पं० जवाहरलाल नेहरू का जीवन परिचय, निबन्ध
संकेत बिंदु– (1) आधुनिक भारत के निर्माता (2) नेहरू जी का जन्म और बाल्यकाल (3) स्वदेश वापसी और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय योगदान (4) भारत विभाजन और नेहरू जी प्रथम प्रधानमंत्री (5) उपसंहार।
जन्म स्थान– प्रयागराज (इलाहाबाद), उत्तर प्रदेश
पिता– मोतीलाल नेहरू
माता– स्वरूप रानी नेहरू
जीवन संगिनी– कमला नेहरू
बच्चे– इंदिरा गांधी
पुरस्कार– भारतरत्न सन (1955 ई०)
मृत्यु– 27 मई 1964 ई० (दिल का दौरा पड़ने से)
पंडित जवाहरलाल नेहरू का जीवन परिचय (Biography of Pt. Jawaharlal Nehru in Hindi)
“अगर मेरे बाद कुछ लोग मेरे बारे में सोचें तो मैं चाहूँगा कि वे कहें– वह एक ऐसा आदमी था, जो अपने पूरे दिल व दिमाग से हिन्दुस्तानियों से मुहब्बत करता था और हिन्दुस्तानी भी उसकी खामियों को भुलाकर उससे बेहद, अजहद मुहब्बत करते थे।'' –जवाहरलाल नेहरू
पंडित जी के शब्दों को थोड़ा सा बदलकर यदि यह कहें कि थे मानवमात्र से मुहब्बत करते थे, तो अतिश्योक्ति न होगी। उनके निधन पर विश्व के समस्त राष्ट्रों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर शोक मनाया जाना, हमारे इस कथन के परिचायक है।
भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम के पथ दृष्टा, नवीन भारत के निर्माता, देश के प्रहरी, राजनीति के चाणक्य तथा बच्चों के चाचा एवं भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल का नाम भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा।
14 नवम्बर, 1889 ई० को प्रयाग में जवाहरलाल जी का जन्म हुआ था। आपके पिता का नाम मोतीलाल नेहरू था। मोतीलाल नेहरू एक सुप्रसिद्ध एवं धनाढ्य वकील थे। बाद में वे कांग्रेस के एक नेता के रूप में भी प्रसिद्ध हुए।
जवाहरलाल जी की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर हुई । घर पर ही पढ़ाने के लिए एक अंग्रेज विद्वान पंडित नियुक्त था। देश के शिक्षित वर्ग पर पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव होने के कारण पंडित मोतीलाल ने आपको 15 वर्ष की अल्पायु में शिक्षणार्थ इंग्लैण्ड भेज दिया। वहाँ इन्हें हैरो स्कूल में प्रविष्ट करा दिया गया। तत्पश्चात् आपने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश किया। यहाँ आप इंग्लैण्ड के धनी परिवार के बच्चों के साथ शिक्षा पाते थे। सम्राट एडवर्ड अष्टम आपके सहपाठी थे। कॉलेज में 'विज्ञान' में आपकी विशेष रुचि थी; परन्तु पिता की इच्छानुसार आप सन् 1972 में बैरिस्ट्री की परीक्षा उत्तीर्ण कर भारत लौटे। 1915 में आपका विवाह कमला जी के साथ हुआ।
स्वदेश लौटने पर पंडित जी ने वकालत आरंभ की, परन्तु उसमें उनका मन नहीं लगा। लगता भी कैसे ? इंग्लैण्ड जैसे स्वतन्त्र देश में भ्रमण किया हुआ जवाहर अपने देश को परतन्त्र कैसे देख सकता था? इधर देश में 1919 के रौलेट एक्ट तथा पंजाब के मार्शल लॉ एवं जलियाँवाला बाग के अमानुषिक अत्याचारों ने देश में जागृति उत्पन्न कर दी थी। इसी बीच प्रथम महायुद्ध छिड़ गया। जवाहरलाल जी लोकमान्य तिलक और श्रीमती एनीबेसेण्ट की दो होमरूलों के सक्रिय सदस्य बन गए। जब श्रीमती एनीबेसेन्ट गिरफ्तार हुईं, तो जवाहरलाल जी ने अपने पिता मोतीलाल नेहरू, डॉक्टर तेजबहादुर सप्रू और सर चिन्तामणि को उत्तरप्रदेशीय डिफेंस का कार्य बन्द करने के लिए विवश कर अहिंसात्मक आंदोलन का सूत्रपात कर दिया। देश के नेता महात्मा गाँधी के सन्देशानुसार आपने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। राजसी ठाठबाट छोड़ दिए और मोटा खद्दर का कुर्ता पहनकर एक सत्याग्रही सैनिक बन गए। इसके बाद उन्होंने अपना सारा जीवन देश के लिए राजनीति में घुला दिया। 1920 से लेकर 1944 तक अनेक बार सत्याग्रह किया और कारावास गए। इस दीर्घकाल में उन्हें अनेक कष्ट सहने पड़े । सत्याग्रह के दिनों में पत्नी तथा माता पिता की मृत्यु से इन पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा, परन्तु यह वीर सेनानी सब कुछ हँसते हँसते सह गया।
पंडित जी ने अपनी अन्तिम जेल यात्रा सन् 1942 में 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के अन्तर्गत की । इस बार आप तीन वर्ष तक कारावास में रहे। इसी बीच सन् 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया था। ब्रिटेन में चर्चिल के स्थान पर एटली (मजदूर नेता) की सरकार सत्तारूढ़ हो गई। उसने यह देखा कि भारत के स्वतन्त्रता संघर्ष को दबाना कठिन ही नहीं, असंभव भी है। दूसरे, ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति डावांडोल हो चुकी थी। तीसरी ओर, नौ सेना विद्रोह और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की हिन्द फौज के आक्रमण ने अंग्रेज सरकार को हिला दिया था। ऐसी स्थिति में बाध्य होकर सन् 1946 में अंग्रेज सरकार ने भारत को स्वतन्त्र करने का निर्णय लिया। इसके अनुसार एक अन्तरिम सरकार बनाई गई, जिसके प्रधानमंत्री जवाहरलाल जी बने | सन् 1947 में भारत विभाजन होने के साथ साथ ब्रिटेन द्वारा भारत को एक औपनिवेशिक राज्य घोषित कर दिया गया । इस समय भी आप औपनिवेशिक राज्य के प्रधानमन्त्री बने। सन् 1952 में प्रथम निर्वाचन हुआ। उसमें आप विजयी हुए और पुनः प्रधानमन्त्री बने। 1957 ई० के द्वितीय तथा 1962 ई० के तृतीय महानिर्वाचनों में भी आप विजयी हुए और प्रधानमन्त्री पद को मृत्यु पर्यन्त सुशोभित करते रहे।
विश्व शांति स्थापनार्थ पंचशील सिद्धान्तों के निर्माता थे। चीन के साथ हुए पंचशील सिद्धांतों के आधार पर मित्रता, इसका प्रथम उदाहरण बना। चीन द्वारा विश्वासघात कर सन् 1962 ई० के आक्रमण में पराजित भारत की वेदना नेहरू जी झेल न सके। 27 मई 1964 ई० को आपका देहांत हो गया।
पण्डित जी ने व्यस्त राजनीतिक जीवन में जो साहित्य सेवा की, वह भी कभी भुलाई नहीं जा सकती | 'मेरी कहानी' आपका सर्वोत्तम तथा सर्वप्रिय ग्रन्थ है। इसके अतिरिक्त 'भारत की कहानी', 'पिता के पुत्र पुत्री को' तथा 'विश्व इतिहास की झलक' आपकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। ये सारे ग्रन्थ आपने कारावास की कोठरियों में बैठकर लिखे थे। इस कारण इनका महत्त्व और भी बढ़ जाता है।