मेरी प्रिय पुस्तक रामचरित मानस पर निबंध
मेरी प्रिय पुस्तक रामचरितमानस पर निबंध
इस निबन्ध के अन्य शीर्षक–- मेरी प्रिय पुस्तक : रामचरितमानस।
- हिन्दी का लोकप्रिय महाकाव्य।
रूपरेखा– 1. प्रस्तावना, 2. रामचरितमानस का परिचय, 3, उत्तम काव्य, 4. काव्यात्मक तथा सामाजिक महत्ता, 5. धार्मिक महत्त्व, 6. उपसंहार।
प्रस्तावना-
पुस्तक से बढ़कर कोई मित्र नहीं। यह ऐसा मित्र है कि जिससे हम एकान्त में बैठकर परामर्श कर सकते हैं। पुस्तक हमें गलत मार्ग पर चलने से बचाती है, हमारी कोई समस्या हो तो पुस्तक हमे उसका सही समाधान सुझाती है। पुस्तक ज्ञान का अक्षय भण्डार होती है। वैसे तो संसार में एक से बढ़कर एक पुस्तके हैं परन्तु उनमें महाकवि तुलसीदास द्वारा रचित 'रामचरितमानस' अपना विशेष महत्त्व रखती है। 'रामचरितमानस' को पढ़ने में मुझे एक अलौकिक आनन्द की प्राप्ति होती है, अनेक अच्छी शिक्षायें तथा उत्तम प्रेरणा मिलती हैं। जब कोई जटिल समस्या सामने आती है, उसका समाधान मुझे 'रामचरितमानस' में मिलता है। यही कारण है कि 'रामचरितमानस' मेरी सबसे अधिक प्रिय पुस्तक है।
रामचरितमानस का परिचय-
'रामचरितमानस' हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। लोकनायक तुलसीदास इसके रचयिता हैं। तुलसी ने इस ग्रन्थ की रचना सं० 1631 से 1633 वि० में की थी। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र का आदर्श जीवन-चरित इस काव्य का वर्ण्य-विषय है। इस काव्य में मानव जीवन की विविध दशाओं का स्वाभाविक और सजीव चित्रण किया गया है।
उत्तम काव्य-
काव्य कला की दृष्टि से यह एक उत्तम काव्य है। इसकी कथा सात काण्डों में विभाजित है। सर्गों के नाम हैं-बाल काण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्य काण्ड, किष्किन्धा काण्ड, सुन्दर काण्ड, लंका काण्ड तथा उत्तर काण्ड। वीर रस इस काव्य का प्रधान रस है। अन्य रसों का चित्रण सहायक रूप में हुआ है। दोहा और चौपाई छन्दों की शैली में लिखा गया यह बेजोड़ ग्रन्थ है। प्रत्येक काण्ड के आरम्भ में संस्कृत के मधुर छन्दों तथा बीच-बीच में विभिन्न छन्दों के प्रयोग से यह काव्य अति मनौरम हो उठा है। भाषा इतनी कोमल और मधुर है कि कहीं-कहीं तो ऐसा लगता है जैसे रसानुभूति के विलास में भाषा स्वयं थिरक उठी हो। श्रृंगार रस के अनुकूल भाषा का उदाहरण दर्शनीय है-
“चितवति चकित चहूँ देसि सीता,
कँह गये नृपकिसोर मन चीता।
लता ओट तब सखिन्ह दिखाए,
श्यामल गौर किसोर सहाए॥"
निस्सन्देह हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य होने का गौरव इस ग्रन्थ को प्राप्त है। इसीलिए यह काव्य विद्वानों का हृदयहार बन गया है।
काव्यात्मक तथा सामाजिक महत्व-
'रामचरितमानस' भाव और कला दोनों ही दृष्टि से विश्व के महानतम ग्रन्थों की श्रेणी में आता है। सम्पूर्ण रसों की सफल योजना, आदर्श चरित्रों का प्रस्तुतीकरण, सजीव आकर्षक प्रकृति चित्रण, समन्वय की सुन्दर योजना इत्यादि भावपक्ष की सभी विशेषतायें इसमें विद्यमान हैं। सरस, मधुर, साहित्यिक और साधिकार भाषा का प्रयोग, शैली की विविधता इत्यादि विशेषताओं के कारण यह ग्रन्थ काव्य कला की दृष्टि से भी एक अनुपम रचना है। उत्तम कलाकृति होने के साथ-साथ यह सामाजिक और चारित्रिक दृष्टि से भी अनूठी रचना है। पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्श-चरित्र के द्वारा इस ग्रन्थ ने निराश जनता में आशा का संचार किया। महान कवि ने इस अनूठी रचना में एक आदर्श समाज का रूप प्रस्तुत किया जिसमें राज़ा-प्रजा, पिता-पुत्र, माता-पुत्र तथा पति-पत्नी आदि सभी के कर्तव्यों का आदर्श निदर्शन प्रस्तुत किया गया है। इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता समन्वय की भावना है। विविध सम्प्रदायों, आचार-विचारों, चारों वर्णों और आश्रमों आदि का समन्वय इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता है।
धार्मिक महत्व-
धार्मिक दृष्टि से भी यह ग्रन्थ अद्वितीय है। सम्पूर्ण पुराणों, शास्त्रों और वेदों का सार रामायण (रामचरितमानस) में प्रस्तुत कर दिया गया है। स्वयं तुलसीदास कहते हैं-
“नाना पुराण निगमागम सारभूतं रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोअपि” मेरी यह प्रिय पुस्तक हिन्दुओं का पाँचवाँ वेद माना जाता है। लोग सन्ध्या-पूजा में धर्मलाभ के लिए इसका पाठ करते हैं। इसकी धार्मिक महत्ता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि साधारण पढ़े-लिखे से लेकर बड़े-बड़े विद्वानों तक और झोपड़ी से लेकर महल तक प्रत्येक हिन्दू परिवार में यह पवित्र पुस्तक पायी जाती है। 'रामचरितमानस' के अतिरिक्त अन्य किसी भी ग्रन्थ को ऐसी लोकप्रियता और ऐसा सम्मान प्राप्त नहीं हो सका।
उपसंहार-
लोकमंगल की साधना में यह काव्य आदर्श है। विवादास्पद विषयों का समाधान करने के लिए रामचरित मानस की उक्तियाँ प्रमाण मानी जाती हैं। वास्तव में वही ग्रन्थ उत्तम ग्रन्थ कहलाने का अधिकारी होता है जो सम्पूर्ण लोक का कल्याण करने में समर्थ है।
'रामचरितमानस' के रचयिता का स्पष्ट मत है-
“भूसन भनति, भूति भलि सोई। सुरसरि, सम सबकर हित होई॥”
वास्तव में 'रामचरितमानस' वह पवित्र और आदर्श ग्रन्थ है जो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र, प्रत्येक उद्देश्य और प्रत्येक आचरण के लिए शिक्षा प्रदान करता है। जिसकी आनन्ददायिनी सूक्तियाँ प्रत्येक समस्या का समाधान सुझाने की क्षमता रखती हो, वह मेरी ही नहीं, जन-जन की प्रिय पुस्तक है। भारतीय संस्कृति का तो वह प्राण ही रहतीं।