श्रम का महत्त्व पर निबंध – Essay On Importance Of Labor In Hindi
श्रम का महत्त्व पर निबंध – Essay On Importance Of Labor In Hindi
इस निबंध के अन्य शीर्षक ―
- नर हो न निराश करो मन को
- दैव दैव आलसी पुकारा
- करु बहियाँ बल आपनी
- कर्म प्रधान विश्व करि राखा।
रूपरेखा―
बैठ भाग्य की बाट जोहना, यह तो कोरा भ्रम है।
अपना भाग्यविधाता सम्बल, हर दम अपना श्रम है।।
मानवता का मान इसी में, जीवन सरस निहित है।
निरालम्ब वह मनुज, कि जो, नीरस है श्रम विरहित है।।
अपना भाग्यविधाता सम्बल, हर दम अपना श्रम है।।
मानवता का मान इसी में, जीवन सरस निहित है।
निरालम्ब वह मनुज, कि जो, नीरस है श्रम विरहित है।।
भूमिका
मनुष्य मात्र का उद्देश्य सुख की प्राप्ति है। मनुष्य से लेकर चींटी और हाथी तक प्रत्येक जीव सुख चाहता है। एवं दुख से छुटकारा पाने का इच्छुक है। सुख का मूल कारण ज्ञान है, और ज्ञान की प्राप्ति बिना श्रम के नहीं हो सकती। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सुख का साधन श्रम हैं। बिना श्रम के मनुष्य कभी भी सुखी नहीं हो सकता। वास्तविकता तो यह है कि बिना श्रम के कोई भी काम हो ही नहीं सकता। श्रम जीवन की कुंजी है।
श्रमजीवी यश पाता है, स्वास्थ्य, शांतिधन, शौर्य-आनंद।
स्वावलंबन भरी साधुता, पद-वैभव, श्रम के आनंद।।
स्वावलंबन भरी साधुता, पद-वैभव, श्रम के आनंद।।
श्रम और भाग्य
बहुत से लोगों में एक ऐसी भावना है कि श्रम के महत्व को ना समझकर वे निकम्मे हो जाते हैं। उनका कहना है कि मनुष्य के भाग्य में जो कुछ होना है, वही होता है। चाहे वह कितना भी परिश्रम क्यों न कर लें। भाग्य के विपरीत वह कुछ भी नहीं कर सकता। परंतु यह उसका निरा भ्रम है। वास्तव में श्रम का ही दूसरा नाम भाग्य है। श्रम के बिना भाग्य का कोई अस्तित्व ही नहीं है। मैं अपने भाग्य का स्वयं निर्माता हूं। मेरा श्रम ही मेरे भाग्य का निर्माण करता है। अपने भाग्य को अच्छा, बुरा बनाना मनुष्य के अपने ही हाथ में हैं। संस्कृत के किसी कविता यह कथन कितना यथार्थ है―
उद्योगिनम पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी:,
दैवेन देयमिति कापुरुषः वदन्ति।
दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्तया,
यत्ने कृते यदि न सिध्यति कोत्र दोषः।।
दैवेन देयमिति कापुरुषः वदन्ति।
दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्तया,
यत्ने कृते यदि न सिध्यति कोत्र दोषः।।
उद्योगशील वीर पुरुष को लक्ष्मी प्राप्त हो जाती है। भाग्य देता है ऐसा तो कायर लोग कहा करते हैं। अतः भाग्य का भरोसा छोड़कर अपनी पूरी शक्ति से काम करो। यदि यत्न करने पर भी सफलता नहीं मिलती तो समझो कि तुम्हारे यत्न में कमी है, और सोचो कि तुम्हारे प्रयत्न में क्या दोष रहा है? आलसी लोग ही बैठकर भाग्य को कोसा करते हैं।
"दैव दैव आलसी पुकारा"
जीवन में श्रम की आवश्यकता
श्रम ही मानव की सफलता की कुंजी है। यही मानव (व्यक्ति) का आधार है। किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम की आवश्यकता होती है। श्रम के बिना सफलता केवल स्वप्न है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि परिश्रम करने पर भी सफलता नहीं मिलती। ऐसे अवसर पर लोग भाग्य को कोसा करते हैं। परंतु उन्हें सोचना चाहिए कि सफलता का कारण उनकी श्रम में कोई कमी है। उन्हें विचार करना चाहिए उनके श्रम ने क्या त्रुटि रह गई है? यदि हम विचारपूर्वक अपने श्रम की त्रुटि को दूर कर दें, तो सफलता निश्चित है। वास्तव में मनुष्य भाग्य के भरोसे पर हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहना चाहता है। श्रम के बिना आप से आप कोई काम हो ही नहीं सकता। यदि रोगी भाग्य के भरोसे बैठा रहे, रोग के नाश के लिए भाग दौड़ न करें। तो दुष्परिणाम निश्चित है। बिना श्रम के हम जीवन में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते हैं। यहां तक कि भोजन भी बिना श्रम के पेट में नहीं पहुंचता। किसी कवि ने ठीक ही कहा है―
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।
अर्थात उद्यम(श्रम) से ही कार्य सिद्ध होते हैं। केवल मनोरथ करने से भाग्य के बल पर नहीं। सोए हुए शेर के मुख में हिरण स्वयं नहीं प्रवेश कर जाएगा। वास्तव में जीवन श्रम पर आधारित है। श्रम में ही जीवन का अस्तित्व है।
श्रम से असंभव भी संभव
श्रम के बल पर ही मनुष्य असंभव को संभव बना देता है। सावित्री ने अपने श्रम से अपने पति को यमराज से छुड़ा लिया था। श्रम के बल पर ही मनुष्य ने आज उन महान उद्योगों को जन्म दिया है। जिन को देखकर आश्चर्य होता है। यह मनुष्य के श्रम का ही परिणाम है, कि वह मनुष्य आकाश में उड़ता है। और समुद्र पर चलता है। जहां पहुंचने में पहले महीनों लगते थे, वहां अब वह कुछ घंटो में पहुंच जाता है। रेडियो तार, बिना तार का तार, बिजली आदि का आविष्कार मनुष्य के श्रम के परिणाम हैं। श्रम के बल पर ही मनुष्य ने आज पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु आदि प्राकर्तिक तत्वों पर भी अपना अधिकार कर लिया है। पूज्य महात्मा गांधी तथा अन्य नेताओं के श्रम के बल पर ही आज हमारा देश स्वतंत्र है। श्रम की इस अद्भुत शक्ति को देखकर ही नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा था कि "संसार में असंभव कोई काम नहीं असंभव शब्द को तो केवल मूर्ख के शब्दकोश में ही ढूंढा जा सकता है।"उपसंहार
आधुनिक युग विज्ञान का युग है। अब बात को तर्क की कसौटी पर कसा जा सकता है। भाग्य जैसी काल्पनिक वस्तु में अब जनता का विश्वास घटता जा रहा है। वास्तव ने भाग्य, श्रम से अधिक कुछ भी नहीं। श्रम का ही दूसरा नाम भाग्य है। जीवन में श्रम की महती आवश्यकता है। बिना श्रम के मानव जाति का कल्याण नहीं, दुखों से त्राण नहीं और समाज में उसका कहीं भी सम्मान नहीं। हमें सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अपने भाग्य विधाता हम स्वयं हैं अतः कहा गया है कि ―
श्रम एव परोयज्ञ: , श्रम एव परन्तपः।
नास्ति किंचिद श्रमात असाध्यम, तेन श्रम परोभव।।
नास्ति किंचिद श्रमात असाध्यम, तेन श्रम परोभव।।
श्रम यज्ञ से बढ़कर है। श्रम ही परमतप है। श्रम से कुछ भी असाध्य नहीं है। अतः श्रमवान बनो।