नमक का दारोगा कहानी का सारांश | Summery of Namak Ka Daroga Story
नमक का दारोगा कहानी का सारांश - Summery of Namak Ka Daroga Story by Munshi Premchand. इस पोस्ट मे आपको नमक का दारोगा कहानी का केंद्रीय भाव और पंडित आलोपीदीन के चरित्र की विशेषताएँ जानने को मिलेंगी।
नमक के दारोगा कहानी के नायक पत्र मुंशी बंशीधर हैं। जो एक निर्धन और गरीब परिवार के सदस्य थे और परिवार के इकलौते कमाने वाले व्यक्ति थे। किस्मत से मुंशी बंशीधर को नमक विभाग मे दारोगा के पद पर नौकरी मिल जाती है। उन्हे अतिरिक्त आमदनी के बहुत से मौके मिलने लगते हैं क्यूंकी उस समय भ्रष्ट लोगों के लिए नमक विभाग बहुत सही था। मुंशी बंशीधर के वृद्ध पिता भी अनेक नसीहतें देते हैं। और उनके सामने गरीबी भी कई समस्याएँ खड़ी करती है। लेकिन बंशीधर अपने ईमान पर डटे रहते हैं।
अकस्मात एक दिन उन्हे नमक की बहुत बड़ी तस्करी के बारे मे पता चलता है। बंशीधर तुरंत वहाँ पहुँच जाते हैं। पता चलता है कि इस तस्करी के पीछे वहाँ के सबसे बड़े जमींदार आलोपीदीन का हाथ है। इससे पंडित आलोपीदीन को बुलाया जाता है। पंडित आलोपीदीन बहुत ही निडरता के साथ आता है, क्यूंकी उसके मन मे ये बात थी कि हर दारोगा को पैसे के दम पर खरीदा जा सकता है। वे मुंशी बंशीधर को हजार रुपए रिश्वत के तौर पर पेश करते हैं। लेकिन बंशीधर इससे तैयार नही होते हैं और पंडित आलोपीदीन को गिरफ्तार करने के हुक्म देते हैं। इससे रिश्वत की कीमत बढ़ती जाती है। और यह कीमत चालीस हजार रुपए तक पहुँच जाती है, लेकिन मुंशी जी का ईमान अब भी अडिग रहता है। और पंडित आलोपीदीन गिरफ्तार हो जाते हैं।
पूरे शहर मे पंडित आलोपीदीन की काफी बदनामी और बेइज्जती हो जाती है, इसके बावजूद पैसे के दम पर पंडित जी अदालत से बरी हो जाते हैं। और अपने रसूख से मुंशी बंशीधर को नौकरी से भी हटवा देते हैं। अब मुंशी बंशीधर की मुसीबतें और बढ़ जाती हैं, पैसे की तंगी के साथ साथ उन्हे घर वालों के गुस्से का सामना भी करना पड़ता है।
एक दिन अचानक पंडित आलोपीदीन, मुंशी बंशीधर के घर आते हैं। और उनके सामने एक अच्छे वेतन मान वाली नौकरी का प्रस्ताव रखते हैं। आलोपीदीन, मुंशी बंशीधर की ईमानदारी और सच्चाई से बहुत ज्यादा प्रभावित थे, इसलिए उन्होने मुंशी बंशीधर को अपने पूरे व्यवसाय और संपत्ति की देखरेख के लिए प्रबन्धक पद पर नियुक्त कर दिया था।
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प्रश्न - नमक का दारोगा कहानी का सारांश अपने शब्दो मे लिखिए। / नमक का दारोगा कहानी का केंद्रीय भाव पर प्रकाश डालिए।
नमक का दारोगा कहानी का सारांश- केंद्रीय भाव
मुंशी प्रेमचंद की कहानी नमक का दारोगा उस समय से संबन्धित है जब भारत मे नमक बनाने और बेचने पर कई तरह के टैक्स लगा दिये गए थे। इस कारण से सभी भ्रष्ट अधिकारियों की चाँदी हो गई थी। जिससे नमक विभाग मे काम करने वाले अधिकारी और कर्मचारी अन्य बड़े विभागों की तुलना मे बहुत मोटी ऊपरी कमाई कर रहे थे।नमक के दारोगा कहानी के नायक पत्र मुंशी बंशीधर हैं। जो एक निर्धन और गरीब परिवार के सदस्य थे और परिवार के इकलौते कमाने वाले व्यक्ति थे। किस्मत से मुंशी बंशीधर को नमक विभाग मे दारोगा के पद पर नौकरी मिल जाती है। उन्हे अतिरिक्त आमदनी के बहुत से मौके मिलने लगते हैं क्यूंकी उस समय भ्रष्ट लोगों के लिए नमक विभाग बहुत सही था। मुंशी बंशीधर के वृद्ध पिता भी अनेक नसीहतें देते हैं। और उनके सामने गरीबी भी कई समस्याएँ खड़ी करती है। लेकिन बंशीधर अपने ईमान पर डटे रहते हैं।
अकस्मात एक दिन उन्हे नमक की बहुत बड़ी तस्करी के बारे मे पता चलता है। बंशीधर तुरंत वहाँ पहुँच जाते हैं। पता चलता है कि इस तस्करी के पीछे वहाँ के सबसे बड़े जमींदार आलोपीदीन का हाथ है। इससे पंडित आलोपीदीन को बुलाया जाता है। पंडित आलोपीदीन बहुत ही निडरता के साथ आता है, क्यूंकी उसके मन मे ये बात थी कि हर दारोगा को पैसे के दम पर खरीदा जा सकता है। वे मुंशी बंशीधर को हजार रुपए रिश्वत के तौर पर पेश करते हैं। लेकिन बंशीधर इससे तैयार नही होते हैं और पंडित आलोपीदीन को गिरफ्तार करने के हुक्म देते हैं। इससे रिश्वत की कीमत बढ़ती जाती है। और यह कीमत चालीस हजार रुपए तक पहुँच जाती है, लेकिन मुंशी जी का ईमान अब भी अडिग रहता है। और पंडित आलोपीदीन गिरफ्तार हो जाते हैं।
पूरे शहर मे पंडित आलोपीदीन की काफी बदनामी और बेइज्जती हो जाती है, इसके बावजूद पैसे के दम पर पंडित जी अदालत से बरी हो जाते हैं। और अपने रसूख से मुंशी बंशीधर को नौकरी से भी हटवा देते हैं। अब मुंशी बंशीधर की मुसीबतें और बढ़ जाती हैं, पैसे की तंगी के साथ साथ उन्हे घर वालों के गुस्से का सामना भी करना पड़ता है।
एक दिन अचानक पंडित आलोपीदीन, मुंशी बंशीधर के घर आते हैं। और उनके सामने एक अच्छे वेतन मान वाली नौकरी का प्रस्ताव रखते हैं। आलोपीदीन, मुंशी बंशीधर की ईमानदारी और सच्चाई से बहुत ज्यादा प्रभावित थे, इसलिए उन्होने मुंशी बंशीधर को अपने पूरे व्यवसाय और संपत्ति की देखरेख के लिए प्रबन्धक पद पर नियुक्त कर दिया था।
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पंडित आलोपीदीन का चरित्र चित्रण
प्रश्न :- नमक का दारोगा कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के कौन से दो पहलू (पक्ष) उभर कर सामने आते हैं?
उत्तर - मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कथा "नमक का दारोगा" उस समय से संबधित है जब भारत मे नमक के बनाने और बेचने पर कर लगा दिया गया था। इससे भ्रष्ट लोगों की चाँदी हो गयी थी। इस कहानी मे पंडित आलोपीदीन एक अमीर जमींदार होता है। और एक नमक तस्करी मे गिरफ्तार हो जाता हैं। उसके व्यक्तित्व मे कई पक्ष उभर कर आते हैं। उनमे से दो प्रमुख के बारें मे यहाँ पर आपको संक्षेप मे वर्णन मिलेगा।
1. पैसे का अहंकार- पंडित आलोपीदीन के व्यक्तित्व मे ये उभर कर आता है की वह अमीर जमींदार है और उसे अपने पैसों का घमंड बहुत ज्यादा है। जब मुंशी बंशीधर जो दारोगा है पंडित आलोपीदीन को नमक तस्करी मे संलिप्त पाते हैं तो उन्हे बुलाते हैं। पंडित आलोपी दीन निडरता के साथ दारोगा के सामने आता है उसे पता होता है की ऐसा कोई दारोगा नही है जो उसके पैसे के सामने अपने ईमान का सौदा ना करे, वह मुंशी जी को चालीस हजार रुपए तक की रिश्वत की पेशकश भी करता है लेकिन नाकामयाब रहता है।
यहाँ तक एक बार उसके पैसो का अहंकार, ईमानदारी के सामने टूट जाता है। लेकिन उसकी यह आदत नही जाती है। अदालत मे वह अपने तस्करी के आरोप को भी मानने से इंकार कर देता है। और पैसे के दम पर ही बाइज्जत बरी हो जाता है।
2. ईमानदारी की कद्र - पंडित आलोपीदीन के व्यक्तित्व मे ईमानदारी की कद्र की विशेषता भी उभर कर आती है। उसे पता होता है की ईमानदारी ही ऐसा गुण है, जो उसके कर्मचारियों मे हो तो उसकी संपत्ति मे काफी बढ़ोत्तरी होगी। इसीलिए वह मुंशी बंशीधर के घर जाकर स्वयं मुंशी जी के सामने जाकर नौकरी का प्रस्ताव रखता है। और उन्हे अपने समस्त व्यवसाय और संपत्ति के प्रबन्धक के पद पर मुंशी जी को नियुक्त करता है।
इसके अतिरिक्त पंडित आलोपीदीन के चरित्र मे बुद्धिमान, कार्यकुशलता को पहचानने की विशेषता भी है।
मुंशी प्रेमचंद की अन्य कहानियाँ -
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