नवरात्रि पर निबन्ध | Esaay on Navratri in Hindi
नवरात्रि पर निबन्ध - Essay Navratri in Hindi
संकेत बिंदु– (1) आसुरी शक्तियों पर विजय का प्रतीक (2) नवरात्रों का महत्त्व (3) दुर्गा सप्तशती पाठों का महत्व (4) शारदीय नवरात्रों का महत्व (5) दुर्गा के नौ रूपों का परिचय।
आसुरी शक्तियों पर विजय का प्रतीक
नवरात्र महोत्सव आसुरी शक्ति पर दैवीय शक्ति को विजय का प्रतीक है। मानव मन को आध्यात्मिक प्रेरणा देने को शक्ति का पर्व समूह है। दिन प्रतिदिन आत्मा की पहचान की सीढ़ी दर सीढ़ी यात्रा है।
नवरात्र शक्ति की अधिष्ठात्री दुर्गा देवी के नव स्वरूपों की पूजा के नवरात्रियों का समूह है। 'सप्तशती' के अनुसार दुर्गा के नौ रूप हैं–(1) शैल पुत्री (2) ब्रह्मचारिणी (3) चंद्रघंटा (4) कुष्माण्डा
(5) स्कन्द माता (6) कात्यायिनी (7) कालरात्रि (8) महागौरी तथा (9) सिद्धिदात्री।
इन्हीं नव स्वरूपों की पूजा अर्चना के लिए नवरात्रियों को कल्पना की गई है। शक्ति की पूजा के लिए शुक्ल पक्ष की रात्रि का समय नियत करना स्वाभाविक ही है। अतएव रात्रि के नाम पर ही नौ दिन होने वाली पूजा के कारण 'नवरात्र' नाम पड़ा है।
स्कन्दपुराण के 'काली खण्ड' में नौशक्तियों का उल्लेख मिलता है : शतनेत्रा, सहस्त्राभ्या, अयुतभुजा, अश्वारूढ़ा, गणास्या, त्वरिता, शव वाहिनी, विश्वा और सौभाग्य गौरी। भारत का दक्षिणी भू भाग नवरात्र के पावन अवसर पर वन दुर्गा, शूलिनी, जातवेदा, शान्ति, शबरी, ज्वाला, दुर्गा, लवणा, आसुरी और दीप दुर्गा नाम से नौ दुर्गाओं को नमन करता है।
नवरात्रों का महत्त्व
चैत्र के नवरात्रों को 'वासन्तिक' और आश्विन के नवरात्रों को 'शारदीय' विशेषण से विभूषित किया जाता है। दोनों नवरात्रों में प्रकृति का वातावरण प्राय: एक समान होता है। न अधिक ठंडक, न अधिक गर्मी। शीतल, मन्द, सुगन्ध पवन बहने लगती है।। प्रकृति वृक्षों, लता, वल्लरियों, पुष्पों एवं मंजरियों की आभा से दीप्त हो जाती है । रात्रि की मनोहरता तो दोनों ही नवरात्रों में अत्यधिक बढ़ जाती है।
वासन्तिक नवरात्र का भी अपना महत्त्व है। प्रथम, चैत्र के नवरात्र के प्रथम दिन चैत्र शुक्ला प्रतिपदा संवत् का प्रथम दिन है। नव वर्ष को बधाई का दिन है और अन्तिम दिन अर्थात् नवमी श्रीराम का जन्मदिन है। दूसरे, वह मधुमास का नवरात्र है, जिसमें मधु के श्रोत फूट पड़ते हैं। एक ओर मानव मन की उमंग और दूसरी ओर नवरात्र की पूजा का संयम।
दुर्गा सप्तशती पाठों का महत्व
वासंतिक और शारदीय नवरात्रों में ' दुर्गा सप्तशती ' के वीर रस पूर्ण सुललित, मनोरम, कर्ण कुहरों में आनन्द की धारा बहाने वाले श्लोकों का पाठ करने सुनने का विशेष महत्त्व है। दुर्गा सप्तशती' का पाठ पढ़ने या श्रवण करने से दुःख बाधाओं से छुटकारा मिलने के साथ ही माँ दुर्गा की कृपा दृष्टि भी बनी रहती है। ध्यातव्य है कि मार्कण्डेय पुराण का ' देवी महात्म्य ' खण्ड ' दुर्गा सप्तशती ' के नाम से जाना जाता है। इममें देवी के चरित्र का विशद वर्णन है। समूचे संस्कृत साहित्य में इससे बढ़कर लोकप्रिय दूसरा स्रोत ग्रन्थ नहीं। सम्भवत: हिन्दी में रामचरितमानस इसकी लोकप्रियता का प्रतिद्वंद्वी ठहरता है। श्रद्धा, भक्ति और पूज्य भावों के प्रसार में यह ग्रन्थ अद्वितीय है।
शारदीय नवरात्रों का महत्व
सम्पूर्ण भारत में और विशेषत: बंगाल में शारदीय नवरात्रों का विशेष महत्त्व है, 'शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी।' भक्तिभाव मे दुर्गा की पूजा अर्चना करना, पांडाल स्थापित करना, यहाँ के जन जन के उल्लास का प्रतीक है। दुर्गा पूजा का उत्सव आश्विन शुक्ला सप्तमी से दशमी (विजयदशमी) तक मनाया जाता है, लेकिन एक मास पूर्व से हो इसकी तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। दशमी के दिन दुर्गा को मूर्तियों को भव्य एवं विशाल शोभायात्रा निकाल कर जल विसर्जन करना बंगाल को आत्मा को दुर्गामय बना देता है। इन दिनों वहाँ विवाहित पुत्रियों को माता पिता द्वारा अपने घर बुलाने की भी प्रथा है।
दक्षिण में यह पर्व शैवों के लिए शिव पर उमा के प्रेम की विजय का प्रतीक है तो वैष्णवों के लिए लक्ष्मी विष्णु के वरण की सफलता का प्रतीक है। सामंतों में युद्धरत दुर्गा की पूजा और बलि चढ़ाने का प्रतीक है। अष्टमी या नवमी के दिन कुँआरी कन्याओं का पूजन किया जाता है और दक्षिणा दी जाती है।
नवरात्र पूजा पाठ का पर्व है। अत: भक्ति भाव से माँ दुर्गा के रूपों की पूजा, अर्चना वंदना तथा दुर्गा सप्तशती का पठन या श्रवण अपेक्षित है। नवरात्र में की गई पूजा मानव मन को पवित्र और भगवती दुर्गा के चरणों में लीन कर जीवन में सुख, शान्ति और ऐश्वर्य की समृद्धि करती है।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणि नमोस्तुते ॥
नवरात्र (नौ दिनों की विशिष्ट उपासना) के रूप में निष्ठापूर्णवक शक्ति साधना और उसके पश्चात् विजय यात्रा अर्थात् विजयदशमी का आयोजन कर्मचेतना की उत्कृष्टता का अन्यतम उदाहरण है। वस्तुत: बिना साधना के सच्ची विजय मिल भी नहीं सकती।
दुर्गा के नौ रूपों का संक्षिप्त परिचय
(1) शैल पुत्री
शारदीय नवरात्र का आरम्भ आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होता है। नव दुर्गा पूजन में प्रतिपदा के दिन शैल पुत्री के पूजन का विधान है। इस प्रकार नवरात्र की पूजा अर्चना का श्रीगणेश शैल पुत्री से होता है।
राजा हिमवान् (हिमालय) एवं मैना की पुत्री को शैलपुत्री कहते हैं। शैल पुत्री के दो रूप हैं – (1) सती और (2) पार्वती।
सती के रूप में शैल पुत्री ने अपने पति के सम्मान को ठेस लगने पर अपना जीवन योगाग्नि में भस्म कर दिया। क्योंकि दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में भगवान् शंकर को निमंत्रण नहीं दिया था। दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में शक्ति की अधिष्ठात्री बनी। इसीलिए देवी भगवती के नौ स्वरूपों में शैल पुत्री को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ और सर्वप्रथम उनकी पूजा की गयी।
(2) ब्रह्मचारिणी
नवरात्र की दूसरी दुर्गा शक्ति का नाम है ब्रह्मचारिणी, जिसका पूरा अस्तित्व ही उदात्त कौमार्य शक्ति का पर्याय है। ब्रह्मचारिणी अर्थात् 'जो ब्रह्म में विचरण करे।'
'ब्रह्मणि चरितुं शीलं यस्या या ब्रह्मचारिणी' अर्थात् सच्चिदानन्दमय ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति जिसका स्वभाव है, वह देवी ब्रह्मचारिणी है। देवी की यह ज्योतिर्मयी भव्य मूर्ति है। आनन्द से परिपूर्ण है! अध्यात्म ने आज के दिन को ब्रह्मप्रसाद माना है और तांत्रिकों के लिए सात्विक साधना का सुअवसर।
(3) चंद्रघंटा
'चंद्र: घंटायां यस्या:' आह्वादकारी चंद्रमा जिनकी घंटा में स्थित हो, उन देवी का नाम है चंद्रघंटा | दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं, चंद्रघंटा देवी के मस्तक पर घंटा के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है।
माँ दुर्गा का यह शांत एवं शीतलता प्रदान करने वाला स्वरूप है। 'या देवी सर्व भूतेषु शांति रूपेण संस्थिता।' इनके प्रचंड भयंकर घंटे की ध्वनि से सभी दुष्ट, दैव्य, विनाशकारी शक्तियों का विनाश होता है। वह शांत भाव से भक्तों को मनःकामनाएँ पूरी करती हैं।
(4) कुष्माण्डा
भगवती दुर्गा की चौथी शक्ति का नाम है कुष्माण्डा। सूर्य मंडल के मध्य में स्थित होने के कारण इसका तेज दशों दिशाओं में व्याप्त है। इनके पूजन से भक्तों के तेज एवं ओज में वृद्धि होती है। इनकी आठ भुजाएँ हैं। सिंह पर आसीन हैं। कुष्मांड ( कुम्हड़ा, काशीफल) की बलि विशेष प्रिय होने के कारण इनका नाम कृष्माण्डा प्रसिद्ध हुआ।
माँ भगवती कुष्मांडा का पूजन करने से भक्त मनवांछित फल प्राप्त करते हैं। जो सहस्रों सूर्यों के समान दीप्त है, सूर्यमंडल के समान है, जो अपने तेज से सभी दिशाओं को प्रकाशित करतो है, जिसको आठ भुजाएँ हैं, जो अनेक प्रकार के अस्त्र शस्त्रों से साज्जित है, जिसे कुष्मांड की बलि (उपहार) प्रिय है, उसे ही कुष्मांडा जानो । वह भक्तों कै तेज और ओज को बढ़ाने वाली है।
(5) स्कन्द माता
आदि शक्ति दुर्गा का पंचम स्वरूप है स्कन्द माता। स्कन्द शिव, पार्वती के पुत्र हैं। देव सेना के सेनापति हैं । स्कन्द कार्तिकेय का पर्याय है। वीर स्कन्द की जननी होने के कारण पंचम शक्ति को 'स्कन्द माता' कहा गया।
इनकी तीन आँखें और चार भुजाएँ हैं। ये शुभ्रवर्णा हैं तथा पद्म के आसन पर विराजमान हैं। पुत्रवत्सला आदि शक्ति महामाया भगवती मातृस्तेह से अभिभूत होकर अपने भक्तों एवं उपासकों की गोद भरती हैं।
(6) कात्यायनी
नवरात्र के छठे दिन आदि शक्ति दुर्गा के छठे स्वरूप देवी कात्यायनी के पूजन अर्चन का विधान है।
महर्षि कात्यायन ने आदिशक्ति भगवती त्रिपुर सुन्दरी की उपासना करके उनसे यह वरदान प्राप्त किया कि वे धराधाम पर रहने वाले दुःख संतप्त प्राणियों की रक्षार्थ उनके घर में अवतरित होंगी। भगवती महर्षि कात्यायन के आश्रम पर प्रकट हुईं। महर्षि ने उन्हें अपनी कन्या माना। इसलिए वह देवी कात्यायनी नाम से प्रसिद्ध हुईं।
(7) काल रात्रि
विश्व के समाप्ति सूचक महाकाल, सबका नाश करने वाले काल की भी रात्रि की रात अर्थात् विनाशिका होने के कारण दुर्गा को सप्तम शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी गई।
मधु और कैटभ नामक दुष्ट दैत्यों के अत्याचार से आक्रांत सृष्टि को मुक्त करने के लिए महाशक्ति ने 'काल रात्रि' के रूप में रौद्र रूप धारण किया और दोनों दैत्यों का संहार किया।
(8) महागौरी
महागौरी आठवीं दुर्गाशक्ति हैं। तपस्या द्वारा परम गौर वर्ण प्राप्त करने के कारण ये ' महागौरी ' नाम से विख्यात हुईं।
देवी के तीन नेत्र हैं। वृषभ (बैल) इनकी सवारी है। स्वेत वस्त्र तथा अलंकार धारण करती हैं। चार भुजाएँ हैं। ऊपर बाएं हाथ में त्रिशूल है। ऊपर के दाएं हाथ में डमरू, वाद्य तथा नीचे वाले दाहिने हाथ वर मुद्रा में हैं।
(9) सिद्धिदात्री
दुर्गादेवी की नवीं शक्ति का नाम है सिद्धि दात्री। यह अष्ट सिद्धियों को देने वाली है।योग साधन से प्राप्त होने वाली आठ सिद्धियों के नाम इस प्रकार हैं– (1) अणिमा (2) महिमा (3) गरिमा(4) लघिमा (5) प्राप्ति (6) प्राकाम्य (7) ईशित्व और
(8) वशित्व।
ये सब सिद्धियाँ इस महाशक्ति की कृपा दृष्टि से अनायास ही सुलभ हो जाती हैं। यह देवी सिंह वाहिनी, चतुर्भुजा एवं प्रसन्नवदना हैं। दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा उपासना देव, ऋषि, मुनि, योगी, साधक और भक्त, सभी करते हैं।