हमारी सामाजिक समस्याएं निबंध | Essay on Our Social Problems in Hindi
हमारी सामाजिक समस्याएं निबंध | Essay on Our Social Problems in Hindi
इस निबंध के अन्य शीर्षक-
- आधुनिक जीवन की समस्याएं
- आधुनिक युग की ज्वलन्त समस्याएं
- समाज सुधार
निबंध की रुपरेखा-
राजा स्वार्थ की बन्दनवारें,
जब तक सुख वीणा भायेगी।
तब तक निर्धनता भारत से,
नहीं टलाये टल पाएगी।
नारी का उत्थान न तब तक,
शिक्षा अपना रंग लाएगी।
सुख-दुःख मिलकर बाटेंगे जब,
प्रीति किरण तब मुस्कायेगी।
जब तक सुख वीणा भायेगी।
तब तक निर्धनता भारत से,
नहीं टलाये टल पाएगी।
नारी का उत्थान न तब तक,
शिक्षा अपना रंग लाएगी।
सुख-दुःख मिलकर बाटेंगे जब,
प्रीति किरण तब मुस्कायेगी।
प्रस्तावना
आज भारत स्वतंत्र है। किंतु दीर्घकाल की पराधीनता ने इसे पंगु और लूला बना दिया है। ठीक है कि हम आज अपने भाग्य विधाता स्वयं हैं। किंतु हमारा सामाजिक पतन इतना हो गया है, कि हमें अपने पैरों के बल खड़ा होना कठिन हो रहा है। आर्थिक, धार्मिक तथा राजनैतिक आदि समस्याएं हमें उलझाए जा रही हैं। हमारा सामाजिक जीवन अस्त-व्यस्त और दुखमय होता जा रहा है। जब तक सामाजिक समस्याओं को सुलझाया नहीं जाएगा तब तक सामाजिक विकास हो पाना संभव नहीं है। और सामाजिक विकास के अभाव में अन्य समस्याओं का हल होना भी एक कठिन काम है।मुख्य सामाजिक समस्याएं
अपने देश की सामाजिक समस्याओं को समझना और उन पर विचार करना समाज के प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। हमारे देश में अनेक सामाजिक समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं। जिनमें से मुख्य-मुख्य पर हम दृष्टिपात करने का प्रयत्न करेंगे। मुख्य सामाजिक समस्याएं- अशिक्षा, अस्वास्थ्य, निर्धनता, अस्पृश्यता, बेकारी तथा नारी के उत्थान की हैं। आओ हम तनिक इन पर विचार तो करें।
(क) अशिक्षा― हमारे देश की अधिकांश जनता अशिक्षित है। एक समय था कि जब ऋषियों की इस भूमि में ज्ञान का सूर्य चमचमाता था। इसके प्रकाश में सारा संसार जीवन का मार्ग खोजता था। वेदो का प्रकाश इसी देश में हुआ था।
किंतु आज अशिक्षा की अंधेरी कोठरी में चारों तरफ घूमते हुई भारत की जनता अपने लक्ष्य रूपी दरवाजे को नहीं खोज पा रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि ज्ञान का सूर्य पूर्व में उदय होकर अब पश्चिम की ओर ढल गया है। हमें अपने इस देश की इस महती समस्या का शीघ्र समाधान करना होगा। शिक्षा के अभाव में हमारी जनता एवं देश का उद्धार होना कदापि संभव नहीं हैं। हर्ष की बात है कि स्वतंत्र भारत की सरकार इस और ठोस कदम उठा रही है।
(ख) अस्वास्थ्य― हमारे समाज की दूसरी महत्वपूर्ण समस्या अस्वास्थ्य की है। किसी संस्कृत के कवि ने ठीक कहा- "शरीरमाद्यमखलुधर्म-साधनम"; अतः स्पष्ट है कि शरीर की रक्षा मानव का आदि-परम धर्म है। रोगों से जर्जर व्यक्ति जीवन का कुछ भी आनंद नहीं ले पाता है। इस समस्या के मूल में एक ओर आर्थिक कठिनाई है, और दूसरी ओर नैतिक पतन। धन के अभाव में जनता को वे खाद्य नहीं मिल पाते जो शरीर को पुष्ट तथा बलवान बनाते हैं। इसके अतिरिक्त हमारा इतना नैतिक पतन हो गया है, कि हम सदाचार को बिल्कुल भूल ही बैठे हैं। हमारी मानसिक भावनाएं विकृत हो गई हैं। इनसे मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार के रोग बढ़ते जा रहे हैं। अतः समस्या को हल करने के लिए आर्थिक और मानसिक विकास करना आवश्यक है। पर यह समय साध्य कार्य है। रोगों को एकदम निर्मूल कर पाना संभव नहीं है। अतः तत्काल रोगों की रोकथाम करना आवश्यक है। हमारे देश में चिकित्सा के साधनो की भारी कमी है। बहुत से मनुष्य ऐसे हैं जो कि अपनी निर्धनता के कारण रोगों की उचित चिकित्सा तक नहीं करा पाते हैं, और इस संसार से चल बसते हैं। हमारे गांव में अस्पताल तथा औषधालय खुलने आवश्यक हैं। सरकार इस दिशा में काफी सतर्क है। जनता को भी इस कार्य में सरकार को सहयोग देना चाहिए। छुआछूत की बीमारियों के लिए और तेज कदम उठाए जाने चाहिए।
(ग) निर्धनता― निर्धनता की समस्या हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या है। इस एक समस्या के सुलझ जाने से यहां की कई समस्याएं आप से आप सुलझ सकती हैं। विशेषतः भारतीय कृषक समाज में इतनी निर्धनता है, कि अनेक लोगों को भर पेट भोजन नहीं मिलता। शरीर ढांपने को कपड़ा नहीं मिलता और वस्तुओं का तो कहना ही क्या? निर्धनता के कारण ही रोग तथा चोरी आदि दोष समाज में जोर पकड़ते जा रहे हैं। यह ऐसी भयंकर समस्या है, जिससे छुटकारा पाना टेढ़ी खीर हो रहा है। उद्योग तथा कृषि आदि के विकास के बिना आर्थिक विकास संभव नहीं है। और धन के अभाव में इन व्यवसाय के विकास के लिए प्रयत्न करना कोरी कल्पना है। जनता तथा सरकार दोनों के परस्पर सहयोग से ही इस समस्या को सुलझाया जा सकता है। कृषि उपयोगी उपकरणों, खाद-बीज एवं कीटनाशकों के होने पर भी किसान अपनी पुरानी जगह पर ही कदम ताल कर रहा है। उसे अपने उत्पादन का सही मूल्य नहीं मिल पाता है। और वह दीन दरिद्रता के कीचड़ में ही लेटा हुआ दिखाई देता है।
(घ) अस्पृश्यता― अस्पृश्यता की समस्या भी कुछ कम मत नहीं रखती है। देश के लाखों लोगों को भूत-प्रेतों के समान अस्पृश्य तथा हेय समझा जाता है। राष्ट्रपिता बापू ने छुआछूत को समाप्त करने के लिए भरसक प्रयत्न किया था। यद्यपि यह समस्या कुछ सीमा तक हल हो गई है। परंतु अभी भी इस दिशा में बहुत आगे बढ़ने की आवश्यकता है। अभी बहुत से लोगों के मन में छुआछूत की भावना जीवित है। हमें जनता के विचार बदलने होंगे तथा उनके मन से इन दूषित भावों को दूर करना होगा। यह हमारे समाज का कलंक है। इसे जल्दी से जल्दी दूर कर दिया जाना चाहिए।
(ङ) कृषि― हमारा देश कृषि प्रधान देश है। किंतु खेद इस बात का है कि कृषि प्रधान देश होने पर भी कृषि का पूर्ण विकास यहां नहीं हो पाया है। हमें दूसरे देशों से अन्न मांगना पड़ता है। छोटे किसानों की दशा अत्यंत सोचनीय है। उनके सामने बीज-खाद तथा ऋण आदि की जटिल समस्याएं हैं। सिंचाई के साधन तथा आधुनिक वैज्ञानिक यंत्र उन्हें सुलभ नहीं। भारत सरकार ने अब इस ओर पर्याप्त ध्यान दिया है। सिंचाई, बीज तथा वैज्ञानिक औजारों की सुविधाएं सरकार ने सुलभ कराई हैं। स्थान-स्थान पर कृषि के स्कूल खोलकर किसानों को कृषि की शिक्षा देने की जहां तहां व्यवस्था की गई है, तथा की जा रही है।
(च) बेकारी― बेकारी हमारे समाज का ऐसा रोग है। जो अंदर ही अंदर समाज को खोखला बना रहा है। साधारण लोगों का तो कहना ही क्या? कितने ही उच्च शिक्षित मनुष्य भी बेकारी से पीड़ित हैं। कितने ही तो पीड़ित होकर आत्महत्या जैसे घृणित कार्य करने तक को तैयार हो जाते हैं। कुटीर उद्योगों का विकास इस समस्या को हल करने में काफी सहायता कर सकता है।