भारतीय किसान पर निबंध | Essay on Indian Farmer in Hindi
भारतीय किसान पर निबंध | Essay on Indian Farmer in Hindi
इस निबंध के अन्य शीर्षक-
- आज के भारतीय कृषक की समस्याएं
- आज का किसान समस्याएं और समाधान
- ग्रामीण व्यवस्था और कृषक जीवन
- भारतीय किसान : समस्या और समाधान
- भारतीय किसान और उसकी समस्याएं
रुपरेखा-
जिसके खेतों से उगता है,
अन्न जीवनाधार।
जिसके त्याग तपस्या से हो,
जनगण का उद्धार।।
जिसके श्रम से पलते हैं सब,
बालक वृद्ध जवान।
सबका वंदनीय है जग में,
निर्धन-नग्न-किसान।।
अन्न जीवनाधार।
जिसके त्याग तपस्या से हो,
जनगण का उद्धार।।
जिसके श्रम से पलते हैं सब,
बालक वृद्ध जवान।
सबका वंदनीय है जग में,
निर्धन-नग्न-किसान।।
भारत में कृषि का महत्व
खेती भारत का मुख्य उद्योग है। यहां की 80 प्रतिशत जनता खेती करती है। यह किसानों का देश है। यहां सभी उद्योग खेती पर ही निर्भर हैं। खेती और किसान की दशा ही भारत की दशा है। पर यह खेद की बात है, कि भारत में किसान की जैसी सोचनीय दशा है, वैसे किसी और की नहीं। अंग्रेजी राज्य में किसानों और खेती के बारे में कभी सोचा ही नहीं गया। सोचने की उन्हें आवश्यकता भी नहीं थी। 15 अगस्त सन 1947 को परतंत्रता के काले बादलों को जीता हुआ स्वतंत्रता का सूर्य उदित हुआ उस की किरणों के प्रकाश में भारत के नेताओं ने भारत के किसानों को देखा और तब से निरंतर भारत की सरकार किसान और खेत की उन्नति के लिए प्रयत्न शील है।कृषक की वर्तमान स्थिति
पर हुआ क्या? एक लंबा समय बीत जाने पर आज भी किसान की दशा संतोषजनक नहीं है। उसे भर पेट भोजन और शरीर ढांपने को पर्याप्त वस्त्र भी नहीं मिलता है। यह तो नहीं कहा जा सकता कि उसकी दशा में कुछ अंतर नहीं हुआ। किंतु सुधार जितना होना चाहिए था, हुआ नहीं। सबका अन्नदाता किसान आज ही अन्न को तरसता है। वह किसान जिसके लिए कवि ने कहा है-
कठिन जेठ की दोपहरी में एकचित्त हो मग्न।
कृषक-तपस्वी तप करता है श्रम से स्वेदित तन।।
कृषक-तपस्वी तप करता है श्रम से स्वेदित तन।।
जब कोई अपने दुधमुंहे बच्चे को आधा पेट खिलाकर और अपनी नवोढ़ा प्रियतमा को चिथड़ों में लिपटी देख कर भी सांस लेता रहे, तो क्या यह जीवन है? स्वतंत्र भारत के अन्नदाता कि यह दशा देख कर भला किसका हृदय टूक टूक ना हो जाएगा।
कृषक की कठिनाइयो एवं सुधार के उपाय
पर दोष किसका है? स्वयं किसान अपनी दशा सुधारना नहीं चाहता, यह कहा नहीं जा सकता। अपनी उन्नति भला कौन ना चाहेगा? सरकार लाखों रुपए प्रति वर्ष खेती के विकास पर लगाती है। करोड़ों रुपयों की योजनाएं खेत और किसान के लिए चल रही है। फिर वही प्रश्न है कि दोषी कौन है? कौन सी बाधा है? जो किसान का रास्ता रोकती है, और उसे तेजी से आगे नहीं बढ़ने देती। यदि विचार कर देखें तो कठिनाइयां साफ दिखाई पड़ती हैं। किसान अविद्या के अंधकार में है। अभी तक भी हमारे देश के अधिकतर किसान अशिक्षित हैं। किसानो के जो बच्चे पढ़ भी गए हैं या पढ़ रहे हैं। वे खेती से दूर भागते हैं, और नौकरी खोजते हैं। वह पढ़ लिखकर खेती करना एक अपमान की बात समझते हैं।
यह भावना देश के लिए बहुत ही घातक है। इसका परिणाम यह है कि किसान अशिक्षित है इसीलिए वह खेती के नए तरीकों और साधनों से जानकार नहीं हो पाता है। सरकार किसानों को बहुत सी सुविधाएं देती है, पर किसान को जानकारी ना होने के कारण उनसे लाभ नहीं उठा पाता है। किसान की दूसरी कठिनाई उसकी आर्थिक स्थिति से संबंध रखती है। अब भी किसान को अच्छी ब्याज की दर तथा आसान किस्तों पर ऋण नहीं मिल पाता है। सरकार की ओर से सहकारी बैंक की स्थापना करके उसकी इस कठिनाई को दूर करने का प्रयत्न हो रहा है। पर एक तो यह बैंक अभी थोड़े हैं, और फिर अशिक्षित होने के कारण किसान इनसे पूरा लाभ नहीं उठा पाते हैं। कुछ स्वार्थी कर्मचारियों की धांधलेबाज़ी किसानों को लाभ से वंचित रहने को विवश करती है। सिचाई के साधनो के विकास पर सरकार रुपए पानी की तरह बहा रही है। परंतु अब भी बहुत से किसान ऐसे हैं, जो सूखे से पीड़ित हैं। अतिवृष्टि रोकथाम का भी अभी तक कोई उपाय नहीं हो पाया है। अच्छी खाद और अच्छे बीज के अभाव से भी किसान की परेशानी बढ़ी हुई है। इसके अतिरिक्त किसान के सामने एक यह भी कठिनाई है कि सरकार की दी हुई सुविधाओं से उसे जितना लाभ हो रहा है। उतना ही टैक्स का उस पर भार बढ़ता जा रहा है।
यह ही सब कठिनाइयां हैं। जिनके कारण किसान और खेती का विकास नहीं हो पा रहा है। इसके अतिरिक्त ऋण, खाद तथा बीज आदि की व्यवस्था में भी सुधार की आवश्यकता है। इस प्रकार के कर्मचारियों की नियुक्ति करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। कि नियुक्त होने वाले व्यक्ति को किसान और गांव से वास्तविक स्नेह हो। इसके अतिरिक्त ऋण तथा खाद तथा बीज आदि की व्यवस्था में आवश्यक सुधार होने चाहिए। गांव में बिजली, रोशनी तथा यातायात के साधनो पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
उपसंहार
सारांश यहां है कि किसान का जीवन कटकाकीर्ण होता है। अशिक्षा के कारण आज भी भारतीय किसान का शोषण जारी है। पुलिस, प्रधान, पटवारी, पतरौल आदि जोक की भाँति इस का रक्त चूस रहे हैं। किसान के परिश्रम के फल को बिचौलिये और दलाल खा रहे हैं। उसका जीवन योगीवत, त्याग, तपस्या एवं सहिष्णुता की त्रिवेणी है।
"कृषक अन्नदाता होकर भी, सहता गल गल अत्याचार।
परसेवा-उपकार-त्यागमय-सहिष्णुता इसका संसार।।"
परसेवा-उपकार-त्यागमय-सहिष्णुता इसका संसार।।"