भारतीय संस्कृति पर निबंध हिन्दी में - Bhartiya Sanskriti Par Nibandh
भारतीय संस्कृति पर निबंध हिन्दी में - Bhartiya Sanskriti Par Nibandh
इस निबंध के अन्य शीर्षक-
- भारतीय संस्कृति
- भारतीय संस्कृति की विशेषताएं
- कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
रूपरेखा-
प्रस्तावना
संस्कृति क्या है? इस विषय में ना कोई सीमा निश्चित है ना इसकी कोई व्यवस्थित परिभाषा है। वास्तव में संस्कृति उन सब गुणों का समूह है जिन्हें मनुष्य शिक्षा तथा प्रयत्नों द्वारा प्राप्त करता है। जिनके आधार पर मनुष्य का व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन विकसित होता है। संस्कृति का संबंध मनुष्य की बुद्धि तथा हृदय दोनों से है। संस्कृति का विकास जातीय चेतना में होता है। इसी चेतना ने जीवन में वे सब चीजें आती हैं जिनका संबंध काव्य, धर्म और दर्शन से होता होता है। संस्कृति का विकास मुख्य रुप से कला एवं चिंतन की प्रतीकमूलक कृतियों में होता है। किंतु आंशिक रूप में विवाह, शासन, शिक्षा आदि सामाजिक संस्थायें भी उसके विकास में सहायक होती हैं।
भारतीय संस्कृति का मूल
जब हम भारतीय संस्कृति की चर्चा करते हैं। तो हमारा तात्पर्य उस संस्कृति से होता है, जिसका जन्म भारत में हुआ था जो युगों से भारत के विभिन्न भागों में पनपती तथा विकसित होती चली आ रही है। दूसरे शब्दों में इसे हम हिंदू संस्कृति भी कह सकते हैं। इस देश में धर्म और संस्कृति का गहरा संबंध रहा है। इसलिए धर्म के शिक्षकों एवं आचार्यों ने भारतीय संस्कृति और उसके विभिन्न रूपों को विशेष रूप से प्रभावित किया है। बौद्ध, जैन आदि अनेक संप्रदाय यहां चले परंतु इन सब संप्रदायों ने हिंदू संस्कृति की विशाल धारा में कोई कटाव ना करके उसे और अधिक पुष्ट तथा प्रवाहणशील ही बनाया है। शक, हूण, यवन, मुसलमान तथा ईसाई आदि विदेशी जातियां यहां आयीं। इनमें से कुछ ने तो यहां काफी समय तक शासन भी किया। बहुत सी जातियां इस देश में बस गई, और यही की होकर रहने लगी। किंतु हिंदू संस्कृति की यह धारा निरंतर अबाध गति से आगे बढ़ती रही है। वास्तव में यह स्रोत इतने गहरे हैं जिन्हें कोई दूसरी संस्कृति बाधित नहीं कर सकी। बाहर से आई संस्कृति या तो इसमें मिलकर इसी के रंग में मिल गई या वे इस संस्कृत से कुछ लेनदेन करके अपनी प्रथक सत्ता के रूप में इस देश की धरती पर बहने लगी। इस्लामी संस्कृति को इस के उदाहरण के रूप में रखा जा सकता है। वास्तव में हिंदू संस्कृति ही इस देश की व्यापक एवं प्रधान संस्कृति है जिसका मूल भारतीय मनीषियों तथा धर्म प्रवर्तकों की कृतियों तथा चिंतन धारा में निहित है।
भारतीय संस्कृति की विशेषताएं
भारती संस्कृति में मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं का व्यापक रुप मिलता है। संसार के किसी अन्य धर्म या जाति में जीवन की ऐसी विविधता या व्यापकता दिखाई नहीं पड़ती है। बौद्ध और जैन आदि अनेक संप्रदाय यहां पैदा हुए किंतु उन के मूल्यवान विचारों और शिक्षा को आत्मसात कर इस संस्कृति ने उदारता का परिचय दिया। विविधता और समन्वय की भावना की प्रधानता इस संस्कृति में प्रारंभ से रही है। हिंदू संस्कृति का जैसा सर्वांगीण विकास हुआ वैसा अन्य संस्कृतियों का नहीं हो सका। यह संस्कृति उत्तर भारत में विकसित होकर धीरे-धीरे सारे देश में फैली। भिन्न-भिन्न स्वभाव के लोगों में इसका विस्तार हुआ। भारतीय संस्कृति का रूप अत्यंत विचित्रतापूर्ण, विविधात्मक तथा जटिल है। यहां के आदर्श स्त्री पुरुषों की कल्पनाओं में जीवन की अनेक रुपताओं में, अनेक पंथो और संप्रदायों की उत्पत्ति तथा प्रचार में इस संस्कृति की विविधता तथा व्यापकता के प्रमाण मौजूद हैं।
धर्म की प्रधानता
भारतीय संस्कृति का मूल आधार धर्म है। धर्म भारतीय जीवन दर्शन का प्राण है। इसलिए इस संस्कृति में आध्यात्मिक भावों की अधिकता है। हमारे यहां मन और शरीर, दोनों की शुद्धि पर विशेष बल दिया गया है। मनुष्य का बाहर और भीतर जब तक दोनों शुद्ध नहीं होते, तब तक वह गलत को सही मानता है। भारतीय संस्कृति की एक और विशेषता अपने पूर्वजों की परंपरा को आगे बढ़ाना है। इस संस्कृति के अनुसार मनुष्य को देव ऋण, ऋषि ऋण तथा पितृ ऋण को चुकाए बिना साधना का अधिकारी नहीं समझा जाता है।
समानता की भावना
भारतीय संस्कृति की एक महती विशेषता है- समानता की भावना। 'आत्मवत सर्वभूतेषु'- संसार के प्राणीमात्र में अपनेपन का अनुभव करना इस संस्कृति का मुख्य सिद्धांत है। 'उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम' के सिद्धांत के आधार पर यह संस्कृति सारे विश्व को एकता के सूत्र में बांधती है, और 'ईश्वस्यमिदं सर्वम' के सिद्धांत के आधार पर संपूर्ण प्राणी जगत के प्रति सम्मान और उदारता की भावना जगाने का प्रयत्न करती है।
समन्वय की भावना
भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता उसकी समन्वय भावना है। इस संस्कृति की इस विशेषता ने ही इसे अजर अमर बना दिया है। शक, हुण आदि अनेक संस्कृतियां इस देश में आई परंतु वह सब इस में समा गई। सब को मिलाकर अनेकता में एकता उत्पन्न कर परस्पर के द्वंद्वों को दूर करने की यह भावना किसी दूसरी संस्कृति में नहीं मिलती है। भारतीय संस्कृति की इस विशेषता के कारण ही हजारों वर्ष तक विदेशी संस्कृति के शासन में रहकर भी इस संस्कृति की धारा कभी मंद या उथली नहीं हो पाई है। संसार में अनेक संस्कृतियां विकसित हुई और मिट गई। उनका नाम निशान भी आज बाकी नहीं। यूनान, मिस्त्र और रोम की संस्कृति जो कभी बहुत उन्नत थी। आज दिखाई नहीं पड़ती किंतु भारतीय संस्कृति आज भी अपनी पीयूष धारा से अनेक नरनारियों को सिक्त करती हुई उसी प्रकार प्रवाहसील है-
"यूनान मिस्र रोमाँ सब मिट गए जहाँ से।
अब तक मगर है बाकी नामो निशाँ हमारा।।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नही हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन, दौरे जहाँ हमारा।।"
उपसंहार
इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम तथा सर्वोन्नत संस्कृति है। इस संस्कृति ने सदैव संसार को कर्तव्य, संयम, प्रेम और त्याग का मार्ग दिखाया है। भारतीय संस्कृति व्यक्ति में उदारता की भावना जगाकर उसके व्यक्तित्व को निखारती है। महान कार्यों की ओर अग्रसर करती है और साथ ही समष्टिगत भावनाओं को जन्म देती है। 'जियो और जीने दो' इस संस्कृति का मुख्य संदेश है।