सत्संगति का महत्व पर निबंध – Satsangati Ka Mahatva Nibandh In Hindi
सत्संगति का महत्व पर निबंध – Satsangati Ka Mahatva Nibandh In Hindi
इस निबंध के अन्य शीर्षक-
- सत्संगति
- सठ सुधरहि सत्संगति पाई
- सत्संगति की उपादेयता
रूपरेखा–
- प्रस्तावना,
- सत्संगति का अर्थ,
- सत्संगति से लाभ,
- कुसंगति से हानि,
- उपसंहार।
प्रस्तावना
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में ही जन्मता और समाज में ही रहता, पनपता और अन्त तक उसी में रहता है। अपने परिवार, सम्बन्धियों और पास–पड़ोस वालों तथा अपने कार्यक्षेत्र में वह विभिन्न प्रकार के स्वभाव वाले व्यक्तियों के सम्पर्क में आता है। निरन्तर सम्पर्क के कारण एक–दूसरे का प्रभाव एक–दूसरे के विचारों और व्यवहार पर पड़ते रहना स्वाभाविक है। बुरे आदमियों के सम्पर्क में हम पर बुरे संस्कार पड़ते हैं और अच्छे आदमियों के सम्पर्क में आकर हममें गुणों का समावेश होता चला जाता है।
सत्संगति का अर्थ
सत्संगति का अर्थ है अच्छे आदमियों की संगति, गुणी जनों का साथ। अच्छे मनुष्य का अर्थ है वे व्यक्ति जिनका आचरण अच्छा है, जो सदा श्रेष्ठ गुणों को धारण करते और अपने सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों के प्रति अच्छा बर्ताव करते हैं। जो सत्य का पालन करते हैं, परोपकारी हैं, अच्छे चरित्र के सारे गुण जिनमें विद्यमान हैं, जो निष्कपट एवं दयावान हैं, जिनका व्यवहार सदा सभी के साथ अच्छा रहता है–ऐसे अच्छे व्यक्तियों के साथ रहना, उनकी बातें सुनना, उनकी पुस्तकों को पढ़ना, ऐसे सच्चरित्र व्यक्तियों की जीवनी पढ़ना और उनकी अच्छाइयों की चर्चा करना सत्संगति के ही अन्तर्गत आते हैं।
सत्संगति के लाभ
सत्संगति के परिणामस्वरूप मनुष्य का मन सदा प्रसन्न रहता है। मन में आनन्द और सद्वृत्तियों की लहरें उठती रहती हैं। जिस प्रकार किसी वाटिका में खिला हुआ सुगंधित पुष्प सारे वातावरण को महका देता है, उसके अस्तित्व से अनजान व्यक्ति भी उसके पास से निकलते हुए उसकी गंध से प्रसन्न हो उठता है, उसी प्रकार अच्छी संगति में रह कर मनुष्य सदा प्रफुल्लित रहता है। सम्भवत: इसीलिए महात्मा कबीरदास ने लिखा है-
“कबिरा संगति साधु की, हरै और की ब्याधि।
संगत बुरी असाधु की, आठों पहर उपाधि॥”
सत्संगति का महत्त्व विभिन्न देशों और भाषाओं के विचारकों ने अपने–अपने ढंग से बतलाया है। सत्संगति से पापी और दुष्ट स्वभाव का व्यक्ति भी धीरे–धीरे धार्मिक और सज्जन प्रवृत्ति का बन जाता है। लाखों उपदेशों और हजारों पुस्तकों का अध्ययन करने पर भी मनुष्य का दुष्ट स्वभाव इतनी सरलता से नहीं बदल सकता जितना किसी अच्छे मनुष्य की संगति से बदल सकता है। संगति करने वाले व्यक्ति का सद्गुण उसी प्रकार सिमट–सिमट कर भरने लगता है जैसे वर्षा का पानी सिमट–सिमट कर तालाब में भरने लगता है। अच्छे आचरण वाले व्यक्ति के सम्पर्क से उसके साथ के व्यक्तियों का चारित्रिक विकास उसी प्रकार होने लगता है जिस प्रकार सूर्य के उगने से कमल अपने आप विकसित होने लगते हैं।संगत बुरी असाधु की, आठों पहर उपाधि॥”
कुसंगति से हानि
कुसंगति सत्संगति का विलोम है। दुष्ट स्वभाव के मनुष्यों के साथ रहना कुसंगति है। कुसंगति छूत की एक भयंकर बीमारी के समान है। कुसंगति का विष धीरे–धीरे मनुष्य के सम्पूर्ण गुणों को मार डालता है। कुसंगति काजल से भरी कोठरी के समान है। इसके चक्कर में यदि कोई चतुर से चतुर व्यक्ति भी फँस जाता है तो उससे बच कर साफ निकल जाना उसके लिए भी सम्भव नहीं होता। इसीलिए किसी ने ठीक ही कहा है-
“काजल की कोठरी में कैसो ह सयानो जाय,
एक लीक काजल की, लागि है पै लागि है।”
इस प्रकार की कुसंगति से बचना हमारा परम कर्तव्य है। बाल्यावस्था और किशोरावस्था में तो कुसंगति से बचने और बचाने का प्रयास विशेष रूप से किया जाना चाहिए क्योंकि इन अवस्थाओं में व्यक्ति पर संगति (चाहे अच्छी चाहे बुरी) का प्रभाव तुरन्त और गहरा पड़ता है। इस अवस्था में अच्छे और बुरे का बोध भी प्राय: नहीं होता। इसलिए इस समय परिवार के बुजुर्गों और गुरुओं को विशेष रूप से ध्यान रख कर बच्चों को कुसंगति से बचाने का प्रयास करना चाहिए।एक लीक काजल की, लागि है पै लागि है।”