स्थान आबू पर्वत (गंगाराम पटेल और बुलाखी दास की कहानियां)
स्थान आबू पर्वत (गंगाराम पटेल और बुलाखी दास की कहानियां)
प्रातः काल का समय था बुलाखी दास और गंगाराम पटेल सोने से उठने के बाद अपने नित्य कर्म से फारिग हुए। सब सामान संभाला और कुछ नाश्ता किया। बाद में आश्रम के महात्मा को गंगाराम पटेल ने माथा नवाकर कुछ रुपए भेंट किए और आज्ञा लेकर अपने घोड़ों को आश्रम में ही छोड़ दिया। और रेल द्वारा चल दिए आबू पर्वत की ऊंची ऊंची चोटियां तथा उन पर हरे-भरे फल फूलों वाले वृक्ष मन को लुभाते हुए प्रतीत होते थे।
शाम के समय वे दोनों आबू पर्वत पर आ गए। पर्वत बड़ा रमणीक था, उस पर अनेक बड़े बड़े मंदिर थे। जिनमें जैन मंदिर तथा अंबाजी का मंदिर तो बहुत ही प्रसिद्ध है, तथा शोभायमान थे। वहीं अनेक साधु संतों के आश्रम थे। जहां बहुत से महात्मा शोभा पा रहे थे। कहीं सत्संग होता था, तो कहीं उपदेश और प्रवचन हो रहे थे।
पुराने महात्माओं की अनेक गुफाएं थी। जिनके दर्शन मात्र को यात्री आते जाते थे। जैसे- भर्तृहरि गुफा, गोरखनाथ की गुफा इत्यादि जिधर देखो उधर आनंद ही आनंद दिखाई देता था। मुख्य दर्शनीय स्थानों को देखते हुए गंगाराम पटेल और बुलाखी दास पर्वत के नीचे उतरे नीचे एक सुंदर छोटा सा नगर था। जहां खाने पीने की वस्तुएं उपलब्ध हो जाती थी। वही एक झरने के पास उत्तम जगह देखकर गंगाराम पटेल ने ठहरने का विचार किया और बुलाखी से कहने लगे कि देखो पानी का यह झरना बह रहा है। पड़ोस में जंगल भी है यहां ठहरने से शौच आदि में किसी बात का भय नहीं है। मेरे विचार से तो यही रुक जाए तो अच्छा है। बुलाखी को भी पटेल जी का विचार अच्छा ही मालूम पड़ा, और उसने अच्छी सी जगह देखकर वहां सब सामान रख दिया। वहां जंगल में मंगल हो रहा था। कुछ लोग भगवान का भजन कीर्तन कर रहे थे, तो कुछ देवी जी की भेंट गा रहे थे। वहां सभी संप्रदाय के महात्मा जा रहे थे। स्थान स्थान पर धर्म चर्चाएं होने से यह स्थान साक्षात स्वर्गधाम सा प्रतीत होता था।
गंगाराम पटेल ने बुलाखी को कुछ रुपए सामान लाने को दिए। वह बस्ती में सामान लेने के लिए गया वह इधर उधर देखता जाता था। कि उसे कोई ऐसी अनोखी बात दिखे जिसे जाकर पटेल जी से पूछे वह देखते-देखते बहुत दूर निकल गया। उसे कोई भी अनोखी बात दिखाई नहीं दी घूमते घूमते उसे अंधेरा हो गया था। इसलिए उसने जल्दी से खाने का सब सामान खरीद लिया और जब अपने ठहरने के स्थान की ओर चला आ रहा था तो आज उसका चित्त कुछ उदास जैसा था। क्योंकि उसने कोई अनोखी बात नहीं देखी थी। वह सोच रहा था कि रोज की भांति मैं आज पटेल जी से क्या पूछूंगा? यही विचार करता हुआ वह बस्ती के बाहर आया। यहां से उसके ठहरने का स्थान थोड़ी ही दूर था। अंधेरे में जब अपने दाहिनी ओर नजर डाली तो उसे एक बहुत बड़ा तालाब दिखाई दिया वह तालाब की ओर देख ही रहा था। कि उसे आकाश मार्ग में कुछ प्रकाश होता हुआ दिखाई दिया। जो धीरे-धीरे उसी की ओर आ रहा था। यह देखकर उसे बहुत कौतूहल हुआ। थोड़ी देर में उसने देखा, कि वहां एक उड़न खटोला रुका और उसमें से स्वर्ण कुंडल और राजसी वस्त्र धारण किए हुए एक पुरुष उतरा। तब उसकी समझ में आया कि उसे जो प्रकाश दूर से दिखाई दे रहा था। इसी खटोले से उतरने वाले महापुरुष के मुख्य मंडल की ज्योति थी।
वह पुरुष उड़न खटोले से उतरकर तीन चार कदम चला होगा कि वही पास खड़े एक मुर्दे के पास पहुंच गया। पुरुष अपने हाथ में एक फरसा लिए हुए था उसी से वह उस लाश में से मांस काट काट कर खाने लगा। और जब उसका पेट भर गया तो तालाब से जल पिया और अपने उड़न खटोले में बैठ गया। उड़न खटोला ऊपर को उड़ गया। इस तरह वह तेजस्वी पुरुष जिधर से आया था। उधर को ही चला गया। इसके बाद जो कटी कटी लाश वहां पड़ी थी वह भी गायब हो गई। यह सब कुछ देख कर बुलाखी दास के आश्चर्य की सीमा न रही। वह विचार करने लगा कि उड़न खटोले से उतरने वाला आदमी देखने से तो कोई देवता विद्याधर या गंधर्व ही मालूम पड़ता था। और इतना तेजवान था कि उसके मुख्य मंडल का उजाला सब दिशाओं को प्रकाशित कर रहा था। वह शव से मांस काट कर खा रहा था। यही बुलाखी नाई के आश्चर्य का कारण था कि ऐसा तेजवान पुरुष शव का मांस क्यों खा रहा था? फिर उस आदमी के जाने के बाद वह मृत व्यक्ति भी गायब हो गया। अपने मन में नए-नए विचार बनाता हुआ बुलाखी गंगाराम के पास गया और उनके सामने सामान रख दिया और कहने लगा कि आज मैं एक ऐसी अद्भुत बात देख कर आया हूं। जिसका जवाब आप कभी नहीं दे सकते हैं। इस कारण मेरी राम-राम लो मैं अपने घर जा रहा हूं। इतनी सुनकर पटेल कहने लगे तुम्हें मालूम है कि तुमने अब तक जितनी भी अजीब बातें देखी हैं। उनका जवाब मैंने दिया है। आज भी तुम्हारी बात का जवाब दूंगा लेकिन पहले खाना बना खा लो बाद में पूछना।
गंगाराम की बात सुनकर बुलाखी पास के झरने से पानी भरकर लाया और बर्तन साफ किए, चूल्हा चेताया, साग बना कर चढ़ाया और आटा गूंथा। जब साग बन गया तो पटेल जी पराठे बनाने लगे। जब वह भोजन बनकर तैयार हो गया तो दोनों ने आनंदपूर्वक भोग लगाया। फिर बुलाखी ने पटेल जी का बिस्तर लगाया और हुक्का भर कर उनके सामने रखा। जितनी देर में पटेल जी ने हुक्का पिया बुलाखी ने सब बर्तन साफ किए और अब अपना सामान संभाल कर रखा। फिर बुलाखी धीरे-धीरे पटेल जी के पैर दबाने लगा। पाँव दबाते दबाते जब पटेल जी को नींद आने लगी तो वह बोला पहले मेरी बात का जवाब दो, बाद में सोना। इतनी बात सुनकर गंगाराम पटेल बोले- हां बताओ तुम्हारी ऐसी कौन सी अनोखी बात है। जिसका जवाब सुनने के लिए तुम इतने बेचैन हो रहे हो।
तब बुलाखी ने उड़न खटोले से उस महापुरुष के उतरने के बाद सारा देखा हुआ हाल बयान कर दिया। बुलाखी की इस प्रकार की बात सुनकर गंगाराम पटेल कहने लगे कि आज वास्तव में तुमने एक विचित्र घटना देखी है इसे जो सुनेगा आश्चर्य ही करेगा। मैं तुम्हें अब उस तेजस्वी पुरुष के विषय में सब कुछ बताता हूं। तुम ध्यान लगाकर सुनो। जिस तरह फौज में नक्कारा विशेष महत्व रखता है, उसी प्रकार किस्सा कहानी में हूंकारा का महत्व है। जब तक तुम हुंकारा देते जाओगे मैं बात कहता चलूंगा और हूंकारा बंद होते ही मैं बात करना बंद कर दूंगा। बुलाकी ने हूँकारा भरना स्वीकार कर लिया। गंगाराम पटेल वह कहानी आरंभ करते हुए बोले- हे बुलाखी! तुम्हें अब मैं जो कुछ बताता हूं वह सुनो,
एक राजपूत था। बचपन से ही उसकी तंदुरुस्ती बड़ी अच्छी थी। मलाई करने कराने का उसे बड़ा चाव था। व्यायाम करता था और कुश्ती भी लड़ता था। उसने बड़े-बड़े पहलवानों की कुश्ती में पछाड़ा था। वह ब्याह लायक हुआ तो राजा ने उसका विवाह करने का विचार किया। जब राजकुमार को यह बात मालूम हुई तो उसने कहा-
दोहा
ब्याह रचाने का पिता, छोड़े आप विचार।
ब्रह्मचर्य पालन करूं, ली मैंने चितधार।।
इस पर राजा ने राजकुमार से कहा-ब्याह रचाने का पिता, छोड़े आप विचार।
ब्रह्मचर्य पालन करूं, ली मैंने चितधार।।
दोहा
बिन ब्याह के सुत मेरे चले न वंश अगार।
ब्याह रचा ओहे कुमार बना रहे परिवार
राजा बोला- हे पुत्र! तुम मेरे इकलौते पुत्र हो। अगर ब्याह नहीं करोगे तो हमारा वंश डूब जाएगा। इस प्रकार राजा ने समझा-बुझाकर उसका विवाह कर दिया। थोड़े दिन बाद राजा का स्वर्गवास हो गया और राजकुमार को राजगद्दी मिली। पुत्र होने के बाद उसका मन राजकाज में नहीं लगता था। वह सांसारिक जीवन से मुक्त होकर भगवान का भजन कर मुक्त पद प्राप्त करना चाहता था। उसके बाद उसने अपनी पत्नी और मंत्रियों को राजकाज सौंप दिया। अपने नगर निवासियों तथा पारिवारिक जनों को समझा बुझा और धीरज बंधा कर राज्य छोड़कर चला गया। बिन ब्याह के सुत मेरे चले न वंश अगार।
ब्याह रचा ओहे कुमार बना रहे परिवार
उसने इधर-उधर तीर्थों के दर्शन किए और पवित्र सरिता सरोवरों में स्नान किया। एक अच्छे महात्मा को गुरु बनाकर उनसे दीक्षा ली। वह संत समाज में विचरण करने लगा। वह एक बड़ा सदाचारी व्यक्ति था। उसकी आत्मा पवित्र थी। उसने कभी किसी पर स्त्री को बुरी नजर से भी नहीं देखा था। जब वह इस प्रकार देश के सभी तीर्थ कर चुका और उसकी विचरण करने की इच्छा समाप्त हो गई। तो वह एक पर्वत पर आया और सुंदर तालाब एकांत में देखा तो वहां रहकर उसने तपस्या करने का विचार किया। जब उसे भूख लगती थी तो फल फूल लाकर खा लेता था। और सरोवर से पानी पी लेता था। भगवान के भजन में तल्लीन रहने से उसके मुख पर तेज चमकने लगा था। उसने कभी किसी प्राणी को कष्ट नहीं पहुंचाया किंतु इतना सब कुछ करने पर भी उसने कभी साधु महात्मा दीन अथवा अतिथि को खाने के लिए नहीं पूछा। खुद अपनी भूख का ध्यान रखा और परलोक सुधारने के उपाय में लगा रहता। कोई साधु संत अगर उसके आश्रम पर आज ही जाता था तो वह उससे खाने को नहीं पूछता था। और एकांत में बैठकर अकेला अपना पेट भर लेता था।
दीर्घकाल तक जीवित रहने के पश्चात उसकी आयु जब पूरी हुई तो धर्मराज के दूत उसे अपने दिव्य रथ में बैठकर दिव्य लोक में ले गए। अपने कर्मों के फल से उसे उत्तम लोग की प्राप्ति हुई। सुंदर स्त्री तथा वाहन वैभव सब उसको वहां प्राप्त था। परंतु वहां उसे खाने को कुछ भी नहीं मिला करता। कुछ समय तो उसने भूखे रहकर बिताया। एक दिन ब्रह्मा जी से जाकर उसने निवेदन किया कि मुझे उत्तम लोग धन वाहन वैभव तथा इस्त्री आज सर्व सुख तो प्राप्त हैं। परंतु मेरे खाने के लिए कुछ भी नहीं है इसका क्या कारण है? उसकी यह बात सुनकर ब्रह्मा जी समझा कर कहने लगे कि तुमने अपने अच्छे कर्मों के पुण्य से यह उत्तम लोग तो प्राप्त कर लिया, परंतु कभी भी किसी ब्राह्मण साधु-संत तथा भूखे को भोजन नहीं कराया। सदा अपना पेट पालने में लगे रहे हो इसी कारण तुम्हें यहां भोजन नहीं मिल पा रहा है। भोजन उन्हीं को प्राप्त होता है। जो भोजन का भी दान करते हैं। ब्रह्मा जी की ऐसी बात सुनकर वह कहने लगा कि आप मुझे ऐसा उपाय बताएं। जिससे मैं भूख से ना मरूँ। तब ब्रह्माजी कहने लगे कि तुम जिस सरोवर पर रहते थे। जहां तुम ने तप किया था। तुम वही रात में जाया करो और वहां तुम्हारी अपनी लाश ही तुम्हें रखी मिला करेगी तुम उसी में से मांस काटकर खाओ और तालाब का पानी पीकर अपनी भूख प्यास मिटाओ।
हे बुलाखी नाई! यह वही पुरुष तुमने आज मुर्दे का मांस खाते हुए देखा है। जिसका हाल मैंने सुनाया है देखो रात अधिक हो गई है। अब सो जाओ सवेरे जल्दी उठकर आगे चलेंगे।