सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - जीवन परिचय, रचनाएँ, काव्यगत विशेषताएँ
“ 'निराला' काव्य के रूप में शक्ति के पुंज हैं, अडिग आत्म विश्वास से वे ओत-प्रोत हैं, विपरीत विचारधाराओं के तूफानी थपेड़ों के बीच चट्टान की भाँति स्थिर रहने की सामर्थ्य रखते हैं। उनकी अन्त:शक्ति असीम है। उसी के बल पर वे विरोधों के बीच बढ़ते जाते हैं और विरोध को पराजित करते हैं।” –चतुरसेन शास्त्री
मृत्यु– सन् 1961 ई०
जन्म स्थान– मेदिनीपुर (बंगाल)
पिता– रामसहाय त्रिपाठी
अन्य बातें– तीन वर्ष की आयु में मातृहीन, 22 वर्ष में पत्नी का देहान्त, सारा जीवन संघर्षों औद , निर्धनता में बीता।
काव्यगत विशेषताएँ– स्वच्छन्दता, तुक और छन्द के बन्धन से रहित कविता, दार्शनिकता की छाप।
भाषा– शुद्ध संस्कृतनिष्ठ, प्रगतिवादी काव्य में सरल भाषा।
शैली– (1) कठिन तथा दुरूह, (2) सरल तथा सुबोध।
रचनाएँ– काव्य, उपन्यास, कहानी, निबन्ध, जीवनी आदि।
प्रश्न– सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला' का जीवन परिचय दीजिए तथा उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
(अथवा)“निराला” जी के व्यक्तित्व एवं कृत्तित्व पर प्रकाश डालिए।
जीवन परिचय– सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म सन् 1897 ई० (सं०1953 वि०) में बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। इनके पूर्वज उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़कोला गाँव में रहते थे। 'निराला' जी के पिता रामसहाय त्रिपाठी महिषादल स्टेट में नौकर होकर वहीं जा बसे थे। तीन वर्ष की अवस्था में ही आपकी माता का स्वर्गवास हो गया। इनकी पढ़ाई-लिखाई राज्य की ओर से हुई थी। 'निराला' जी को बचपन से ही संगीत में गहरी रुचि थी अत: इन्हें बंगला और संस्कृत की शिक्षा दी गयी। पन्द्रह वर्ष की अवस्था में ही आपका विवाह हो गया था। हिन्दी का ज्ञान आपने अपनी धर्मपत्नी से ही प्राप्त किया था। एक पुत्र तथा एक कन्या को जन्म देकर इनकी पत्नी संसार से विदा हो गयी। पिता और चाचा का भी स्वर्गवास हो गया। छोटी अवस्था में परिवार का सारा बोझ इनके कन्धों पर आ पड़ा। 'निराला' जी का सारा जीवन संघर्षों में ही बीता | परिवार में एकमात्र पुत्री बची थी लेकिन बीस वर्ष की आयु में वह भी चल बसी। पुस्तक प्रकाशकों और अखबार के मालिकों ने भी इनका खूब शोषण किया। गरीबी और पारिवारिक संघर्षों में पिसकर ये विक्षिप्त हो गये। जीवन के अन्तिम दिनों में आप विक्षिप्त अवस्था में इलाहाबाद (दारागंज) में एक कोठरी में रहते और रात दिन के सृजन तथा चिन्तन में ही लीन रहते थे। यहीं पर 2018 वि० (1961 ई०) में आपका स्वर्गवास हो गया।
साहित्यिक कृतियाँ–
1. काव्य– परिमल, गीतिका, तुलसीदास, अनामिका, अणिमा, कुकुरमुत्ता, बेला, नये पत्ते, गीत कुंज आदि।2. उपन्यास– अप्सरा, अलका, प्रभावती, चमेली, निरुपमा आदि।
3. कहानी संग्रह– लिली, सखी, चतुरी चमार आदि।
4. रेखाचित्र– कुल्ली भाट, बिल्लेसुर, बकरिहा आदि।
5. निबन्ध संग्रह– प्रबन्ध पद्य, प्रबन्ध परिचय आदि।
6. जीवनियाँ– राणा प्रताप, भीष्म, प्रह्लाद, ध्रुव, शकुंतला।
7. अनूदित ग्रन्थ– दुर्गेश नन्दिनी, रजनी, युगलांगुलीय, राधा रानी।
प्रश्न– महाकवि निराला की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।
श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' युगान्तकारी कवि थे। उन्होंने भाव, भाषा, छन्द, अलंकार आदि सभी में प्राचीन एवं परम्पराओं का विरोध किया तथा उन्हें नवीन दिशा दी। उनके काव्य में सर्वत्र नवीनता है।
भावपक्ष–
प्रकृति चित्रण– 'निराला' जी प्रकृति को मानवीकरण के रूप में चित्रित करते हैं। संध्या को शान्त एवं स्तब्ध सुन्दरी के रूप में देखते हैं-
“दिवसावसान का समय,
मेथमय आसमान से उतर रही है
यह संध्या सुन्दरी परी-सी
धीरे-धीरे-धीरे।"
प्रगतिवाद– 'निराला' जी छायावादी, रहस्यवादी होने के साथ प्रगतिवादी भी हैं वे पुँजीवाद के विरोधी हैं। 'भिक्षुक' कविता उनकी प्रगतिवादी रचना है। भिक्षुक चित्रण प्रस्तुत है-
“बह आता–
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठी भर दाने को, भूख मिटाने को,
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता।"
नवजागरण का सन्देश– 'निराला जी' प्रयोगवादी कविताओं के जन्मदाताओं में से हैं। दीन-दुःखियों की दुर्दशा, पुंजीपतियों द्वारा गरीबों का शोषण, अछूतों का उत्पीड़न आदि सामाजिक बुराइयों को देखकर उनका हृदय सिहर उठता था। उन्होंने अपनी कविताओं द्वारा अनेक सामाजिक बुराइयों का यथार्थ चित्रण करके भारतीय जनता को नवजागरण का संदेश दिया। 'निराला जी' ने एक ओर तो समाज के पीड़ित वर्ग का मर्मभेदी चित्रण किया और दूसरी ओर शोषक वर्ग का कुत्सित चित्र अंकित कर जनमानस को जगाने का प्रयत्न किया। पूँजीपतियों के शोषण का मार्मिक चित्र देखिए-
“अबे सुन बे गुलाब!
भूल मत, गर पाई खुशबू रंगो आब,
खून चूस खाद का तू ने अशिष्ट,
डाल पर इतरा रहा केपिटलिस्ट”
सामाजिक अत्याचारों से पीड़ित विधवा का मर्मभेदी चित्र भी देखने योग्य है-
“वह क़ूर काल ताण्डव की प्रति रेखा सी,
वह टूटे तरु की छुटी लता-सी दीन,
दलित भारत की विधवा है।
इस प्रकार अनेक सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक चित्र अंकित कर 'निराला' ने जनता को नवजागरण का सन्देश दिया है।
दार्शनिकता तथा रहस्यवाद– 'निराला जी' स्वामी रामकृष्ण परमहंस तथा स्वामी विवेकानन्द के दार्शनिक विचारों से विशेष रूप से प्रभावित थे, जिसके कारण इनकी कविता में आध्यात्मिक भावों का होना स्वाभाविक ही था। अमूर्त भावों को मूर्त रूप देने में आप प्रसाद के समकक्ष हैं। गम्भीर, दार्शनिक तथा निराली प्रतिपादन शैली के कारण आपके शब्द चित्र गम्भीर तथा उलझे हुए हैं किन्तु जहाँ भाषा सरल और कल्पना स्वाभाविक है, वहाँ आपकी रहस्यवादी कविताएँ भी स्पष्ट और सुबोध हो गयी हैं। विचारों से अद्वैतवादी होते हुए भी आपका हृदय प्रेम और भक्ति का सागर प्रतीत होता है। निराला जी के रूपक भावों को साकार रूप देने में समर्थ हैं। छायावादी कवियों में इनका स्थान बहुत ऊँचा है। प्रसाद, पन्त, निराला, और महादेवी वर्मा छायावाद के चार प्रमुख स्तम्भ हैं।
कलापक्ष–
'निराला' जी की भाषा– 'निराला' जी ने शुद्ध खड़ी बोली में रचना की है। इनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है। भाषा पर बंगला का प्रभाव भी साफ दिखाई पड़ता है। शब्दों की कोमलता तथा संगीत की मधुरता इनकी भाषा में सर्वत्र पायी जाती है। वे सरल से सरल और क्लिष्ट से क्लिष्ट, दोनों प्रकार की भाषा लिखने में सिद्धहस्त हैं।छन्द योजना– छन्द योजना में 'निराला' जी ने स्वच्छन्दता से काम लिया है। उन्होंने तुकान्त और अतुकान्त, दोनों प्रकार के छन्दों की योजना की है। छन्दों में वर्णों और मात्राओं की संख्या का बन्धन उन्होंने स्वीकार नहीं किया। हिन्दी में 'रबर' या 'केंचुआ' छन्द, जिसमें चरणों और चरण में वर्णों तथा मात्राओं का कोई नियम नहीं होता, “निराला” जी की ही देन है। परन्तु इनके अतुकान्त तथा नियम बन्धनरहित छन्दों में जो गति और संगीतात्मकता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।
अलंकार योजना– 'निराला' जी की कविता में अनुप्रास तथा यमक शब्दालंकारों के साथ उपमा, रूपक तथा सन्देह आदि अर्थालंकारों की सुन्दर योजना हुई है। इनके अतिरिक्त विशेषण विपर्यय, मानवीकरण तथा ध्वनि अनुकरण आदि नवीन अलंकारों का भी इन्होंने सुन्दर प्रयोग किया है।
निष्कर्ष– वास्तव में “निराला” जी एक क्रान्तिकारी युगस्रष्टा कवि थे। हिन्दी के आधुनिक कवियों में उनका स्थान बहुत ऊँचा है। वास्तव में 'निराला' जी एक निराले कवि थे।