मेरा प्रिय कवि पर निबंध | Essay on My Favorite Poet in Hindi
Mera Priya Kavi in Hindi- गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी के लोकप्रिय कवियों मे से एक हैं। इसलिए मैंने यहाँ पर मेरा प्रिय कवि निबंध मे तुलसीदास जी के बारे मे है।
इस निबंध के अन्य शीर्षक―
इस निबंध के अन्य शीर्षक―
- तुलसी का समन्वयवाद
- महाकवि तुलसी और उनका साहित्य
- कविता लसी पा तुलसी की कला
- मेरा प्रिय साहित्यकार
- मेरा प्रिय लेखक
रुपरेखा―
भारतीय संस्कृति के पोषक, राम भक्ति का मूलाधार।
'रामचरितमानस' अनुपम कृति, हिंदी का नव-रस आगार।।
आज विश्व के निखिल रसिकजन, कर 'मानस' में स्नान विलास।
मुक्त कण्ठ से कह उठते है, जय तुलसी, जय तुलसीदास।।
'रामचरितमानस' अनुपम कृति, हिंदी का नव-रस आगार।।
आज विश्व के निखिल रसिकजन, कर 'मानस' में स्नान विलास।
मुक्त कण्ठ से कह उठते है, जय तुलसी, जय तुलसीदास।।
प्रस्तावना
गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के उन चमकते हुए नक्षत्रों में से एक हैं। जिनके प्रकाश से हिंदी जगत अनंत काल तक प्रकाशित रहेगा। तुलसी हिंदी के सर्वश्रेष्ठ महाकवि है। वह उच्च कोटि के भक्त, समाज सुधारक और महान कवि हैं। कवि के रूप में जब हम देखते हैं तो उनकी तुलना में सूर के अलावा कोई दूसरा हिंदी कवि नहीं ठहरता है। यदि काव्यगत विशेषताओं के आधार पर तुलना की जाए तो तुलसी सूर से भी कहीं आगे हैं। कला पक्ष और भाव पक्ष दोनों ही दृष्टियों से तुलसीदास अनुपम और अद्वितीय हैं।तुलसी के काव्य में कलापक्ष
कलापक्ष की दृष्टि से तुलसी के काव्य को देखने पर चकित रह जाना पड़ता है। उन्होंने उन सभी शैलियों में रचना की है। जो उस समय तक हिंदी में प्रचलित थी। उन्होंने प्रबंध और मुक्तक, दोनों प्रकार के काव्यों की सफल रचना की है। ब्रज और अवधी दोनो भाषाओं पर उनका पूर्ण अधिकार था। दोनों में ही उन्होंने उत्तम रचनाएं की। छंद शास्त्र के पारंगत थे। 50 से अधिक छन्दों में उन्होंने काव्य रचनाएं की। अलंकारों के प्रयोग में भी वह सिद्धहस्त थे। भाषा में तुलसी जैसी सरलता और स्पष्टता अन्यत्र दुर्लभ है। शब्द चमत्कार के पचड़े में वे कभी फंसे ही नहीं। रचना-चातुर्य का भद्दा प्रदर्शन उन्हें रुचा ही नहीं। उनकी वाक्य रचना ऐसी सुदृढ़ और व्यवस्थित है, कि उनका एक भी शब्द इधर से उधर हिलाना संभव नहीं है। भाषा का एक उदाहरण प्रस्तुत है―
"कंकण किंकिण नूपुर धुनि-सुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि।।"
कहत लखन सन राम हृदय गुनि।।"
तुलसी के काव्य में भावपक्ष
भावपक्ष की दृष्टि से यदि तुलसी के काव्य को देखें तब तो उनका स्थान और भी ऊंचा ठहरता है। यह ठीक है कि उनकी कविता का मुख्य विषय भक्ति और अध्यात्म ही रहा है। किंतु संपूर्ण मानव व्यवहारों के उन्होंने अति सुंदर चित्र खींचे हैं। जीवजगत और प्रकृति के जैसे स्वाभाविक और मार्मिक चित्रण उन्होंने खींचे, वैसे अंयत्र दुर्लभ हैं। उनके काव्य इस लोक और परलोक दोनों के साधक है। वह ह्रदय में पवित्र भावों का संचार करते हैं। साथ ही जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान भी करते हैं। उनके काव्य को पढ़कर जीवन की अनेक बाधाओं को झेलते हुए कर्मपथ पर आगे बढ़ने का उत्साह और प्रेरणा मिलती है। अलग-अलग संस्कारों और अलग-अलग स्वभावों के पात्रों का उन्होंने सजीव और साहित्यिक चित्रण किया है। विविधता तुलसी के काव्य में सर्वत्र पाई जाती है। उन्होंने नौ के नौ रसों का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है। एक ओर उन्होंने अनुराग के चित्र खींचे हैं, तो दूसरी ओर वियोग पक्ष को भी चित्रित किया है। उन्होंने क्रोध, ईर्ष्या, प्रेम, उत्साह तथा धैर्य आदि मानव हृदय के सभी भावों के सजीव और साकार चित्र उपस्थित किए हैं। तुलसी के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि उन्होंने अपने विस्तृत साहित्य में कहीं भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया है। तुलसी ने श्रंगार का ऐसा सुंदर वर्णन किया है। जिसे बिना किसी लज्जा के सबके सामने पढ़ा जा सकता है। ऐसा सुंदर वर्णन यदि कही है तो वह तुलसी के साहित्य में ही है―तुलसी का साहित्य
तुलसी ने एक विशाल साहित्य की रचना की है। 12 श्रेष्ठ काव्यग्रंथ देकर उन्होंने हिंदी साहित्य को अमर कर दिया है। इनमे से रामचरितमानस और विनय-पत्रिका तो अपना जोड़ ही नही रखते हैं। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि हिंदी को एक प्रौढ़ और साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए अकेले तुलसी व उनका साहित्य ही पर्याप्त है।तुलसी का लोकनायकत्व
महाकवि तुलसीदास यथार्थ लोकनायक हैं। लोकनायक उस व्यक्ति को कहते हैं। जिसकी दृष्टि काल-स्थान की संकुचित सीमा को तोड़ कर मानव मात्र तक जा पहुंची हो। तुलसी में यह विशेषता पूर्ण रुप से मौजूद है। वह अपने साहित्य के द्वारा सार्वभौम और सर्वकालिक हो गए हैं। उन्होंने कबीर और दादू के लोक विरोधी तत्वों को समझा और देखा। कि अशिक्षित और अज्ञानी लोग जनता को अंधकार में ढकेले जा रहे हैं यह देखकर उन से रहा नहीं गया और उनके मुख से यह शब्द निकल पड़े―
"साखी सबदी दोहरा, कहि कहनी उपखान।
भगति निरूपहिं भगत कलि, निंदहिं वेद पुरान।।"
भगति निरूपहिं भगत कलि, निंदहिं वेद पुरान।।"
दूसरी ओर उन्होंने योग मार्ग की एकपक्षता को देखा। योगमार्गी ईश्वर को घट के भीतर मानकर संकुचित कर देते हैं; अतः तुलसी ने सगुड भक्ति का मार्ग अपनाया और ईश्वर को भीतर बाहर सब जगह मानकर अपनी कला का प्रदर्शन किया। भक्ति में दुराव-छिपाव की भावना उन्हें पसंद नहीं थी। मन, वचन और कर्म की सरलता को वे भक्ति का लक्षण समझते थे। उन का विचार था―
"सूधे मन, सूधे वचन, सूधो सब करतूति।
तुलसी सीधी सकल विधि, रघुवर प्रेम प्रसूति।।"
तुलसी सीधी सकल विधि, रघुवर प्रेम प्रसूति।।"
इस प्रकार तुलसी में भक्ति को गिने-चुने विरले आदमियों के देखने सुनने की चीज न रखकर, उसे अन्न-जल की तरह सबके लिए सुलभ कर दिया। तुलसी की भक्ति की सबसे बडी विशेषता यह है कि― उनमें ना कर्म से विरोध है, ना धर्म से, वह तो योग, धर्म और ज्ञान की मिली जुली त्रिवेणी है। उसमें मानव जीवन के सभी पक्षों का समन्वय है अपनी समन्यवादी भावना से उन्होंने वैष्णवों और शैवों के बढ़ते हुए द्वेष को शांत किया। लोकधर्म तथा भक्ति को एकत्र किया तथा ज्ञान, कर्म और उपासना में एकता स्थापित की।
कृष्णभक्त कवियों में जिस लोकसंग्रह का अभाव था वह तुलसी के काव्य में साकार हो उठा। इस प्रकार तुलसी की वाणी भक्ति रस से भरी मंगलकारिणी गंगा होकर बही। तुलसी भक्त और कवि होने से पहले समाज सुधारक थे। अपनी सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य 'रामचरितमानस' के द्वारा उन्होंने समाज की अनेक कुरीतियों और दोषों को दूर करने का सफल प्रयास किया। धर्म और समाज की कैसी व्यवस्था होनी चाहिए, पिता-पुत्र, माता-पुत्र, भाई-भाई, गुरु-शिष्य, पति-पत्नी, स्वामी तथा सेवक आदि ने पारिवारिक संबंध कैसे होने चाहिए तथा राजा-प्रजा, ऊंच-नीच और ब्राह्मण-शूद्र आदि के सामाजिक संबंध कैसे होने चाहिए, आदि सभी प्रश्नों का समाधान तुलसी ने अपने इष्टदेव राम के चरित्र में किया है। उन्होंने सगुण के साथ निर्गुण का और गृहस्थ के साथ वैराग्य का सुंदर समन्वय कर, अपने को लोकनायक के पद पर प्रतिष्ठित कर आदरणीय बना दिया है।
उपसंहार
संक्षेप में इतना ही कहना पर्याप्त होगा, कि महाकवि तुलसीदास हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि, पहुंचे हुए भक्त और एक समाज सुधारक थे। उनमें वह सभी गुण विद्यमान थे, जिनके आधार पर उनके लोकनायक होने में किसी को मतभेद नहीं हो सकता है।इसे भी पढ़े–