ से कम नहीं। जो निश्छल भक्ति और ईश्वरीय प्रेम वर्षों के तप से दुर्लभ है, वह भरा है इस एक शब्द “राम” में। इसके बाद हुक्के की चिलम दागी और कमर कस कर ख़ड़ा हो गया। अब दिनभर विश्राम न करने का मानो उसने संकल्प कर किया। पहले उसने अपनी गाय-मैंसों का दूध दुहा। सफेद-सफेद दूध से उसकी बाल्टी भर गयी है।
उधर उसकी गृहिणी ने रात की जमाई दही को बिलोकर सफेद चाँद जैसा मक्खन का ढेला निकालकर मटठा तैयार किया। किसान ने मौन भाव से उसके पास जाकर दूध की बाल्टी रख दी। दोनों ने एक-दूसरे को कुछ नहीं कहा, पर आँखो की मौन भाषा में ही दिनभर का कार्यक्रम तय हो गया। प्रेम और दाम्पत्य जीवन का जो आनन्द इस मौन संकल्प में भोले दम्पति प्राप्त करते हैं, वह नगरों के टीम-टाम और आडम्बरपूर्ण कृत्रिम जीवन मे कभी प्राप्त नहीं हो सकता। दोनों ने एक-दूसरे को देखा। आँखों में न जाने क्या कहा, फिर अपने-अपने काम मे व्यस्त हो गये। किसान अपने बैल और हल लेकर खेत को चल दिया।
उपसंहार–
हरित कुन्तला धरती ने धीमी साँस ली। ओस बिन्दुओं के रूप में जो मुक्ता समूह उसकी मांग में कान्तिमान थे, वे धीरे-धीरे लुप्त होने लगे। सूर्य के कर के स्पर्श से उसकी आर्द्रता विलीन होने लगी। अब सर्वत्र उल्लास है, सर्वत्र हास है। प्रभात का यह मधुर वातावरण जड़-चेतन में नवीन चेतना एवं नवीन स्फूर्ति प्रदान कर देता है।