स्थान अजमेर (बुलाखीदास और गंगाराम पटेल की कहानियां)

स्थान अजमेर बुलाखीदास और गंगाराम पटेल की कहानियां

प्रातः काल गंगाराम पटेल और  बुलाखीदास नाई सोते से जगे, और उन्होंने शौच आदि नित्य कर्म किया फिर नाश्ता आदि करके सब सामान ठीक किया और चित्तौड़गढ़ से अजमेर की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में अनेकों वन पर्वत शोभा दे रहे थे। भीलवाड़ा इत्यादि देखते हुए वह अजमेर में पहुंचे।

अजमेर नगर कभी मेवाड़ राज्य की राजधानी थी। पूरा नगर पहाड़ी से घिरा हुआ है और इसमें बड़े बड़े अच्छे सुंदर रमणीक स्थान हैं। यहां ख्वाजा की दरगाह बड़ी प्रसिद्ध है। अनाह सागर सागर और फाई सागर यहां के शाही तालाब हैं। जहां प्रातः और सायंकाल हजारों स्त्री पुरुषों की भीड़ रहती है। पृथ्वीराज के पुराने किले के अवशेष हैं। तारागढ़ उसी का एक भाग है जहां अनंगपाल की बाबरी आदि प्रसिद्ध स्थान और अड़ाई दिन का झोपड़ा आदि ऐतिहासिक भवन हैं। हनुमान मंदिर तथा दौलत बाग अनाह सागर के पास है। जहां दर्शकों की भीड़ बनी रहती है। आंतर नागफनी तथा झरनेश्वर यहां पहाड़ों के ऊपर अच्छे रमणीक स्थान हैं। जहां अधिकांश साधु संत आकर ठहरते हैं। भाटा बाबरी में ही चंद्रभाट का पृथ्वीराज के समय का मंदिर है। बुलाखी और गंगाराम शाम के समय आकर इस भाटा बाबरी पर ठहरे। गंगाराम ने बुलाखी को खाने का सामान लाने को रुपए दिए। बुलाखी नगर में सामान खरीदने के लिए गया। सामान खरीद कर वापस आ रहा तो उसके मन में आया कि झरनेश्वर महादेव के भी दर्शन करता चलूं।

झरनेश्वर महादेव पहाड़ के ऊपर हैं। यहां पहाड़ों में से एक झरना है। किंतु उसका फिर आगे यह पता नहीं चलता कि उसका पानी कहां चला जाता है। उस झरने को पक्का बना कर एक कुएं का रूप दे दिया गया है। इसका पानी कभी समाप्त नहीं होता वहां अनेकों संत महात्मा रहते हैं तथा महंत लोग आते जाते हैं। सब उसी झरने के पानी का प्रयोग करते हैं।

बुलाखी ने जाकर झरनेश्वर महादेव के दर्शन किए। जब वह नीचे उतरकर झरने के पास आया तो देखा की दो-चार महात्मा तो तथा कुछ और आदमी वहां खड़े हुए हैं। उनके बीच में एक स्त्री तथा एक पुरुष भी है। वह स्त्री हाथ में जल लेकर उस पुरुष से संकल्प कर रही है। ज्यों ही स्त्री ने संकल्प करके पृथ्वी पर जल डाला उसी समय उसकी मृत्यु हो गई। यह देखकर वहां के देखने वाले सभी लोगों को आश्चर्य हुआ। वह भी अपने मन में आश्चर्य कर रहा था। कि संकल्प करने से इस स्त्री की मृत्यु क्यों हो गई?

वह गंगाराम पटेल के पास आया और बोला अब राम-राम लो। मैं अपने घर जा रहा हूं। गंगाराम कहने लगे बुलाखी एक दो दिन में तो हम घर पहुंच जायेंगे। तुमने कोई अनोखी बात देखी होगी तो रोज की भांति खाना बना खा कर सोते समय तुम्हें उसका उत्तर दूंगा।

पटेल जी खाना खाकर जब आराम करने लगे तो बुलाखी ने हुक्का ताजी भर के सामने रखा और वह हुक्का पीने लगे। सब कामों से निश्चिंत होकर वह पटेल जी के पांव दबाने लगा। तो उन्होंने बुलाखी से कहा कि अब बताओ कि आज तुमने ऐसी क्या अजीब बात देखी है। तब सब घटना सुना कर बुलाखी ने कहा अब आप कृपा करके बताएं कि संकल्प करते ही वह स्त्री क्यों मर गई? बुलाखी ने हूँकारा भरने की हामी भरी तो पटेल जी ने भी बात कहना शुरू किया। गंगाराम पटेल बोले- सुनो एक गांव में रामनाथ नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सरस्वती था। रामनाथ के बड़े भाई उससे अलग रहते थे। रामनाथ के कोई संतान नहीं थी, वह दो ही प्राणी थे। संतान का अभाव उन्हें बहुत खटकता था। रामनाथ अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता था। वह उसे एक क्षण को भी अकेला छोड़ने को तैयार नहीं था। एक दिन स्त्री रामनाथ से कहने लगी। 
दोहा
सब सुख ईश्वर ने दयौ, दई नहीं संतान।
प्राणनाथ संतान बिन, होता दुःख महान।।
पार परोसी ऊकते, वह कहैं निपूती मोय।
सुनकर उनकी बात को, शर्म आवती मोय।।
अपनी पत्नी की इस प्रकार दुख पूर्ण बातें सुनकर रामनाथ कहने लगा
दोहा
जो कुछु लिखी लिलार में, मेंट सके न कोय।
करम गति जग में प्रबल, पछिताये का होय।।
भाग्य में संतान नहीं है तो चाहे कुछ भी उपाय करो संतान का सुख नहीं होगा। अपने मन में भगवान का ध्यान धर धैर्य धारण करो। सरस्वती कहने लगी कि भगवान ने धन तो दे ही रखा है। हम तुम दो ही प्राणी हैं। चलो अब तीरथ यात्रा करें। शायद वहां किसी संत महात्मा के दर्शन हो जाएं और उनके आशीर्वाद से ही संतान का सुख मिल जाए। इतनी सुनकर रामनाथ कहने लगा।
दोहा
हे प्यारी स्वीकार है, उत्तम तेरा विचार।
तीरथ करने के लिए, होजा अब तैयार।।
अगले ही दिन सरस्वती ने यात्रा का सब सामान, नकद रुपया आदि संभाल कर रख लिया। और दोनों तीर्थ यात्रा को चल दिए। उन्होंने बहुत से तीर्थ स्थानों में दर्शन एवं स्नान किया। शाम को किसी साधु के आश्रम पर वे ठहरे और वहां सत्संग करते थे। इस प्रकार उनके चित्त को बड़ी शांति मिलती थी।

एक दिन की बात है। कि वे दोनों वृंदावन में यमुना के तट पर स्नान करके भजन ध्यान में बैठ गए। कुछ देर बाद ठहरने के स्थान का ध्यान आया तो जंगल में वहां से दो मील के लगभग एक महात्मा का आश्रम बताया था। वहां जाने का विचार उन दोनों ने किया। गर्मी का महीना था, धूप भी तेज पड़ रही थी। वह दोनों लगभग एक मील ही चले होंगे कि दोनों के कपड़े पसीने से भीग गए। रास्ते के किनारे पीपल का एक बहुत बड़ा पेड़ था। दोनों सामान सहित पीपल की छांव में बैठ गए और अपना बिस्तर बिछा कर आराम करने लगे। 
ठंडी ठंडी हवा लगी तो सरस्वती को नींद आ गई और वह अचेत होकर सो गई। रामनाथ को भी झपकी सी आ गई थी। परंतु जैसे ही उसकी आंख खुली तो उसने देखा कि एक काला सांप सरस्वती के पैर में काट कर, पीपल की जड़ में घुस गया। रामनाथ एकदम हड़बड़ा उठा और उसने अपनी पत्नी को झकझोरा किंतु उसे तो काला सांप काट गया था। जिससे उसका दम निकल चुका था।

रामनाथ बहुत दुखी हुआ और उसने समझ लिया कि जब उसकी पत्नी ही नहीं रही तो अब उसका भी संसार में जीवित रहना व्यर्थ है। वह प्यारी पत्नी का वियोग सह नहीं सकता था। इस कारण वह आत्महत्या करना ही चाहता था। कि साधारण स्त्री पुरुष के भेष में वहां शिव पार्वती प्रकट हुए। शिव जी ने रामनाथ से कहा कि तुम इतने दुखी क्यों दिखाई दे रहे हो? इसका क्या कारण है? रामनाथ ने सब बात बताई और कहा कि मैं तो अपनी पत्नी के बिना जीवित नहीं रह सकता। शिवजी उसे समझा कर कहने लगे कि मुझे कुछ सिद्धि प्राप्त है। उसके प्रताप से तुम्हें यह बात बताता हूं कि तुम्हारी पत्नी की आयु पैंतीस साल लिखी हुई थी। वह आयु इसकी पूरी हो गई है और तभी सांप ने इसको काटा है। तुम्हारी उम्र 85 वर्ष लिखी हुई है जिसमें से तुम्हारे 45 साल पूरे हो चुके हैं तुम अपनी स्त्री का शोक ना करो मौत तो एक दिन सबको आती है। रामनाथ कहने लगा- हे सिद्धराज! आपने जो कुछ भी कहा ठीक है। परंतु मैं अपनी पत्नी के बिना अब संसार में जीवित नहीं रह सकता। जब शिवजी के अनेकों भाँति समझाने पर भी रामनाथ नहीं माना, तो वह कहने लगे कि अब ऐसा करो तुम अपनी उम्र में से 20 वर्ष का संकल्प अपनी स्त्री को अर्पण कर दो। तुम्हारी उम्र पाकर यह जीवित हो उठेगी और तुम्हारी 20 वर्ष घट जाएगी अर्थात बाद में तुम दोनों एक साथ मरोगे परंतु तुम यह बात अपनी पत्नी को कभी मत बताना।

रामनाथ इस बात पर तैयार हो गया। हाथ में जल लेकर शिव जी ने रामनाथ की 20 साल की उम्र स्त्री को देने का संकल्प का जल पृथ्वी पर गिरते ही उसकी पत्नी उठ कर बैठ गई और अपने पति से कहने लगी आज तो दुपहरी में मुझे बड़ी अधिक नींद आ गई।

शिव पार्वती तो पहले ही वहां से अंतर्ध्यान हो गए थे। रामनाथ और सरस्वती भी उस स्थान से महात्मा की कुटी की ओर चल दिए कुछ देर चलते चलते वह महात्मा के आश्रम में पहुंच गए और महात्मा से आज्ञा लेकर वहां ठहर गए। वहां दो दिन रुकने के बाद उन दोनों की इच्छा हुई कि उस शांति दायक स्थान में थोड़े दिन और ठहरा जाए।

अगले दिन रामनाथ तो नहाने गया था। उसकी पत्नी से एक महात्मा ने बात करना शुरू किया वह 40 की आयु का एक तंदुरुस्त आदमी था। सरस्वती ने महात्मा को बताया कि उसके कोई संतान नहीं है। तो कहने लगा अरे तुम्हारे भाग्य में तो दो संतान हैं। परंतु वह तुम्हारे इस पति से नहीं होगी। तुम चाहो तो मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करके के लिए अपने तपस्या खत्म कर सकता हूं। 
सरस्वती उसके पैरों में पड़कर कहने लगी आप कृपा कर मेरे संतान उत्पन्न कर दे। मैं संतान की खातिर अपने पति को भी त्याग दूंगी। महात्मा ने उसे धीरज बँधाया। सरस्वती और महात्मा की आंखें तो लड़ चुकी थी। रामनाथ जब नहा कर आया तो उसे सरस्वती ने किसी प्रकार की शंका नहीं होने दी। अब तो जब भी मौका मिलता सरस्वती और महात्मा दोनों रामनाथ को छोड़कर कहीं भाग जाने का विचार बनाया करते। सरस्वती उसके इशारे पर सब कुछ छोड़ने व करने को तैयार थी।

आपस में सलाह कर एक दिन सरस्वती ने रामनाथ को खाने में विष दे दिया और जब वह बेहोश हो गया तो ढोंगी महात्मा सरस्वती को उस के सब धन के समेत अपने साथ लेकर भाग गया।

उसी दिन एक महात्मा शाम के समय ठहरने को उस स्थान पर आया। और उसने रामनाथ की दशा देखी तो समझ गया कि इस आदमी को जहर दिया गया है। उसने जड़ी बूटियों से उसका इलाज किया। विष का प्रभाव दूर होने पर उसे पता चला, कि उसकी पत्नी सरस्वती उसका सब धन लेकर यहां रहने वाले एक महात्मा के साथ भाग गई है। तो उसे बड़ा दुख हुआ महात्मा ने उसको सब प्रकार से धैर्य बंधाया और समझाया कि सब दुनिया स्वार्थी है। यहां कोई किसी का नहीं परंतु उसकी बातें रामनाथ की समझ में नहीं आई और उसने पत्नी को ढूंढने का निश्चय किया। वह कुटी छोड़ कर चल दिया और यहां वहां जगह जगह अपनी पत्नी का पता लगाने लगा। इस प्रकार उसे बरसों बीत गए आज झरनेश्वर महादेव पर वह आदमी सरस्वती सहित आया था। घूमता हुआ रामनाथ भी वहीं आ पहुंचा था। उसने अपनी पत्नी को पहचान लिया। जब उसने साथ चलने को कहा तो वह और उसके साथ का आदमी जो वही ढोंगी था, झगड़ा करने लगा। उसने लोगों को बताया कि यह स्त्री मेरी पत्नी है, मुझे जहर देकर इसके साथ चली आई है। सरस्वती ने कहा यह पुरुष मेरा कोई नहीं है। मैं कोई नहीं तो ठीक है। लेकिन मैंने तुझे जो वस्तु संकल्प की थी, वह मुझे संकल्प करके लौटा दे। सरस्वती ने हाथ में जल लेकर संकल्प किया कि मैंने जो कुछ इस पुरुष से लिया है। वह वापस करती हूं। तो संकल्प का जल पृथ्वी पर गिरते ही स्त्री की मृत्यु हो गई। हे बुलाखी! तुम यही घटना झरनेश्वर पर देख कर आए हो। जो मैंने सुनाई है। अब सो जाओ, रात ज्यादा हो गई है। सवेरे जल्दी जागना है।
Next Post Previous Post