देश प्रेम पर निबंध | Eassay on Desh Prem in Hindi
Essay on Desh Prem in Hindi- विभिन्न कक्षाओं की परीक्षा मे देश प्रेम पर निबंध प्रश पत्र मे आता है। आज के इस लेख मे आप देशप्रेम पर निबंध पढ़ेंगे जिससे आप अपनी परीक्षा मे बेहतर निबंध लिख सकते हैं। कुछ अन्य शीर्षक भी नीचे दिये गए जिन पर ये निबंध सटीक है आप इन शीर्षक पर भी यही निबंध लिख सकते हैं।
देश प्रेम पर निबंध | Eassay on Desh Prem in Hindi
देशप्रेम।
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
मातृभूमि प्रेम।
सच्चा प्रेम वही है जिसकी, तृप्ति आत्म-बलि पर हो निर्भर।
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है, करो प्रेम पर प्राण निछावर।।
देश प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है, अमल असीम त्याग से विलसित।
आत्मा के विकास से जिसमे, मनुष्यता होती है विकसित।।
-रामनरेश त्रिपाठी
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है, करो प्रेम पर प्राण निछावर।।
देश प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है, अमल असीम त्याग से विलसित।
आत्मा के विकास से जिसमे, मनुष्यता होती है विकसित।।
-रामनरेश त्रिपाठी
प्रस्तावना
देश प्रेम की भावना मनुष्य में स्वाभाविक और सर्वोपरि है। जिसके अन्न जल का सेवन करके वह बड़ा होता है जिसकी धूल में खेल कर वह पुष्ट होता है, जिसके जल वायु का सेवन कर के वह जीवन धारण करता है, जिसकी मिट्टी में अंत समय में मिल जाता है। जो जन्म दात्री माता से अधिक सहनशील स्नेहमयी और गरिमा शालिनी है उस मातृभूमि का नाम सुनकर कौन पाषाण हृदय होगा जो कि श्रद्धा से ना झुक जाए?
"भरा नही जो भावों से, बहती जिसमे रसधार नही।
वह हृदय नही पत्थर है, जिसमे स्वदेश का प्यार नही।।
वह हृदय नही पत्थर है, जिसमे स्वदेश का प्यार नही।।
देशप्रेम की आवश्यकता
मानव जिस भूमि पर जन्म लेता है। उसके प्रति मानव के हृदय में अटूट प्रेम होता है। जन्म धारण करके शिशु काल से ही जिन वस्तुओं से उसका निरन्तरण संबंध होता है, उसके प्रति स्वाभाविक लगाव और प्रेम हो जाता है। उस देश की मिट्टी के कण से मनुष्य को ऐसा मोह हो जाता है कि वह उसकी निंदा अथवा अनिष्ट को कभी सहन नहीं कर सकता है। तन, मन, धन से स्वदेश की रक्षा करना तथा उन्नति करना ही स्वदेश प्रेम है। देश भक्ति पवित्र सलिला गंगा के समान है जिसमें स्नान करने पर मनुष्य का शरीर और अंतर आत्मा पवित्र हो जाते हैं। जन्मभूमि के प्रति आस्था और निष्ठा रखना मानव का प्रकृति सिद्ध गुण है।
कहा भी है-
'जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।'
देश प्रेम से ओतप्रोत व्यक्ति देश की रक्षा और उन्नति में ही अपनी सुरक्षा और उन्नति का अनुभव करता है। अतः जन्म भूमि की सेवा करना उसका धर्म है जननी और जन्मभूमि के ऋण से मनुष्य कभी भी पूर्ण नहीं हो सकता उनकी सेवा से विमुख होना कृतघ्नता है। मातृभूमि के सम्मान की रक्षा हेतु बलिदान करने में मनुष्य को सच्चा सुख और शांति प्राप्त होती है। सभी जीव अपनी मातृभूमि से अटूट प्रेम रखते हैं। देश की प्रगति के लिए स्वदेश प्रेम की महान आवश्यकता है। देश प्रेम उन्नति का द्योतक है।
देश प्रेम एक व्यापक भावना
देश प्रेम की भावना सर्वत्र और सब कालों में विद्यमान रहती है। विश्व के सभी देशो में सदा ही देश भक्त होते रहते हैं। यही वह भावना है जो मनुष्य में त्याग बलिदान तथा सहयोग की भावना से जागृत करती है। मातृभूमि को मनुष्य अपनी जन्म देने वाली माता से भी कहीं अधिक महिमामयी तथा वंदनीय समझता है। वह उसे कभी भी संकट में नहीं देख सकता है। उसकी रक्षा के लिए मनुष्य हंसते-हंसते अपना तन मन धन सर्वस्व न्यौछावर कर देता है, और स्वयं बलिदान हो जाता है। यह एक ऐसी भावना है जो कि सब कालों में सब देशों में मानवमात्र के हृदय में विद्यमान रहती है। जिस देश के नागरिकों में देश भक्ति की भावना का अंत हो जाए, उस देश का दिवाला निकल जाता है और वह पतन के गहरे गड्ढे में गिर जाता है। जिस मनुष्य के हृदय में देशप्रेम की सरिता नीरस हो जाए वह मनुष्य नहीं पशु है उसका हृदय पत्थर है। कविवर मैथिलीशरण गुप्त की यह उक्ति सर्वथा यथार्थ है-
"जिसको ना निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नही नर आपशु निरा है, और मृतक समान है।।"
वह नर नही नर आपशु निरा है, और मृतक समान है।।"
भारत में देशप्रेम
जापान, जर्मनी तथा भारत देश प्रेम के लिए प्रसिद्ध है। भारत देश प्रेम में अपनी उपमा ही नहीं रखता। यहां शिवाजी और प्रताप जैसे देश भक्त हुए जिन्होंने अपनी मातृभूमि तथा स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दे दी। यहां झांसी की रानी जैसी देशभक्त महिलाओं ने जन्म लिया, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए ज्योति जगाई थी। आधुनिक काल में भी यहां महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, पंडित जवाहरलाल नेहरु, सरदार वल्लभभाई पटेल, सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजकुमारी अमृतकौर तथा विजयलक्ष्मी पंडित आदि अनेक देशभक्तों का जन्म हुआ। जिन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह के बल पर हजारों वर्ष की खोई हुई स्वतंत्रता को पुनः प्राप्त किया और अंग्रेजों की महती शक्ति को भी भारत से बाहर निकाल खड़ा किया। अपने देश के इन देश भक्तों के बलिदान, त्याग, तपस्या के बल पर ही आज हम स्वतंत्र वायुमंडल में सांस ले रहे हैं।
सार्वभौम तथा सार्वजनिक भावना
वैसे तो सभी मनुष्य देशभक्त होते हैं। सभी के ह्रदय में मातृभूमि के प्रति प्रेम होता है, परंतु मनुष्य अपने सांसारिक कार्य में इतना व्यस्त रहता है कि उसकी यह भावना दब सी जाती है। समय पाकर जब कोई योग्य नेता या देशभक्त उन्हें मिल जाता है तो देशप्रेम की यह भावना जागृत हो जाती है। उनकी रग-रग में देशप्रेम की लहर दौड़ जाती है। इसीलिए जब कभी भी देश पर आपत्ति हो और स्वतंत्रता खतरे में हो, उस समय ऐसे देश भक्तों की आवश्यकता होती है जो जनसाधारण के हृदय में देशप्रेम की भावना को जागृत कर सके तथा उनका पथ प्रदर्शन कर सके। हमारे देश में समय समय पर ऐसे देशभक्त नेता होते रहे हैं।
कठिन मार्ग
देश प्रेम की भावना बहुत उच्च है। परंतु इसका मार्ग कठिन है, देशभक्तों की सेज काटों की सेज है। दुनिया का सुख और आराम उसके लिए त्याज्य वस्तु है। मातृभूमि को सुखी और स्वतंत्र देख कर ही उन्हें सुख होता है। मातृभूमि की रक्षा में जीवन का बलिदान देकर ही उन्हें आनंद प्राप्त होता है। मातृभूमि की रक्षा में अनेक संकट झेलते हुए आगे बढ़ते चलना ही उनका काम है। राष्ट्र की बलिवेदी पर आत्म बलिदान कर देना ही उनका सबसे बड़ा कर्तव्य होता है।
उपसंहार
देशप्रेम वह पवित्र भावना है कि जिसे मनुष्य मर कर भी अमर हो जाता है। उसकी समाधि पर मेले लगते हैं। फूल चढ़ाये जाते हैं और जनता उसके आदर्श जीवन से प्रेरणा प्राप्त करती है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी, लक्ष्मीबाई, जार्ज वाशिंगटन तथा लेनिन आदि देशभक्तों का नाम भला क्या कभी मर सकता है? उनकी तो चरणों धूल के लिए भी लोग भटकते हैं। फूल के रूप में कवि की लालसा कितनी सुंदर है-
"मुझे तोड़ लेना वन माली उस पथ पर तुम देना फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक।।"
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक।।"
देश प्रेम की इस पवित्र भावना से प्रेरित होकर ही जयशंकर प्रसाद जी ने कहा है-
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो।,
प्रशस्त पुण्य पंथ है बढ़े चलो बढ़े चलो।।
प्रशस्त पुण्य पंथ है बढ़े चलो बढ़े चलो।।
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