स्थान नारायणी धाम - गंगाराम पटेल और बुलाखी दास की कहानी
स्थान नारायणी धाम - गंगाराम पटेल और बुलाखी दास की कहानी
प्रातः काल गंगाराम पटेल और बुलाखी ने सोते से जगने के बाद अपना नित्य कर्म किया। तब बुलाखी कहने लगा कि अब तो अपना गांव भी यहां से करीब ही है भगवान की कृपा से हमारी यात्रा भी सकुशल पूर्ण हो गई है
बुलाखी की बात सुनकर गंगाराम बोले- हे बुलाखी! यहां से हम नारायणी धाम होकर घर चलेंगे। गंगाराम की बात सुनकर बुलाखी पूछने लगा कि यह नारायणी धाम कहां है? और वहां कौन सी देवी हैं और वह क्यों प्रसिद्ध है?
पटेल जी बोले कि नारायणी धाम में कोई देवी नहीं है। यह एक सती का स्थान है और भानगढ़ के पास है। कहते हैं कि एक पति-पत्नी जो उस स्थान से होकर गर्मी के दिनों में जा रहे थे। तो वह वही एक पेड़ के नीचे आराम करने लगे। पति को नींद आ गई, स्त्री पास बैठी थी। उस समय एक काले नाग ने आदमी को डस लिया। स्त्री बहुत दुखी हुई और उसने सोचा कि मेरे पति का प्राणांत हो चुका है। अब मेरा संसार में जीवित रहना व्यर्थ है। मैं यहां अपने पति के साथ ही सती हो जाऊं तो उचित होगा। कुछ ग्वारिया वहां अपनी गाय भैस चरा रही थी। स्त्री ने कहा कि तुम्हारी बड़ी कृपा होगी जो यहां कुछ लकड़ी इकट्ठा कर दो। जिससे मैं पति के शरीर के साथ सती हो जाऊं।
गवरियों ने उसकी सहायता की। कुछ लकड़ी इधर उधर से इकट्ठी कर दी। अपने मृतक पति के शरीर को लेकर साध्वी स्त्री चिता में बैठ गई। उस चिता में अपने आप आग लगी तो ग्वारियों को बड़ा आश्चर्य हुआ। तब उन्होंने उसे देवी का रूप समझा। गवारिया हाथ जोड़कर कहने लगीं। आप साक्षात देवी हो यहां हमारे पशु बिना पानी पिये बिना रहते हैं। आप कोई ऐसा आशीर्वाद दें जिससे पानी का संकट दूर हो जाए।
सती कहने लगी कि अब से यहां पानी का दुख दूर हो जाएगा। वह सती हो गई और उसके बाद कहते हैं कि उसी चिता में से ही एक झरना बह निकला। आज वहां सब पशु तथा स्त्री पुरुष आराम से पानी पीते हैं।
उस स्थान पर एक मंदिर बन गया और झरने के स्थान पर एक तालाब है। जहां सैकड़ों यात्री नित्य आते जाते हैं। वह दोनों अजमेर से नारायणी धाम को पहुंच गए। वहां पहुंचकर सुंदर रमणीक स्थान देख कर उन्हें बड़ा आनंद हुआ। उन्होंने झरने में स्नान किया। महासती के दर्शन किए और पुजारी से भोग लगवाकर प्रसाद पाया।
जलपान करने के बाद एक वृक्ष की छांव में आसन लगाकर वह विश्राम करने लगे। थोड़ी देर बाद बुलाखी को प्यास लगी तो वह पानी लेने आया। वहां पर उसने पानी पिया और लोटा में पानी भरकर पटेल जी के पास वापस जाना ही चाहता था। कि उसी समय एक स्त्री और अंधा पुरुष वहां आए। अंधा जब उस झरने में नहाया तो उसे आंखों से दिखने लगा। वह स्त्री पुरुष आनंदित हो उठे। नहा धोकर मंदिर से सती का भोग लगाकर खुश होते हुए अपने घर को चले गए।
यह सब देख और मन में विचार करता हुआ। वह पटेल जी के पास आया और उन्हें जल का लोटा दिया और झरने पर देखी वह बात बताई और बोला अब आप कृपा कर बताएं कि वह दोनों स्त्री पुरुष कौन थे? पुरुष कैसे अंधा हुआ था? यहां आकर उसे क्यों दिखने लगा?
तब गंगाराम कहने लगे एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था। जिसका नाम सुदर्शन था। शीला नाम की उसकी पत्नी थी जो बड़ी पतिव्रता थी। लेकिन उनके कोई संतान नहीं थी। एक बार वह दोनों पति-पत्नी तीर्थ यात्रा करते हुए जयपुर में आए और गलताजी पर ठहरे। स्थान बहुत रमणीक है बहुत से महात्मा और संत वहां ठहरे रहते हैं।
एक वयोवृद्ध महात्मा अपना आसन एक ओर लगाए हुए बैठा था। शीला और सुदर्शन उसके पास गए और उस महात्मा के चरण छू कर बैठ गए। सुदर्शन कहने लगा कि ईश्वर ने मुझे धन का तो सुख दिया है, खाने पीने की कोई कमी नहीं है, साधु सेवा तथा तीर्थयात्रा भी कर लेता हूं। परंतु इतना होने पर भी हम लोगों को एक बड़ा दुख है, कि हमारे कोई संतान नहीं है। सुदर्शन की बात सुनकर वयोवृद्ध महात्मा कहने लगे कि मैं तो साधारण साधु हूँ। सुना है बाबा रामदास जो कि हिमालय पर्वत पर रहते हैं। शायद उन के आशीर्वाद से तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो जाए। महात्मा के वचनों को सुनकर सुदर्शन और शीला बहुत प्रसन्न हुए।
आमेर, नरसिंहगढ़ रोड, किशनगढ़ इत्यादि होते हुए उन्होंने पुष्कर जी जाकर स्नान किया। ब्रह्मा जी का मंदिर, पंचकुंड, गौमुखी लीला, सेवरी, नौशेरा, चंडी देवी और मनसादेवी आदि के दर्शन किए और सायंकाल एक महात्मा की कुटी में ठहर गए। उस महात्मा की आयु लगभग 100 वर्ष थी। उसके आश्रम पर 18 वर्ष की एक परम सुंदरी कन्या रहती थी। सुदर्शन ने उस सुंदरी कन्या को देखा तो उसका मन उसकी सुंदरता पर मुग्ध हो गया। सुदर्शन को इस बात उस कन्या को निहारते देखकर उस साधु को बड़ा क्रोध आया और बोला तू जो इस कन्या को इस प्रकार देख रहा है इसलिए तू अब अंधा हो जा।
महात्मा के श्राप से सुदर्शन अंधा हो गया। यह सब देख उसकी पत्नी को बड़ा दुख हुआ और उसने महात्मा से बहुत विनय की कि श्राप को निष्फल कर दें। परंतु वह महात्मा नहीं माना शीला कहने लगी कि मैं भी एक पतिव्रता स्त्री हूं, मैं चाहूं तो तुम्हें शाप दे सकती हूं। परंतु मैं ऐसा नहीं करूंगी क्योंकि इससे मेरा पुण्य समाप्त हो जाएगा। तब दूसरे दिन प्रात काल उठकर शीला ने बाबा रामदास के स्थान का पता लगाया और सुदर्शन का हाथ पकड़कर बाबा रामदास के स्थान पर पहुंच गई। बहुत से संत उनके पास बैठे हुए थे। वह सुदर्शन का हाथ पकड़कर महात्मा जी के सामने ले गई और पति के सहित चरणों में गिर गई और रोते हुए बोली महाराज हम पति-पत्नी आपके दर्शनों को आ रहे थे तो रात में एक महात्मा की कुटी पर ठहर गए। कल तक मेरे पति ठीक थे, परंतु उस महात्मा के शाप से अंधे हो गए हैं। हे महात्मा आप मुझ दुखिया पर कृपा दृष्टि करें। महात्मा बोले देखो तुम्हारे पति से अनजाने में एक भूल हुई थी। इसने बालकपन में पेड़ पर बैठे हुए एक कबूतर के गुलेल से एक गुल्ला मारा था। उस कबूतर की आंख फूट गई थी। इसी पाप से आज तुम्हारा पति उस महात्मा के श्राप देने से अंधा हो गया है। तू बड़ी धर्म परायण पतिव्रता स्त्री है। पतिव्रताओं की शक्ति का भगवान भी पार नहीं पा सकते। तू अपने पतिव्रता धर्म की शक्ति से उस महात्मा का मनमाना अपकार कर सकते थे। परंतु तूने कुछ भी नहीं किया।
महात्मा कहने लगे बेटी जो करता है भगवान अच्छा ही करता है। मनुष्य तो एक निमित्त मात्र है। उसका तो बहाना हो जाया करता है अच्छे कर्मों का फल अच्छा ही होता है। तेरे पति को उस महात्मा ने शाप दिया है। मैं उसके साथ का निष्फल नहीं बना सकता। हां मैं तुझे एक ऐसा उपाय बताता हूं, जिससे इसको दृष्टि पुनः प्राप्त हो सकती है। तेरे भाग्य के विषय में भी मैंने पता लगा लिया है। अब तू नारायणी धाम से अपने घर को वापस जाएगी तो दो वर्षों में तेरे एक पुत्र रत्न उत्पन्न होगा और उसके बाद में एक-एक करके पुत्री तथा एक पुत्र और होंगे। हे बेटी तुम अपनी पतिव्रता धर्म को इसी प्रकार निभाना। जिस प्रकार अब तक निभाया है।
बाबा रामदास के इन वचनों को सुनकर सुदर्शन तथा शीला बहुत प्रसन्न हुए और आशीर्वाद ले कर चल दिए।
हे बुलाखी भाई तुम उसी सुदर्शन को आज देखकर आए हो। जो अंधे से सूझता हुआ है। अब तुम्हारी सब शंका दूर हो गई होगी। रात भी अधिक हो गई है इसलिए सो जाओ। सवेरे उठकर घर चलना है।
सुबह शौचादि से निवृत होकर दोनों ने अपने घर जयपुर की ओर प्रस्थान किया रेलगाड़ी छुक छुक करती भागी जा रही थी। पटेल जी के सामने बैठा बुलाखी खुशी से झूम रहा था। पटेल जी ने पूछा बुलाखी तुम्हें यात्रा पसंद आई।
बुलाखी बोला हां महाराज आपके साथ मैंने जितनी भी यात्राएं की है उनमें मुझे सबसे अच्छी लगी है। जो कथाएं आपने सुनाई हैं मनोरंजक ही नहीं थी बल्कि उनमें शिक्षा तथा ज्ञान की बातें भी भरी थी। मैं आपका जन्म जन्म तक ऋणी रहूंगा। गंगाराम पटेल हँसकर बोले- अबकी बार मेरे मन में ब्रज की यात्रा के लिए मथुरा जाने की इच्छा है। देखो परमात्मा कब ऐसा शुभ अवसर देंगे।