हमारे त्यौहार : अनेकता में एकता के प्रतीक भारतीय पर्व और त्यौहार पर निबन्ध
हमारे त्यौहार : अनेकता में एकता के प्रतीक भारतीय पर्व और त्यौहार पर निबन्ध
संकेत बिंदु– (1) सभ्यता और संस्कृति के दर्पण (2) त्योहारों का देश (3) ऋतुओं से संबंधित पर्व (4) अलग अलग धर्मावलंबियों के पर्व (5) कई दिन तक चलने वाले पर्व।
सभ्यता और संस्कृति के दर्पण
भारतीय पर्व और त्यौहार भारतीय सभ्यता और संस्कृति के दर्पण हैं, जीवन के श्रृंगार हैं, राष्ट्रीय उल्लास, उमंग और उत्साह के प्राण हैं; विभिन्नता की इंद्रधनुषी आभा में एकरूपता और अखंडता के प्रतीक हैं और हैं जीवन के अमृत उत्सव।
'भारतीय पर्व और त्यौहार गहन सांस्कृतिक चिंतन, पौराणिक आख्यान, लोकरंजनात्मक वैज्ञानिक दृष्टिकोण, राजनीतिक पुनर्जागरण, आर्थिक संवर्धन एवं उत्साहपूर्ण सामाजिक जीवन के अभिराम अभिव्यंजक हैं।' –डॉ. सीताराम झा 'श्याम'
त्योहारों का देश
भारतीय संस्कृति आनन्दवाहिनी है, उल्लास सलिला है, अत: हमारे सारे पर्व मंगल माधुर्य से ओत प्रेत हैं। इसलिए यहाँ प्रत्येक दिन पर्व है, पूजा अर्चना का प्रसंग है। भारत तो त्योहारों का देश है। पंचांग खोलकर देखिए, हर दिन कोई न कोई त्यौहार है, मेला है। इनमें प्रमुख पर्व चार हैं | होली, रक्षाबन्धन, दशहरा और दीपावली। होली ही "नवानेष्टि यज्ञ” कहलाता है। कालान्तर में होली के अवसर पर उच्चरित होने वाला वेद मंत्रों का स्थान अश्लील और असभ्य वचनों ने ले लिया तो चन्दन की पवित्रता का स्थान लिया रंग बिरंगे गुलाल ने। रक्षाबन्धन वस्तुत: भाई बहिन के पावन प्रेम की रक्षा का त्यौहार है । समय के प्रवाह में पावन 'रक्षा पोटलिका' का स्थान बाजारू राखी ने ले लिया। दशहरा असत्य और आसुरीवृत्ति पर सत्य और देवत्व की विजय का साक्षी है। शक्ति की आशधरमना का पर्व है। दीपावली एक ओर ' तमसो या ज्योतिर्गमय ' की संदेशवाहिनी है, तो दूसरी ओर भगवती लक्ष्मी की आराधना और स्वागत का पर्व है। समाज की भौतिक समृद्धि लक्ष्मी पर ही आश्रित है। कहा भी गया है– सर्वे गुणा: काझन मापधैन्ते।' ऋतु परिवर्तन के संदेशवाहक दिवस भी पर्वरूपमें प्रसिद्ध हुए इनमें 'मकर संक्रांति', 'बैसाखी' तथा 'गंगा दशहरा', ये तीन प्रमुख पर्व हैं। पर्व के दिन पावन तीर्थों और नदियों में स्नान करने के महत्त्व पर बल दिया गया है। कृषि प्रधान भारत भू कै ऋतु पर्व कृषि के प्रसंग से आलोकित हैं।
ऋतुओं से संबंधित पर्व
तमिलनाडु का 'पोंगल' माघ (मकर) की संक्रांति पर लहलहाती फसल के घर आने पर प्रभु को भोग लगाने और गऊ बैलों की पूजा करने का पर्व है। केरल की शस्यश्यामला पुष्पाच्छादित भूमि पर श्रावण मास में आतन्दोपभोग का त्यौहार है ' ओणम्'। आश्विन शुक्ला सप्तमी से दशमी (विजय दशमी) तक बंगाल के ही नहीं अपितु पूर्ण भारत के नर नारी महिषासुर मर्दिनी ' दुर्गा पूजा' में मस्त हो गए। वैशाखमास में उड़ीसा में जगन्नाथ जी की 'रथयात्रा' भारत का सर्वप्रथम और विश्व प्रसिद्ध समारोह बना।
अलग अलग धर्मावलंबियों के पर्व
कार्तिक पूर्णिमा को 'मिटी धुंध जग चानण होया' उक्त के मूर्तिरूप गुरु नानक का जन्म दिवस सिक्खों का महान् पर्व है तो इसी दिन हरियाणा और उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध पर्व है-' नहान'। जिसमें गंगा और यमुना पर जन समाज उमड़ा पड़ता है। पाँचवें गुरु अर्जुनदेव तथा नवें गुरु तेगबहादुर के बलिदान दिवस सिक्खों के पवित्र त्योहार बने ।
जैन मत के पवित्र पर्वों में ' महावीर जयन्ती ' तथा ' पर्यूषण पर्व ' विशेष उल्लेखनीय हैं । ' महावीर जयन्ती' जैन मतावलम्बियों में अन्तिम तीर्थंकर महावीर स्थामी के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को मनाया जाता है।
समयवेत रूप से देखें तो प्रतिपदा का संबंध नववर्ष (नवसंवत्) से है | दूज 'भैय्या दूज' से जुड़ी है। तीज को 'हर तालिका' और 'हरियाली तीज' है। चौथ का दिन 'करवा चौथ' (करक चतुर्थी) और गणेश चतुर्थी को समर्पित है। पंचमी को 'नागपंचमी' और ' वसंतपंचमी ' मनाई जाती है। का सम्बन्ध कृष्ण अग्रज बलराम की जन्मतिथि 'हलषष्ठी ' से है। सप्तमी ' रथ सप्तमी ' और ' संतान सप्तमी ' को अर्पित है। नवमी भगवान् राम की पावन जन्म तिथि है। दशमी 'विजय दशमी' तथा “गंगा दशहरा” का स्मरण करवाती है । एकादशी निर्जला एकादशी, देवशयिनी एकादशी तथा देवोत्थानी ( प्रबोधिनी ) एकादशी के कारण प्रसिद्ध है। द्वादशी को 'वामन द्वादशी ' पड़ती है। केरल में ' ओणम्' भी श्रावण द्वादशी को मनाया जाता है| त्रयोदशी का संबंध धन त्रयोदशी तथा धन्वन्तरि जयन्ती से है । नरक चतुर्दशी, बैकुण्ठ चतुर्दशी तथा अनन्त चतुर्दशी चतुर्दशी को आलोकित करते हैं। पंद्रहवीं तिथि समर्पित है पूर्णिमा और अमावस को पूर्णिमा गौर्वान्वित करतो हैं होली, व्यास पूर्णिमा, रक्षाबंधन, शर्द पूर्णिमा और बुद्ध पूर्णिमा से तो अमावस्या को अलंकृत करते हैं-दीपावली और सर्वपितृ अमावस्या।
कई दिन तक चलने वाले पर्व
भारत के अनेक पर्व और त्यौहार का एक दिन नहीं, दो दिन नहीं, अनेक दिनों तक निरन्तर चलकर हिन्दू जन जीवन को अमृतमय बना देते हैं। वासन्तिक नवरात्र यदि नौ दिन तक धर्म की ध्वजा फहराते हैं तो शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से दसवीं तक उत्तर भारत में रामलीला से तथा पूर्व भारत में 'पूजा' द्वारा जीवन को उल्लास और उमंग प्रदान करते हैं।
भारत भगवान् के अनेक रूपों, देवी देवताओं तथा महापुरुषों का लीला स्थल है तथा विविधता और रंगीनी से परिपूर्ण है। जयन्तियाँ, पुण्यतिथियाँ, स्मृतियाँ सब हमारे यहाँ पर्व हो गईं। दशावतार, चौबीस तीर्थंकर, तेतीस करोड़ देवता, चौंसठ जोगनियाँ, छप्पन भैरव, छप्पन करोड़ महापुरुष सबकी जयन्ती और पुण्यतिथियाँ स्थान स्थान पर पर्व के रूप में मनाए जाते हैं।