महँगाई पर निबंध हिन्दी में -Inflation essay in Hindi
महँगाई पर निबंध (Inflation essay in Hindi)- विभिन्न परीक्षाओं मे विस्तृत उत्तरीय प्रश्न मे महंगाई पर निबंध (Mahngai Essay) लिखने के लिए कहा जाता है। क्यूंकी महँगाई आधुनिक समय की बहुत गंभीर समस्या है। इसलिए इस लेख के माध्यम से महँगाई : समस्या और समाधान पर निबंध आसानी से पढ़ सकते हैं। और परीक्षा मे बेहतर निबंध लिख सकते हैं।
प्रस्तावना- भारत में आर्थिक समस्याओं के अंतर्गत महंगाई की समस्या प्रमुख समस्या है। वस्तु के मूल्य में वृद्धि का क्रम इतना तीव्र है कि जब आप किसी वस्तु को दोबारा खरीदने जाते हैं तो वस्तु का मूल्य पहले से अधिक भरा हुआ होता है दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती इस महंगाई की मार का वास्तविक चित्र प्रसिद्ध हास्य कवि काका हाथरसी की निम्नलिखित पंक्तियों में हुआ है।
महँगाई पर निबंध हिन्दी में -Inflation essay in Hindi
बेलगाम महँगाई
महँगाई : समस्या और समाधान
मूल्य-वृद्धि : कारण, परिणाम और निदान
पाकिट में पीड़ा भरी कौन सुने फरियाद?
यह महंगाई देखकर वे दिन आते याद।।
वे दिन आते याद, जेब मे पैसे रखकर,
सौदा लाते थे बाजार से थैला भरकर।।
धक्का मारा युग ने मुद्रा की क्रेडिट ने,
थैले में रुपये हैं, सौदा है पाकिट में।।
महंगाई के कारण - वस्तु के मूल्य में वृद्धि अर्थात महंगाई के बहुत से कारण हैं। इन कारणों में अधिकांश कारण आर्थिक हैं तथा कुछ कारण ऐसे ही हैं जो सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था से संबंधित हैं। इन कारणों का संछिप्त विवरण निम्नवत है।
1. जनसंख्या में तीव्र वृद्धि- भारत में ही जनसंख्या विस्फोट ने वस्तु की कीमतों को बढ़ाने की दृष्टि से बहुत अधिक सहयोग दिया है। जितनी तेजी से जनसंख्या वृद्धि हो रही है उतनी तेजी से वस्तुओं का उत्पादन नहीं हो रहा है। इसका स्वाभाविक परिणाम यह हुआ है, कि अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में निरंतर वृद्धि हुई है।
2. कृषि उत्पादन व्यय में वृद्धि- हमारा देश कृषि प्रधान देश से यहां की अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। गत वर्षो से कृषि में प्रयुक्त होने वाले उपकरणों, उर्वरक आदि के मूल्य में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। परिणाम स्वरुप उत्पादित वस्तुओं के मूल्य में भी वृद्धि होती जा रही है। अधिकांश वस्तु के मूल्य प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से कृषि पदार्थों के मूल्य से सम्बद्ध होते हैं। इस कारण जब कृषि मूल्य में वृद्धि हो जाती है। तो देश में अधिकांशत: वस्तु के मूल्य अवश्यमेव प्रभावित होते हैं।
3. कृत्रिम रुप से वस्तुओं की आपूर्ति में कमी- वस्तुओं का मूल्य, मांग और पूर्ति कर आधारित होता है। जब बाजार में वस्तु की पूर्ति कम हो जाती है। तो उनके मूल्य बढ़ जाते हैं। अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से भी व्यापारी वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा कर देते हैं। जिसके कारण महंगाई बढ़ जाती है।
4. मुद्रा प्रसार- जैसे जैसे देश में मुद्रा प्रसार बढ़ता जाता है। वैसे वैसे ही महंगाई बढ़ती जाती है। तृतीय पंचवर्षीय योजना के समय से ही हमारे देश में मुद्रा प्रसार की स्थिति रही है। परिणामतः वस्तु के मूल्य बढ़ते ही जा रहे हैं। कभी जो वस्तु एक रुपए नहीं मिला करती थी, उसके लिए अब लगभग 100 रुपये खर्च करने पड़ जाते हैं।
5. प्रशासन में शिथिलता- सामान्यता प्रशासन के स्वरुप पर ही देश की अर्थव्यवस्था निर्भर करती है। यदि प्रशासन शिथिल पड़ जाता है। तो मूल्य बढ़ते जाते हैं। क्योंकि कमजोर प्रशासन व्यापारी वर्ग पर नियंत्रण नहीं रख पाता। ऐसे स्थिति में वस्तु के मूल्य में अनियंत्रित और निरंतर वृद्धि होती रहती है।
6. घाटे का बजट- विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु सरकार को बहुत अधिक मात्रा में पूंजी की व्यवस्था करनी पड़ती है। पूंजी की व्यवस्था करने के लिए सरकार अनेक उपायों के अतिरिक्त घाटे की बजट प्रणाली को भी अपनाती है। घाटे की आपूर्ति नए नोट छाप की जाती हैं। परिणामतः देश में मुद्रा की पूर्ति आवश्यकता से अधिक हो जाती है। जब यह नोट बाजार में पहुंचते हैं तो वस्तु की कीमतो में वृद्धि करते हैं।
7. असंगठित उपभोक्ता- वस्तु का क्रय करने वाला उपभोक्ता वर्ग प्रायः असंगठित होता है। जबकि विक्रेता या व्यापारिक संस्थाएं अपना संगठन बना लेती हैं। यह संगठन इस बात का निर्णय करते हैं, कि वस्तुओं का मूल्य क्या रखा जाए और उन्हें कितनी मात्रा में बचा जाए। जब सभी सदस्य नीतियों का पालन करते हैं तो वस्तु के मूल्य में वृद्धि होने लगती है। वस्तुओं के मूल्य में होने वाली इस वृद्धि से उपभोक्ताओं को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
8. धन का असमान वितरण- हमारे देश में धन का असमान वितरण महंगाई का मुख्य कारण है। जिनके पास पर्याप्त धन है वह लोग अधिक पैसा देकर साधनों और सेवाओं को खरीद लेते हैं। व्यापारी धनवानों की इस प्रवृत्ति का लाभ उठाते हैं और महंगाई बढ़ती जाती हैं। वस्तुतः विभिन्न सामाजिक आर्थिक विषमता एवं समाज में व्याप्त अशांतिपूर्ण वातावरण का अंत करने के लिए धन का समान वितरण होना आवश्यक है। कविवर दिनकर के शब्दों में भी-
'शान्ति नहीं तब तक, जब तक
सुख भाग न नर का सम हो,
नहीं किसी को बहुत अधिक हो,
नहीं किसी को कम हो।'
महंगाई के फलस्वरुप उत्पन्न होने वाली कठिनाइयां- महंगाई नागरिकों के लिए अभिशाप स्वरुप है। हमारा देश एक गरीब देश है, यहां की अधिकांश जनसंख्या के आय के साधन सीमित है। इस कारण साधारण नागरिक और कमजोर वर्ग के व्यक्ति अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति नही कर पाते। बेरोजगारी इस कठिनाई को और भी अधिक जटिल बना देती है। व्यापारी अपनी वस्तु का कृत्रिम अभाव कर देते हैं। इसके कारण वस्तु के मूल्य में अनियंत्रित वृद्धि हो जाती है। परिणामतः कम आय वाले व्यक्ति बहुत सी वस्तुओं, सेवाओं से वंचित रह जाते हैं।
महंगाई के बढ़ने से कालाबाजारी को प्रोत्साहन मिलता है। व्यापारी अधिक लाभ कमाने के लिए वस्तु को अपने गोदाम में छिपा देते हैं। महंगाई बढ़ने से देश की अर्थव्यवस्था कमजोर हो जाती है।
महंगाई को दूर करने के लिए सुझाव- यदि महंगाई इसी दर से बढ़ती रही तो देश के आर्थिक विकास में बहुत सी बाधाएं उपस्थित हो जाएंगी। इससे अनेक प्रकार के सामाजिक बुराइयां भी जन्म लेंगी। अतः महंगाई के इस दानव को समाप्त करना परमआवश्यक है।
महंगाई को दूर करने के लिए सरकार को समयबद्ध कार्यक्रम बनाने होंगे। किसानों को सस्ते मूल्य पर खाद, बीज और उपकरण आदि उपलब्ध कराने होंगे। जिससे कृषि उत्पादन के मूल्य कम हो सकें। मुद्रा प्रसार को रोकने के लिए घाटे के बजट की व्यवस्था समाप्त करनी होगी अथवा घाटे को पूरा करने के लिए नए नोट छपवाने की प्रणाली को बंद करना होगा। जनसंख्या की वृद्धि रोकने के लिए अनवरत प्रयास करने होंगे सरकार को इस बात का भी प्रयास करना होगा कि शक्ति और साधन कुछ विशेष लोगों तक सीमित ना रह जाए और धन का उचित रुप से बटवारा हो सके। सहकारी वितरण संस्थाएं इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। इन सभी के लिए प्रशासन को चुस्त दुरुस्त और कर्मचारियों को पूरी निष्ठा तथा कर्तव्य परायणता के साथ कार्य करना होगा।
उपसंहार- महंगाई की वृद्धि के कारण हमारी अर्थव्यवस्था में अनेक प्रकार की जटिलताएं उत्पन्न हो गई हैं। घाटे की अर्थव्यवस्था ने इस कठिनाई को और अधिक बढ़ा दिया है। यद्यपि सरकार की ओर से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में किए जाने वाले प्रयासों द्वारा महंगाई की इस प्रवृति को रोकने का निरंतर प्रयास किया जा रहा है, तथापि इस दिशा में अभी तक पर्याप्त सफलता नहीं मिल सकी है।
यदि समय रहते महंगाई के इस दानव को वश में नहीं किया गया, तो हमारी अर्थव्यवस्था छिन भिन्न हो जाएगी। और हमारी प्रगति के समस्त मार्ग बंद हो जाएंगे भ्रष्टाचार अपनी जड़ें जमा लेगा और नैतिक मूल्य पूर्णतया समाप्त हो जाएंगे।
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